परिवर्तिनी एकादशी व्रत 6 सितंबर को , भगवान विष्णु बदलते हैं करवट
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पद्मा या परिवर्तनी कहते हैं। इसे एकादशी जयंती भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा करने का विधान है। इस एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु शयन के समय करवट बदलते हैं, इसलिए इसका नाम परिवर्तिनी एकादशी पड़ा है।
परिवर्तिनी एकादशी हिंदी पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 06 सितंबर मंगलवार को प्रात: 05 बजकर 54 मिनट पर प्रारंभ हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन 07 सितंबर बुधवार को सुबह 03 बजकर 04 मिनट पर होगा। इस साल पद्मा या परिवर्तिनी एकादशी व्रत 06 सितंबर को रखा जाएगा।
परिवर्तिनी एकादशी 2022 मुहूर्त
06 सितंबर को परिवर्तिनी एकादशी व्रत के दिन प्रात:काल से ही आयुष्मान योग लग रहा है, जो सुबह 07 बजकर 57 मिनट तक रहेगा। उसके बाद से सौभाग्य योग लगेगा, जो 07 सितंबर को प्रात: 03 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। फिर शोभन योग शुरु हो जाएगा। इसके अलावा देखा जाए तो परिवर्तिनी एकादशी के दिन त्रिपुष्कर योग और रवि योग भी बन रहे हैं। रवि योग प्रात: 06 बजकर 39 मिनट से शाम 06 बजकर 19 मिनट तक है, वहीं त्रिपुष्कर योग 07 सितंबर को प्रात: 03 बजकर 42 मिनट से सुबह 04 बजकर 02 मिनट तक रहेगा।
रवि योग सभी संकटों को दूर करके सफलता प्रदान करता है। आयुष्मान, सौभाग्य और शोभन ये तीनों योग शुभ फल प्रदान करने वाले माने जाते हैं। इस प्रकार से देखा जाए तो परिवर्तिनी एकादशी का दिन पूजा पाठ की दृष्टि से बहुत ही फलदायी है।
परिवर्तनी एकादशी पर बन रहे 4 शुभ योग
इस साल भाद्रपद माह की परिवर्तनी एकादशी पर एक साथ चार शुभ योग बन रहा है. इस दिन 06 सितंबर को सुबह 08 बजकर 16 मिनट तक आयुष्मान योग, सुबह 08 बजकर 16 मिनट से अगले दिन सुबह 04 बजे तक सौभाग्य योग, 06 सितंबर की सुबह 06 बजकर 08 मिनट से शाम 06 बजकर 09 मिनट तक रवि योग और 07 सितंबर की सुबह 03 बजकर 04 मिनट से 06 बजकर 09 मिनट तक त्रिपुष्कर योग बन रहा है. इस शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु की पूजा करना अत्यंत लाभदायी होता है. मान्यता है कि जो लोग इस शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु की सच्चे मन से पूजा करते हैं उनके सारे कार्य सिद्धि हो जाते हैं.
परिवर्तिनी एकादशी व्रत का पारण
07 सितंबर के दिन व्रत का पारण करना चाहिए। इस दिन पारण का समय सुबह 08 बजकर 19 मिनट से सुबह 08 बजकर 49 मिनट तक है।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत का महत्व
परिवर्तिनी एकादशी व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। इस दिन वामन अवतार की पूजा करने से मृत्यु के पश्चात व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि जो भी व्यक्ति परिवर्तिनी एकादशी के दिन उनके वामन स्वरूप की पूजा करता है, उसे तीनों लोकों की पूजा करने का फल मिलता है. इस व्रत की कथा त्रेतायुग की है. उस समय बलि नामक का भगवान विष्णु का परम भक्त था. उसने अपने बल से तीनों लोकों को जीत लिया था. उसने इंद्र समेत सभी देवों को भी जीत लिया था.
तब इंद्र समेत सभी देव भगवान विष्णु की पूजा करने लगे और बलि से मुक्ति की प्रार्थना करने लगे. तब भगवान विष्णु ने अपना वामन अवतार धारण किया और बलि के पास तीन पग भूमि दान में मांगने पहुंच गए. बलि वामन देव को पहचान नहीं सका, उसने तीन पग भूमि देने का वचन दिया. तब भगवान ने अपना रूप विस्तार किया और एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्गलोक पूरे हो गए.
वामन देव ने बलि से पूछा कि तीसरा पग कहां रखें? तो उसने अपना सिंर आगे बढ़ा दिया. वामन देव ने जैसे ही तीसरा पग उसके सिर पर रखा तो वह पाताल लोक चला गया. उसकर विनम्रता देखकर के भगवान विष्णु ने उसे आशीर्वाद दिया कि वे सदैव उसके पास रखेंगे. बलि के कहने पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु की मूर्ति बलि के आश्रम पर स्थापित की गई. और दूसरी क्षीर सागर में शेषनाग की पीठ पर स्थापित की गई.
इस दिन भगवान विष्णु अपना करवट बदलते हैं, इसलिए इसका नाम परिवर्तिनी एकादशी है. इस दिन व्रत और पूजा करने से स्वर्ग लोग के स्थान मिलता है और सभी पाप मिट जाते हैं. जो इस व्रत कथा को सुनता है, उसे हजारों अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है.
परिवर्तनी एकादशी पर करें ये उपाय
यदि आप आर्थिक समस्याओं से परेशान हैं या आप सुख-सुविधाओं में वृद्धि करना चाहते हैं परिवर्तनी एकादशी के दिन विष्णु जी के मंदिर में जाकर साबुत श्रीफल(बेल) और सवा सौ ग्राम साबुत बादाम चढ़ाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है.