कचरे में सैनिटरी पैड के लिए एक्स्ट्रा पैसे कैसे? सरकार पर क्यों भड़का सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए केरल सरकार को फटकार लगाई कि सैनिटरी कचरे के निपटान के लिए अतिरिक्त शुल्क कैसे लिया जा सकता है? शीर्ष अदालत ने अफसोस जताया कि एक तरफ हम मासिक धर्म स्वच्छता अभियान के लिए मुफ्त में सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध करा रहे हैं और दूसरी तरफ सरकार इसके कचरे के लिए पैसे ले रही है। अदालत ने सरकार से इस मामले में जवाब मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट इंदु वर्मा द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और केवी विश्वनाथन की पीठ ने राज्य सरकार से पूछा, “एक तरफ, हम स्कूलों और अन्य संस्थानों में मुफ्त में सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराकर मासिक धर्म स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी कर रहे हैं और दूसरी तरफ, राज्य सैनिटरी कचरे के निपटान के लिए शुल्क ले रहे हैं। यह कैसे हो सकता है? आप इस पर जवाब दें।''
इंदु वर्मा ने अदालत में कार्यवाही के दौरान तर्क दिया कि “जब ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों में ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है तो राज्य सैनिटरी कचरे के निपटान के लिए लोगों से अतिरिक्त शुल्क कैसे ले सकता है? सरकार द्वारा घर-घर कचरा उठाने के लिए हॉयर की गई एजेंसियां लोगों से सैनिटरी नैपकिन, बच्चों और वयस्क डायपर के लिए अतिरिक्त शुल्क ले रही है।"
वर्मा ने अदालत से दरख्वास्त की कि इस तरह के लिए जा रहे शुल्क के लिए नियम होने चाहिए। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने केरल के कोच्चि शहर का विशेष रूप से उल्लेख किया गया, जहां इस तरह के शुल्क वसूले जा रहे हैं। जवाब में, पीठ ने वर्मा के तर्क से सहमति जताते हुए सैनिटरी कचरे के निपटान को लिए जा रहे अतिरिक्त शुल्क पर चिंता जताई।
अदालत ने राज्य सरकार से पूछा, “आपको सैनिटरी कचरे के लिए अतिरिक्त शुल्क क्यों लेना चाहिए? यह मासिक धर्म स्वच्छता के संबंध में हमारे निर्देशों के उद्देश्यों के बिल्कुल विपरीत है। आपको इसे कैसे उचित ठहरा सकते हैं?”