November 25, 2024

दलबदलुओं को सबसे ज्यादा रास आ रही भाजपा, जाने पहली पसंद क्यों बन रहा कमल?

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रायपुर

 लोकसभा चुनाव से पहले छत्‍तीसगढ़ के विभिन्न पार्टियों के कुछ नेताओं ने दल-बदल कर ली है। इनमें ज्यादातर ने भाजपा का दामन थाम लिया है। देशभर में जहां विपक्षी गठबंधन के नेता एक मंच पर दिख रहे हैं। वहीं प्रदेश में कांग्रेस, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) (जकांछ), आम आदमी पार्टी(आप), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) समेत अन्य दलों के नेताओं, कार्यकर्ताओं ने भाजपा में शरण ले ली है।

ADR ने एक रिपोर्ट तैयार की जिसमें 2014 से लेकर 2021 तक का डेटा विश्लेषण किया गया है। उस रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले सात सालों में 426 नेताओं ने अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया। ये सारे विधायक और सांसद स्तर के नेता थे। वही अगर बात 2021 से 2023 की करें तो 200 नेताओं ने बीजेपी ज्वाइन कर ली, सबसे बड़ा खेल महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात में देखने को मिला।

भाजपा का कहना है कि ज्यादातर नेताओं ने मोदी की नीतियों से प्रभावित होकर भाजपा का दामन थामा है। वहीं कांग्रेस इसे दूसरे चश्मे से देख रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि दूसरे दल के नेताओं का भाजपा में प्रवेश के बाद भाजपा के जन्मजात कार्यकर्ताओं में निराशा है। उन्होंने इंटरनेट मीडिया एक कार्टून साझा करके भाजपा पर तंज कसा है।

कांग्रेस से आए चिंतामणि महाराज चुनावी मैदान में

कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए छ्त्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के पूर्व सामरी व विधायक चिंतामणि महाराज को भाजपा ने सरगुजा से सांसद का टिकट दिया है। अब वो सरगुजा लोकसभा क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी बन गए हैं। विधानसभा चुनाव 2023 के दौरान भाजपा की ओर से सरगुजा से सांसद का टिकट मिलने के आश्वासन पर ही महाराज ने भाजपा का दामन थामा था और अब भाजपा ने अपने इस वादे को पूरा कर उन्हें सांसदी का टिकट दिया है। विधानसभा चुनाव के समय भाजपा प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने अंबिकापुर के राजमोहिनी भवन में आयोजित भाजपा के परिवर्तन महासंकल्प रैली में उन्हें माला पहनाकर भाजपा में घर वापसी कराया था।

तीन महीने के भीतर इतने नेता हुए शामिल

तीन महीने के भीतर ही कांग्रेस के कई दिग्गज नेता और कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं। अकलतरा से पूर्व कांग्रेस विधायक चुन्नीलाल साहू नौ मार्च को भाजपा में शामिल हुए। इसके पहले अंतागढ़ के पूर्व कांग्रेस विधायक मंतूराम राम पवार भाजपा में शामिल हुए।

18 मार्च को बहुजन समाज पार्टी के पूर्व विधायक केशव चंद्रा भाजपा में शामिल हो गए। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़(जे) (जकांछ) पार्टी के पूर्व विधायक प्रमोद शर्मा, पूर्व विधायक विधान मिश्रा जो कि प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी की कैबिनेट में उद्योग मंत्री रह चुके हैं।

अब अगर कई दलबदलू बीजेपी में शामिल हो रहे थे, दूसरी तरफ फुल स्पीड से कांग्रेस से उनका पलायन भी हो रहा था। आंकड़े बताते हैं कि पिछले सात सालों में कांग्रेस से 399 नेताओं का मोह भंग हुआ, यहां भी विधायक, सांसद और तो और सीएम पद के नेता भी रहे। हाशिए पर चल रही मायावती की बसपा को भी 170 नेताओं ने छोड़ दिया। बीजेपी के भी कुछ नेताओं ने पाला बदल दूसरी पार्टियों में पलायन किया, लेकिन वो आंकड़ा सिर्फ 144 का बैठता है। ऐसे में बीजेपी में जाने वाले नेताओं की लिस्ट ज्यादा लंबी है।

अब एक सवाल ये उठता है कि आखिर ज्यादातर विपक्षी नेता बीजेपी का दामन क्यों थाम रहा है। विपक्ष के पास तो इसका एक सीधा-साधा जवाब है- ईडी-सीबीआई का डर दिखाकर पार्टियों को तोड़ा जा रहा है, बीजेपी लॉजिक दे रही है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता को देखकर, उनके काम से प्रभावित होकर ये निर्णय लिए जा रहे हैं। लेकिन इससे अलग अगर इस पूरी स्थिति को समझने की कोशिश की जाए तो पता चलता है कि जिन कारणों से पार्टी को छोड़ा जाता है, बीजेपी उन्हीं कारणों को दूर करने की कोशिश करती दिख जाती है।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण हिमंता बिस्वा सरमा हैं जो एक समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे, साल 2001 में असम की राजनीति में सक्रिय हुए और फिर लगातार सरकारों में मंत्री पद भी संभाला। लेकिन 2015 में उनका कांग्रेस से मोह भंग हुआ और उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया। अब माना जाता है कि हेमंत बिस्वा सरमा ने कांग्रेस को छोड़ने का फैसला राहुल गांधी के रवैये की वजह से लिया था। वे खुद ही इस किस्से को कई बार बता चुके हैं। उन्होंने कहा था कि असम के एक जरूरी मुद्दे पर राहुल से बात करने गए, लेकिन वे अपने कुत्ते को खिलाने में व्यस्त चल रहे थे। जब मीटिंग शुरू भी हुई, बार-बार वो कुत्ता बीच में आ जाता।

यानी कि संदेश ये दिया गया कि राहुल गांधी गंभीर मुद्दों पर चर्चा करने से बच रहे थे और उनका सारा ध्यान सिर्फ अपने कुत्ते पर था। अब ये बोलकर हिमंता तो कांग्रेस से अलग हो गए, लेकिन उन्होंने बीजेपी का दामन थाम वो हासिल कर लिया जो कई सालों तक नहीं कर पाए। वे असम राज्य के मुख्यमंत्री बन गए, नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा बने और पूर्वोत्तर में पार्टी की सरकार बनाने में अपनी सक्रिय भूमिका अदा की।

लिस्ट यही खत्म नहीं हो रही है।शुभेंदू अधिकारी कौन थे? ममता बनर्जी के RIGHT HAND, लेफ्ट सरकार के खिलाफ जितने आंदोलन किए…वे सबसे बड़े रणनीतिकार थे। बीजेपी को पता था, बंगाल में संगठन खड़ा करना है तो अधिकारी का साथ होना जरूरी है। अब आज ममता के खिलाफ सबसे बुलंद आवाज शुभेंदू की है, बीजेपी की पिच से बैटिंग कर रहे हैं, नेता प्रतिपक्ष का पद भी मिला हुआ है, यानी कि पहचान मिल गई… REWARD मिल गया… और क्या चाहिए। अब इसी REWARD की चाह बोल लीजिए या कुछ और…. कांग्रेस से कई और नेताओं का पलायन हुआ है…बोलने की जरूरत नहीं… सब बीजेपी में शामिल हुए हैं।

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