November 24, 2024

14 साल बाद खत्म हुआ बूंदी राजघराने का संपत्ति विवाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह को मिला अधिकार

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बूंदी
 राजस्थान के हाड़ौती के बूंदी राजघराने का आखिरकार 14 सालों से चल रहा संपत्ति विवाद खत्म हो गया। संपत्ति का विवाद दोनों पक्षों के समझौते के बाद हुआ। अब राजघराने की संपत्ति पर पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह का अधिकार होगा। संपत्ति को लेकर जितने भी मुकदमे थे, उनको वापस लेने को लेकर भी सहमति बन गई। दोनों पक्षों ने दिल्ली हाई कोर्ट में समझौते की याचिका 1 अप्रैल को लगाई। हाई कोर्ट में दोनों की याचिका पर 2 अप्रैल को सुनवाई हुई, इसमें सहमति बनी।

हाई कोर्ट में वकील ने बताया अविनाश चांदना की ओर से स्व. महाराज रणजीत सिंह की संपत्ति को लेकर किए गए दावों का दोनों पक्षों में लिखित समझौता हो गया। चांदना के उत्तराधिकारियों को पूरे मामले में खर्च के तौर पर डेढ़ करोड़ रुपये देने पर सहमति बनी। समझौते के तहत अविनाश चांदना की पत्नी किरण चांदना को 50 लाख, बेटे समीर को 50 लाख, सुनील चांदना को 50 लाख मिलेंगे। बैंकों के माध्यम से 30 मार्च को ही डीडी बना लिए। चूंकि याचिकाकर्ता के समीर, सुनील, किरण ही उत्तराधिकारी हैं। इन्होंने पूर्व के सभी मामलों का समझौता कर लिया है।

बूंदी राजघराने का विवाद क्या?

कोटा जयपुर के रास्ते बसा शहर बूंदी की पूर्व रियासत के अंतिम महाराजा महाराव बहादुर सिंह थे। उनके बेटे युवराज रणजीत सिंह और बेटी महेंद्रा कुमारी थीं। बहादुर सिंह का निधन 24 नवंबर 1977 में हो गया था। रणजीत सिंह उत्तराधिकारी के रूप में बूंदी की राजगद्दी पर बैठे। रणजीत सिंह की कोई संतान नहीं थी और पत्नी का भी निधन हो गया था। बहन महेंद्रा कुमारी का विवाह अलवर में हुआ। बूंदी राजघराने रूल ऑफ प्रिमिजीनेचर होने से रणजीत सिंह ही एकमात्र वारिस बचे थे, लेकिन महेंद्रा कुमारी ने बूंदी रियासत की संपत्ति के बंटवारे का दावा वर्ष 1986 में पेश किया। वाद के दौरान उनका भी स्वर्गवास हो गया।

महेंद्रा कुमारी के बाद उनके बेटे ने लड़ा केस

महेंद्रा कुमारी के स्वर्गवास के बाद उनके बेटे पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह ने उत्तराधिकारी के रूप में मुकदमा लड़ा। जयपुर में एडीजे फास्ट ट्रैक नंबर 4 में वर्ष 2005 में एक पक्षीय प्रारंभिक डिक्री पारित की गई। इसमें रणजीत सिंह की संपत्ति में से 50 प्रतिशत हिस्सा रणजीत सिंह व 50 फीसदी हिस्सा भंवर जितेंद्र सिंह का घोषित किया गया। मौके पर कब्जा रणजीत सिंह का था। रणजीत सिंह का पारिवारिक मित्र अविनाश चांदना था। चांदना का दावा था कि जयपुर में हुए कोर्ट के फैसले के अनुसार, रणजीत सिंह ने अपनी संपत्ति को 30 मार्च 2009 को चांदना के नाम सब रजिस्ट्रार नई दिल्ली के सामने पंजीकरण करवा दी।

रणजीत सिंह की तबीयत खराब होने से उपचार के लिए वे चांदना के पास दिल्ली में ही रहे। 7 जनवरी 2010 को दिल्ली में उनकी मौत हो गई। इसके बाद से ही संपत्ति को लेकर अविनाथ चांदना और भंवर जितेंद्र सिंह में विवाद चल रहा था। चांदना का आरोप था कि भंवर जितेंद्र सिंह ने रियासत की पूरी संपत्ति हड़पने के लिए संगठित गिरोह बनाया और षड्यंत्र रचकर रणजीत सिंह के फर्जी हस्ताक्षर करवा लिए। उन्होंने फर्जी तरीके से एक ट्रस्ट बनाया और सारी जायदाद कुलदेवी आशापुरा माताजी को समर्पित कर दी।

भूपेश सिंह हाड़ा के चलते गढ़ पैलेस पर लगा ताला

चांदना ने रिपोर्ट में बताया था कि रणजीत सिंह ने अपनी संपत्ति आशापुरा माताजी को अर्पित नहीं की थी। इस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह, उनके ससुर बिजेंद्र सिंह, श्रीनाथसिंह हाड़ा के खिलाफ धोखाधड़ी, कूटरचित दस्तावेज तैयार करने का मामला दर्ज हुआ था। बाद में बूंदी कोर्ट ने ट्रस्ट को फर्जी मानते हुए तीनों को गैर जमानती वारंट से तलब भी किया था। भंवर जितेंद्र ने मामले में हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन कुछ दिन पहले हाई कोर्ट ने भी ट्रस्ट के पदाधिकारियों को दोषी माना था। हालांकि, रणजीत सिंह के निधन के बाद से ही राज परिवार की संपत्ति की देखरेख ट्रस्ट ही कर रहा है। केस के दौरान ही याचिकाकर्ता अविनाश चांदना का देहांत हो गया था। इसके बाद उनके उत्तराधिकारी पत्नी और दोनों बेटे केस लड़ रहे थे। गौरतलब है कि 27 मार्च को संपत्ति विवाद के मामले में तीसरा पक्ष पूर्व ब्रिगेडियर भूपेश सिंह हाड़ा के रूप में सामने आया था और गढ़ पैलेस पर ताला लगा दिया था। केस भी दर्ज हुआ था।

ऐसे सुलझा मामला

सारे दस्तावेज हाइकोर्ट के सामने भी पेश कर दिए गए, अब पूरा मामला सुलझ चुका है। ऐसे में याचिकाकर्ता के वकील को वर्तमान याचिका वापस लेने की अनुमति दी गई। परिवादी के वकील ने भी 3 डिमांड ड्राफ्ट सौंपे हैं। वर्तमान याचिका को वापस लेने पर कोई आपत्ति नहीं है। मामले की सुनवाई के बाद हाइकोर्ट ने फैसले में कहा कि दोनों पार्टियों की ओर से किए गए आवेदन और प्रस्तुतियों के मद्देनजर याचिका को वापस लेने की अनुमति दी जाती है। दस्तावेजों के आधार पर मामले का निपटारा किया जाता है। इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 22 मई 2024 थी, जिसे रद्द करने के आदेश दिए हैं।

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