September 27, 2024

UNDP के मानव विकास सूचकांक में भारत 132वें पायदान पर खिसका

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नई दिल्ली
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 के मानव विकास सूचकांक में भारत 191 देशों में 132वें पायदान पर खिसक गया है।

भारत का 0.6333 का एचडीआई मान देश को मध्यम मानव विकास श्रेणी में रखता है, जो 2020 की रिपोर्ट में इसके 0.645 के मान से कम है। वर्ष 2020 के मानव विकास सूचकांक में भारत 189 देशों में 131वें स्थान पर था।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘वैश्विक रुझानों की तरह, भारत के मामले में भी 2019 में एचडीआई मान 0.645 था जो 2021 में 0.633 तक आ गया, इसके लिए जीवन प्रत्याशा में गिरावट (69.7 से घटकर 67.2 वर्ष होने को) जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। भारत में स्कूली शिक्षा का अपेक्षित वर्ष 11.9 वर्ष और स्कूली शिक्षा का औसत वर्ष 6.7 साल है।’’

 किसी राष्ट्र के स्वास्थ्य, शिक्षा और औसत आय को मापने के पैमाने की दृष्टि से मानव विकास में लगातार दो साल- 2020 और 2021 में गिरावट दर्ज की गयी है, जबकि इससे पहले पांच साल काफी विकास हुआ था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह कोई भारत की इकलौता स्थिति नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर गिरावट के अनुरूप है, जो दर्शाता है कि 32 वर्षों में पहली बार दुनिया भर में मानव विकास ठहर सा गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मानव विकास सूचकांक की हालिया गिरावट में एक बड़ा योगदान जीवन प्रत्याशा में वैश्विक गिरावट का है, जो 2019 के 72.8 साल से घटकर 2021 में 71.4 साल हो गयी है।

यूएनडीपी के प्रशासक अचिम स्टेनर ने कहा, ‘‘संकट-दर-संकट से उबरने के लिए दुनिया हाथ पांव मार रही है। अनिश्चितता से भरी इस दुनिया में, हमें आम चुनौतियों से निपटने के लिए परस्पर वैश्विक एकजुटता की एक नयी भावना की आवश्यकता है।’’ स्टीनर ने कहा कि एक दूसरे से जुड़े अंतर्निहित संकटों ने भारत के विकास पथ को वैसे ही प्रभावित किया है जैसे दुनिया के अधिकांश हिस्सों में प्रभावित हुआ है।

एचडीआई मानव विकास के तीन प्रमुख आयामों की प्रगति को मापता है – एक लंबा और स्वस्थ जीवन, शिक्षा तक पहुंच और एक सभ्य जीवन स्तर। इसकी गणना चार संकेतकों – जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) के माध्यम से की जाती है।

जीवन प्रत्याशा में भी गिरावट
एचडीआई रिपोर्ट में 2019 में 0.645 से 2021 में 0.633 तक की गिरावट को जीवन प्रत्याशा में गिरावट 69.7 से 67.2 साल के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में मानव विकास लगातार दो सालों में घटा है,इससे पिछले पांच सालों में हुई प्रगति प्रभावित हुई है। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मानव विकास सूचकांक में भारत की गिरावट विश्व के अन्य देशों की भांति ही है। इससे पता चलता है कि दुनिया भर के तमाम देशों में मानव विकास में पिछले 32 सालों में पहली बार जोरदार गिरावट आई है।

यूएनडीपी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, मानव विकास सूचकांक की हालिया गिरावट में बड़ा योगदान जीवन प्रत्याशा में वैश्विक गिरावट का भी है। जीवन प्रत्याशा में गिरावट, साल 2019 में 72.8 साल से घटकर 2021 में 71.4 साल हो गई है। गौरतलब है कि साल 2021 के लिए नई मानव विकास रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले दो सालों में अनिश्चितता की परतें बढ़ रही हैं इतना ही नहीं, अभूतपूर्व तरीके से जीवन को प्रभावित करने वाला माहौल बन रहा है।

एक के बाद एक संकटों का सामना कर रहे लोग
यूएनडीपी के डायरेक्टर अचिम स्टेनर ने इन हालातों के बारे में बताया कि दुनिया भर के लाखों लोग एक के बाद एक कई  संकटों से जूझ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन संकटों के कारण मानव के जीवन जीने की लागत में बढ़ोतरी हो गई है। उन्होंने यह भी कहा कि ऊर्जा संकट लगातार बढ़ रहा है, जिसका असर मानव विकास पर पड़ रहा है। उन्होंने उर्जा संकट से निपटने के लिए जीवाश्म ईंधन पर जोर देने की बात कही। उन्होंने आगे कहा कि अनिश्चितता से भरी इस दुनिया में हमें अपनी साझा चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक एकजुटता की एक नई भावना की जरूरत है।

मानव विकास पर असमानता का प्रभाव कम
यूएनडीपी की रिपोर्ट के मुताबिक, रूस-यूक्रेन जंग, कोरोना महामारी आदि संकटों के असर ने विश्व के अन्य देशों की भांति ही भारत के विकास पथ को भी प्रभावित किया है। यूएनडीपी के रेजिडेंट प्रतिनिधि शोको नोडा ने हालिया रिपोर्ट को लेकर कहा कि मानव विकास सूचकांक में विश्व स्तर पर गिरावट के बावजूद भारत के लिए एक अच्छी खबर है। इस रिपोर्ट में 2019 की तुलना में मानव विकास पर असमानता का प्रभाव कम है। उन्होंने बताया कि भारत दुनिया की तुलना में पुरुषों और महिलाओं के बीच मानव विकास की खाई को तेजी से पाट रहा है। भारत में विकास कहानी समावेशी विकास, सामाजिक सुरक्षा, लिंग-उत्तरदायी नीतियों की दिशा में देश के निवेश को दर्शाती है।

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