November 25, 2024

10 गुना बढ़ेंगे हिंद महासागर में ‘Hot Days’, मालदीव समेत 40 देशों के लिए बढ़ रहा खतरा

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नईदिल्ली

हिंद महासागर लगातार तेजी से गर्म हो रहा है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि पहले हिंद महासागर में अत्यधिक गर्मी के हर साल 20 दिन होते थे. लेकिन बहुत जल्द ये दस गुना बढ़ जाएंगे. ये 220 से 250 दिन प्रति वर्ष हो जाएगा. यानी हिंद महासागर स्थाई तौर पर समुद्री हीटवेव का शिकार बन जाएगा.

इसकी वजह से मालदीव जैसे 40 देशों को दिक्कत होगी. जिसमें भारत समेत कई एशियाई देश शामिल हैं. इसकी वजह से चरम मौसमी आपदाएं बढ़ जाएंगी. यानी बेमौसम बारिश हो सकती है. तूफान आ सकते हैं. फ्लैश फ्लड की आशंका बढ़ जाएगी. इसके अलावा समुद्री ईकोसिस्टम खराब होगा. कोरल रीफ बिगड़ेंगे.

भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के साइंटिस्ट रॉक्सी मैथ्यू कोल ने अपनी टीम के साथ हिंद महासागर के बढ़ते तापमान को लेकर स्टडी की. इस स्टडी में हिंद महासागर में जलवायु परिवर्तन में तेजी को दर्शाया गया है, जिसमें पर्याप्त गर्मी, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और चरम मौसम की घटनाओं में इजाफे की आशंका है.  

40 देशों में आएंगी आसमानी आफतें

हिंद महासागर से 40 देशों की सीमा लगती है. इन देशों में दुनिया की एक तिहाई आबादी रहती है. हिंद महासागर का औसत तापमान 1.2 से 3.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ने का अनुमान है. यह तापमान एक सदी में बढ़ जाएगा. हिंद महासागर का तापमान बढ़ने से आसपास के देशों में भारी बारिश और चक्रवाती तूफानों की संख्या और तीव्रता बढ़ जाएगी.

हिंद महासागर स्थाई समुद्री हीटवेव की ओर बढ़ रहा

हिंद महासागर लगभग स्थाई समुद्री हीटवेव की ओर बढ़ रहा है. इससे हीटवेव के दिनों की संख्या सालाना 20 से 250 तक बढ़ सकती है. समंदर पीएच स्तर में कमी आने से पानी एसिडिक होता जा रहा है. इससे कैल्सीफिकेशन बढ़ रहा है. जिससे मूंगा (Coarl Reefs) और समुद्री जीवन को भारी नुकसान होगा.  

इन चीजों पर जोर देने की जरूरत है

स्टडी में कहा गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग को तेजी से कम करना होगा. कार्बन उत्सर्जन घटाना होगा. लचीला बुनियादी ढांचा, टिकाऊ समुद्री अभ्यास, उन्नत पूर्वानुमान, अनुकूल कृषि और हिंद महासागर क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के कठोर प्रभावों को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की तरफ ध्यान देना होगा.

हिंद महासागर की गर्मी से इन जगहों को जोखिम

दुनिया के इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तनों से आसपास के देशों में बड़े स्तर पर सामाजिक और आर्थिक प्रभाव पड़ता है. पूरी दुनिया को देखें तो हिंद महासागर ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे बड़ा शिकार बन रहा है. इसकी वजह से तटीय मौसम में बदलाव आएगा. चरम मौसमी आपदाएं आएंगी. आ भी रही हैं.  

तटीय मौसम बदलेगा, चक्रवाती तूफानों की संख्या बढ़ेगी

अधिकतम गर्मी अरब सागर सहित उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर में है. दक्षिण-पूर्वी हिंद महासागर में सुमात्रा और जावा तटों पर कम गर्मी है. समुद्री सतह का तापमान बढ़ने से मौसमी चक्र में बदलाव आएगा. 1980-2020 के दौरान हिंद महासागर में अधिकतम बेसिन-औसत तापमान पूरे वर्ष 28°C (26°C-28°C) से नीचे रहा.

21वीं सदी के अंत तक न्यूनतम तापमान ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्र सतह का तापमान (°C) 28°C (28.5°C-30.7°C) से ऊपर रहेगा. अगर इस सदी के अंत तक तापमान इसी तरह रहेगा तो इससे चक्रवाती तूफानों की संख्या पर असर पड़ेगा. 1950 के दशक से भारी वर्षा की घटनाएं और भयंकर चक्रवात पहले ही बढ़ चुके हैं.

गहराई में भी तेजी से बढ़ रही है गर्मी

हिंद महासागर में तेज़ी से बढ़ गर्मी सिर्फ़ सतह तक सीमित नहीं है. सतह से लेकर 2000 मीटर की गहराई तक हिंद महासागर की गर्मी 4.5 ज़ेटा-जूल प्रति दशक की दर से बढ़ रही है. भविष्य में यह 16-22 ज़ेटा-जूल प्रति दशक की दर से बढ़ सकती है.  

रॉक्सी मैथ्यू कोल कहते हैं कि जिस हिसाब से गर्मी बढ़ रही है, वह हिरोशिमा-नागासाकी परमाणु विस्फोट से निकली ऊर्जा के बराबर हो रहा है. यानी एक दशक में इतना तापमान बढ़ जाएगा. इससे समुद्री जलस्तर तेजी से बढ़ेगा. कई द्वीप और तट समंदर में समा जाएंगे. क्योंकि अधिक तापमान की वजह से ग्लेशियर और समुद्री बर्फ भी पिघल रही है.  

हिंद महासागर की गर्मी से बिगड़ेगा मॉनसून

हिंद महासागर में एक इंडियन ओसन डाइपोल सिस्टम चलता है. यह एक प्राकृतिक घटना है, जिसका असर मॉनसून और चक्रवाती तूफानों के बनने पर पड़ता है. 21वीं सदी के अंत तक डाइपोल सिस्टम चरम स्थिति में पहुंच जाएगा. इसकी तीव्रता 66 फीसदी बढ़ने का अनुमान है. मध्यम स्तर की घटनाएं 52 फीसदी बढ़ सकती हैं.

उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में लगभग स्थाई रूप से गर्मी की लहरें आने लगेंगी. समुद्री गर्मी की लहरें कोरल रीफ्स, समुद्री घास, केल्प के जंगलों को बर्बाद कर देंगी. जिससे मत्स्य पालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. समुद्री उत्पादकता लगातार घट रही है. सतही क्लोरोफिल में भी गिरावट दर्ज की गई है. अनुमान है कि पश्चिमी अरब सागर में लगभग 8-10% की सबसे बड़ी कमी होगी.

 

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