देश के स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों के योगदान से अवगत हुए कृषि विश्वविद्यालय के छात्र
रायपुर
देश की आजादी के 75वें अमृत महोत्सव के अवसर पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, नई दिल्ली एवं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के संयुक्त तत्वावधान में तथा अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम, स्टील अथॉरिटी आफ इण्डिया लिमिटेड एवं हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के सहयोग से कृषि महाविद्यालय रायपुर के स्वामी विवेकानंद सभागार में स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान विषय पर एक दिवसीय गोष्ठी सह प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। एक दिवसीय गोष्ठ सह प्रदर्शनी के मुख्य अतिथि स्वामी विवेकानंद कृषि अंभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, रायपुर के अधिष्ठाता डॉ. विनय पाण्डेय थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कृषि महाविद्यालय, रायपुर के अधिष्ठाता डॉ. के.एल. नंदेहा ने की। गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में प्रखर विचार एवं चिंतक श्री सत्येन्द्र सिंह एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के सलाहकार श्री रविशंकर एवं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्रकल्याण डॉ. जी.के. श्रीवास्तव विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे
प्रदर्शनी में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मुगलों एवं अंग्रेजो के विरूद्ध जनजाति समाज के वीर नायकों द्वारा किये गये संघर्ष एवं विद्रोह को रेखांकित किया गया है। प्रदर्शनी में देश के विभिन्न हिस्सों के जनजाति समाज के नयक जिन्होंने मुगलों एवं अंग्रेजों से लोहा लिया उनके स्कैच एवं उनके द्वारा भारत के स्वतंत्रता संग्राम में दिये गये योगदान के बारे में जानकारी दी गई। जानजाति समाज के वीर नायकों पर आधारित प्रदर्शनी का बड़ी संख्या में महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने अवलोकन किया जिससे उनका ज्ञान वर्धन हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री सत्येन्द्र सिंह ने कहा कि देश की आजादी में वनवासी समुदाय का बहुत बड़ा योगदान रहा है, लेकिन कुछ लोगों ने इसका पूरा श्रेय मु_ीभर लोगों को दिया है। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज के लोगों ने आक्रमणकारियों से देश के जल, जंगल जमीन को बचाने के लिए संघर्ष किया। वे देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी पर झुल गए लेकिन देश पर आंच नहीं आने दी। श्री सत्येन्द्र सिंह ने कहा कि अंग्रेजों एवं मुगलों से देश के धर्म, संस्कृति, परंपरा को बचाये रखने का काम वनवासी समुदाय के लोगों ने किया। उन्होंने बताया कि मुगलों के आक्रमणकाल के समय आदिवासियों ने क्षेत्रीय एवं स्थानीय राजाओं जैसे वीर शिवाजी, राणा प्रताप एवं अन्य वीरों को मुगलों के खिलाफ युद्ध में सहयोग किया। उन्होंने कहा कि सन 1767 में तिलका मांझी ने 17 वर्ष की आयु में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। तिलका मांझी ने सन 1778 मंरामगढ़ छावनी को अंग्रेजों से मुक्त कराया था। श्री सत्येन्द्र सिंह ने देश के विभिन्न क्षेत्रों के जनजाति समाज के अनेक स्वतंत्रता सेनानियों – वीर चक्र बिशोई, वीर भगत, रामजी गोंड, जोगिया परमेश्वर, उ तिरत सिंह, फूकन संगमा, गुंडाधूर, वीर नारायण सिंह, सुरेन्द्र साय, बिरसा मुंडा जैसे अनेक महापुरूषों के जीवन एवं उनके द्वारा देश की आजादी के लिए दिये गये बलिदान के बारे में बताया। उन्होंने बताया अंग्रेजों एवं मुगलों के प्रति जो विद्रोह था वह पूरे भारत वर्ष – पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटका, आन्ध्रप्रदेश, उडिशा, बंगाल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, मेघालय, अरूणांचल प्रदेश, सिक्कीम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड़ एवं अन्य क्षेत्रों के जनजातीय समुदाय के लोगों द्वारा किया गया था। राष्ट्रीय जनजाति आयोग के सलाहकार श्री रविशंकर ने राष्ट्रीय जनजाति आयोग द्वारा जनजातियों के विकास के लिए किये जारहे कार्यों, गतिविधियों एवं जनजातीय समाज के अधिकारों की रक्षा एवं सरंक्षण के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने आयोग को की जाने वाले आॅनलाई एवं आॅफलाईन शिकायतों एवं उसके निराकरण की प्रक्रिया के बारे में छात्रों को जानकारी दी।