September 25, 2024

भारत-बांग्लादेश की यारी चीनी मंसूबों पर भारी, ऐसे बढ़ रहीं ड्रैगन की मुश्किलें

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 नई दिल्ली
 
भारत के कूटनीतिक प्रयासों व बांग्लादेश की ‘दोस्ती सबसे और बैर किसी से नहीं’ नीति के चलते चीन तमाम प्रयासों के बावजूद वहां सामरिक निवेश नहीं कर पाया है। आज भले ही चीन वहां खूब निवेश कर रहा हो, बावजूद बांग्लादेश और भारत के व्यापारिक, सामरिक और राजनीतिक रिश्ते लगातार प्रगाढ़ हो रहे हैं। भारत यात्रा पर आईं बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी भारत को आश्वस्त किया है कि दोनों देशों के रिश्ते किसी तीसरे देश की उपस्थिति से कतई प्रभावित नहीं होने दिए जाएंगे। सूत्रों के अनुसार, बांग्लादेश में चीन द्वारा 40 अरब डॉलर से भी ज्यादा का निवेश किया गया है या प्रक्रिया में है। जबकि भारत का निवेश इसका करीब आधा ही है।

चीन सामरिक रूप से बांग्लादेश की महत्वपूर्ण स्थिति का फायदा उठाने की भी कोशिश में है तथा वहां सामरिक निवेश का इच्छुक है। लेकिन भारत से अपने रिश्तों के चलते बांग्लादेश ने इसकी इजाजत नहीं दी है। बांग्लादेश विकसित देश बनने का सपना देखता है, इसलिए वह चीन-भारत के निवेश को हाथों हाथ ले रहा है। क्योंकि उसका लोगों के जीवन को बेहतर बनाना है। लेकिन चीनी निवेश पर बांग्लादेश उतना सहज भी नहीं है। सूत्रों की मानें तो श्रीलंका में उत्पन्न आर्थिक संकट के बाद बांग्लादेश इस दिशा में थोड़ा सतर्क भी हुआ है।

चीनी निवेश के साथ कुछ और भी दिक्कतें हैं जैसे चीन अपने निवेश के साथ-साथ अपने कार्मिक भी वहां भेजता है, जबकि भारत के निवेश के मामले में ऐसा नहीं है। भारत के बांग्लादेश के साथ चार रेल मार्ग और सड़क संपर्क भी बना हुआ है। भारत के निवेश से वहां बड़े पैमाने पर स्थानीय रोजगार भी सृजित हो रहा है। इसलिए बांग्लादेश भारत के साथ निवेश बढ़ाने का कहीं ज्यादा इच्छुक है। बांग्लादेश से व्यापार के मामले में चीन और भारत की स्थिति करीब-करीब बराबरी की है जबकि चीन ने अपने ज्यादातर उत्पादों को बांग्लादेश के लिए कर मुक्त कर रखा है। भारत ने अभी तक ऐसा नहीं किया है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और शेख हसीना के बीच में समग्र आर्थिक भागीदारी समझौता पर सहमति बनी है। इससे भारतीय उत्पादों पर करों में कमी आएगी और कारोबार बढ़ेगा।

भारत-बांग्लादेश के बीच मंगलवार को हुई द्विपक्षीय बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चीन के रिश्तों को लेकर न सिर्फ भारत को आश्वस्त किया बल्कि स्पष्ट रूप से कहा कि उनका लक्ष्य अपने देश की प्रगति है तथा वह किसी द्विपक्षीय संबंधों को किसी तीसरे की उपस्थिति से प्रभावित नहीं होने देंगीं।

 

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