November 23, 2024

गेहूं खरीद को लेकर पाकिस्तान के पंजाब में किसानों का विरोध तेज, जिसे राजनीतिक दलों का भी समर्थन मिल रहा

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लाहौर
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की मुख्यमंत्री मरियम नवाज के नेतृत्व वाली सरकार के साथ-साथ प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली संघीय सरकार को किसानों की एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। सरकार की गेहूं खरीद नीति के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज होता जा रहा है जिसे राजनीतिक दलों का भी समर्थन मिल रहा है।

किसान समेत देश के कृषि क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी पाकिस्तान किसान इत्तेहाद (पीकेआई) ने अनाज खरीदने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में विफल रहने और प्रांतीय खरीद कोटा घटाने के फैसले को पलटने के लिए सरकार की आलोचना की है।

इस मुद्दे पर पीकेआई और प्रांतीय एवं संघीय सरकार के बीच एक महीने से अधिक समय से विचार चल रहा है। लेकिन बड़ी संख्या में किसानों का सरकार विरोधी अभियान शुरू नहीं हुआ था। किसानों का कहना है कि उन्होंने सरकार की जरूरत पूरी करने के लिए गेहूं की फसल बोई, यह जानते हुए कि उनके तैयार गेहूं के दानों को खरीदा जाएगा। किसानों का कहना है कि उनके गेहूं की फसल तैयार है, इसलिए सरकार उसे खरीदना नहीं चाहती। बारिश हो जाने से फसल खेतों में सड़ रही है।

दूसरी ओर, पंजाब सरकार के पास किसानों की मांगों का कोई जवाब नहीं है। ऐसा लगता है कि उसने प्रदर्शनकारियों को मुख्य सड़कों और राजमार्गों को अवरुद्ध करने से रोकने के लिए पुलिस और दंगा-रोधी दस्तों की भारी टुकड़ियों को तैनात कर विरोध प्रदर्शन का मुकाबला करने का विकल्प चुना है।

सरकार का कहना है कि उसके पास पहले से ही कम से कम 23 लाख टन गेहूं का स्टोरेज है, जिससे पता चलता है कि वह इस सीजन में 40 लाख टन गेहूं नहीं खरीद सकती और इसका दोष कार्यवाहक सरकार पर मढ़ रही है।

पंजाब प्रांत के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि कार्यवाहक सरकार ने लगभग 30 लाख टन गेहूं का आयात किया है, जो प्रांत की जरूरत से ज्यादा है। इससे बहुत बड़ा कैरीओवर स्टॉक हो गया और क्षमता बहुत कम रह गई। यही कारण है कि पंजाब सरकार ने खरीद लक्ष्य को आधा करने का फैसला किया।

उन्होंने कहा कि कार्यवाहक सरकार ने एक मोबाइल एप्लिकेशन भी पेश किया, जो खाद्य विभाग को गेहूं बेचने के लिए आवेदन करने की एक नई प्रक्रिया है। यह इस तथ्य को आसानी से नजरअंदाज कर देता है कि ग्रामीण आबादी के अधिकांश किसान को इसके बारे में पता ही नहीं।

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