वैज्ञानिकों ने 700 किमी की गहराई में एक नया महासागर खोजा, सतह पर मौजूद पानी से तीन गुना ज्यादा पानी
वॉशिंगटन
हाल के दिनों में हुई कई वैज्ञानिक खोजों ने दुनिया को हैरान कर दिया है। एक विशाल ब्लैक होल की खोज से लेकर दक्षिण कोरियाई फ्यूजन रिएक्टर को उच्चतम ताप पर पहुंचाया गया है, जो हमारे दिमाग को चौंकाने वाला है। अब एक नई खोज हुई है, जिसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते। पृथ्वी की परत ने नीचे छिपे एक विशाल महासागर का पता लगाया गया है। पृथ्वी की सख्त सतह से 700 किलोमीटर नीचे रिंगवुडाइट नाम की चट्टान में यह जमा होता है। यह अंडरग्राउंड महासागर पृथ्वी की सतह पर मौजूद सभी महासागरों के कुल आयतन का तीन गुना होने का अनुमान है।
निष्कर्षों को 2014 के एक वैज्ञानिक पेपर 'डिहाइड्रेशन मेल्टिंग एट द टॉप ऑफ लोअर मेंटल' में विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। इसमें रिंगवुडाइट के गुणों को भी बताया गया है। इस खोज को करने वाली टीम के प्रमुख सदस्य भूभौतिकीविद् स्टीव जैकबसेन ने कहा, 'रिंगवुडाइट एक स्पंज की तरह है जो पानी सोख लेता है। रिंगवुडाइट की क्रिस्टल संरचना में कुछ विशेष है जो इसे हाइड्रोजन को आकर्षित करने और पानी को ट्रैप करने देता है।'
ऐसे खोजा गया महासागर
उन्होंने आगे कहा, 'मुझे लगता है कि हम आखिरकार पूरी पृथ्वी के जल चक्र के सबूत देख रहे हैं, जो हमारे रहने योग्र ग्रह की सतह पर तरल पानी की विशाल मात्रा को समझने में मदद कर सकता है। वैज्ञानिक दशकों से इस लापता गहरे पानी की तलाश कर रहे हैं।' इस भूमिगत महासागर का पता लगाने के लिए यूएस में 2000 भूकंपमापी का एक व्यापक नेटवर्क तैयार किया गया और 500 से ज्यादा भूकंपों से निकलने वाली तरंगों की जांच की गई है। तरंगें पृथ्वी की कोर सहित उसकी आंतरिक परतों से होकर गुजरती हैं। नम चट्टानों से गुजरते समय मंदी का अनुभव किया गया, जो एक बड़े जल भंडार का संकेत देता है। इस तरह से शोधकर्ताओं ने महासागर खोजा।
जमीन में पानी रहना जरूरी
पृथ्वी की इतनी गहराई में चट्टानों के कणों के बीच पानी ग्रह के जल चक्र के बारे में हमारी धारणा को बदल सकता है। जैकबसेन ने इस जलाशय के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि अगर धरती के नीचे ये महासागर न हो तो पूरी धरती पर पानी भर जाएगा। धरती पर सिर्फ ऊंचे पहाड़ों की चोटिां ही हमें दिखाई देंगी, बाकी पूरी जमीन पानी के नीचे होगी। अब पूरी दुनिया में शोधकर्ता भूकंपीय डेटा इकट्ठा करना चाहते हैं। उनके निष्कर्ष पानी की समझ में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं।