मोक्षनगरी गया में मोदी पार कराएंगे मांझी की नैया, तीन बार विधानसभा चुनाव लड़े पर नहीं जीते
औरंगाबाद/गया.
राजनीति की अपनी विडंबनाएं होती हैं। कौन यकीन करेगा कि हिंदुस्तान अवामी मोर्चा (हम) के नेता और भाजपा नीत एनडीए के गया सुरक्षित सीट से प्रत्याशी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अपने गृह जनपद से कभी जीत दर्ज नहीं कर पाए। मोक्षनगरी के नाम से विख्यात गया से उनके सामने अपनी चुनावी नैया को पार लगाने की चुनौती है, इसी पर करीब 80 वर्ष के मांझी का राजनीतिक भविष्य टिका है।
6 अक्तूबर, 1944 को गया जिले के खेजरसराय के महकार गांव में जन्मे जीतन राम मांझी के कद को समझने के लिए इतना ही पर्याप्त है कि वे 44 साल से प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हैं, 1980 में वे पहली बार विधायक चुने गए। उन्होंने श्रीकृष्ण सिंह से लेकर नीतीश कुमार तक के मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल देखा है। उनके सामने हैं, 1975 में जन्मे कुमार सर्वजीत। उन्हें राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू यादव ने मांझी के सामने उतारा है।
मुद्दे और मुकाबला
औरंगाबाद की तरफ से गया शहर जाने के लिए पहले बौद्ध धर्म नगरी बोध गया से गुजरना होता है। बोध गया की पहचान अब आईआईएम से भी है। कभी यह सीट माओवादी हिंसा की वजह से चर्चित रहती थी। चुनाव के बायकाट के संदेश के बाद सुरक्षा एजेंसियों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी। आज हालात बदल चुके हैं, पारंपरिक तरीकों से भले ही प्रचार नहीं हो रहा है पर लोग खूब रुचि लेते हैं। बोधगया में महाबोधि मंदिर के बाहर ई रिक्शा चलाने वाले सुरेंद्र कहते हैं, काम तो मोदी ने अच्छा किया है पर मांझी और सर्वजीत दोनों ने ही गया के लिए कुछ नहीं किया। आप यहां का हाल देखो जाम और हर तरफ कूड़ा, क्या ऐसा ही होना चाहिए। चाइनीज टेंपल के बाहर जूते के स्टैंड को देखने वाले विकास मांझी बोले, हम तो जीतन राम को देखते हैं, उनका काम अच्छा लगता है। हम लोगों के लिए उन्होंने बहुत कुछ किया। महाबोधि टेंपल में गाइड मुकेश कुमार कहते हैं, जीतने वाले केवल अपना फायदा करते हैं, आम आदमी तो रोजी-रोटी की चिंता में पिसा रहता है। बोधगया से लगभग 15 किलोमीटर आगे फल्गू नदी के किनारे बसे विष्णुपद मंदिर की वजह से विश्व विख्यात है। यहीं पास में फल्गू नदी के किनारे देश के कोने-कोने से लोग पिंडदान करने आते हैं। विष्णुपद मंदिर में पूजा की दुकान चलाने वाले कांति कुमार कहते हैं दोनों मुख्य प्रत्याशी गया के हैं पर किसी काम के नहीं, आप शहर जाओ रोजाना ऐसा जाम लगता है हालत खराब हो जाती है। मुख्य सड़क जीबी रोड से गुजरते हुए जाम का अहसास हर दिन हर नागरिक को होता है और इसका कोई निदान नहीं। पास में बैठे दिनेश कहते हैं, नेताओं को हमारी तकलीफों से क्या लेना देना। शायद यही वजह है कि चुनाव में रंग नहीं दिख रहे।
जीतन राम मांझी यानी खांटी राजनेता
महादलित मुसहर समाज के जीतन राम ने स्नातक तक पढ़ाई की और नौकरी भी की। समाज के वंचित तबके से आने वाले मांझी 44 साल लंबे राजनीतिक कैरियर में वे करीब-करीब हर दल में रह चुके हैं और उन्होंने आनन-फानन में अपनी राजनीतिक वफादारियां बदली हैं। आठ बार उन्होंने अपने राजनीतिक पाले को बदला है। 1991 में पहला लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर, दूसरा 2014 में जनता दल यू के टिकट पर तीसरा 2019 में महागठबंधन की तरफ से लड़ा और तीनों ही हारे।
जानिये कौन हैं सर्वजीत
सर्वजीत के पिता दिवंगत राजेश कुमार 1992 में गया से सांसद रह चुके थे, वे तीन बार बोधगया सीट से विधायक भी रहे। वर्ष 2005 में पिता की हत्या के बाद सर्वजीत ने राजनीति में कदम रखा। लोकजनशक्ति पार्टी ने उप चुनाव में उन्हें टिकट दिया और वे पहली बार विधायक बने। सर्वजीत ने बीआईटी मेसरा से बीटेक किया है और कुछ दिनों तक एसआईटी रांची में प्रोफेसर भी रहे। वे गया जिले के ही हैं।
दोनों का अपना अपना दावा
एनडीए प्रत्याशी जीतन राम मांझी का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हम लोग इस बार 400 से ज्यादा सीटें दिलाएंगे। क्षेत्र की जनता का विकास करना ही हमारे गठबंधन की प्राथमिकता है। बिहार संग देश को राजग ही आगे बढ़ा सकता है। वहीं, महागठबंधन प्रत्याशी कुमार सर्वजीत कहते हैं कि हमारा महागठबंधन बिहार को समझता है। हम लोग नौजवानों और महिलाओं की बात करते हैं। उनके मुद्दे उठाएंगे। उनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास करेंगे। खाली भाषण करने से कुछ नहीं होता।
कांग्रेस-भाजपा का दबदबा
गया सुरक्षित सीट पर अब तक 16 आम चुनाव हुए हैं। इसमें 5 बार कांग्रेस, 4 बार भाजपा और 3 बार जनता दल ने चुनाव जीता है। वहीं, 1-1 बार जनसंघ, भारतीय लोकदल, राष्ट्रीय जनता दल और जदयू ने बाजी मारी है। इस सीट पर पहली बार चुनाव वर्ष 1957 में हुआ था।