November 24, 2024

मृत्यु से पहले दिया गया प्रामाणिक बयान दोषसिद्धि का एकमात्र आधार हो सकता है: न्यायालय

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नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अदालत को विश्वास दिला सकने वाले ‘मृत्यु-पूर्व प्रामाणिक बयान’ पर भरोसा किया जा सकता है और यह बिना किसी पुष्टि के किसी आरोपी को दोषी ठहराने का एकमात्र आधार हो सकता है।

महाराष्ट्र के बीड जिले में 22 साल पहले पुलिस कांस्टेबल पत्नी की हत्या के मामले में एक पूर्व सैन्यकर्मी की सजा बरकरार रखते हुए शीर्ष अदालत ने 15 मई को यह टिप्पणी की। न्यायालय ने कहा कि अदालत को ‘मृत्यु-पूर्व’ बयान की सावधानीपूर्वक पड़ताल करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि यह सुसंगत एवं विश्वसनीय हो तथा किसी के सिखाने पर न दिया गया हो। इसने कहा, ‘‘जब मृत्यु-पूर्व दिया गया बयान प्रामाणिक और अदालत को विश्वास दिला सकने वाला हो तो उस पर भरोसा किया जा सकता है तथा यह बिना किसी पुष्टि के दोषसिद्धि का एकमात्र आधार हो सकता है।’’

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, इस तरह के मृत्यु-पूर्व बयान को स्वीकार करने से पहले अदालत को संतुष्ट होना चाहिए कि यह स्वेच्छा से दिया गया है, सुसंगत और विश्वसनीय है तथा किसी के सिखाने पर नहीं दिया गया है। एक बार जब इस तरह के निष्कर्ष पर पहुंच लिया जाए तो जैसा कि पहले भी कहा गया है कि यह सजा का एकमात्र आधार बन सकता है।’’ इस मामले में अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि महिला के साथ उसके पति और ससुराल के अन्य लोगों ने क्रूरता की थी।

मामले के अनुसार, महिला के साथ मारपीट की गई तथा उसके हाथ-पैर बांध दिए गए और मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा दी गई। घटना में महिला पूरी तरह झुलस गई। उसके पड़ोसी उसे अस्पताल ले गए जहां उसका ‘मृत्यु-पूर्व’ बयान दर्ज किया गया। इसके बाद बीड जिले के अंबाजोगई थाने में संबंधित प्रावधानों में प्राथमिकी दर्ज की गई।

निचली अदालत ने 2008 में पति को हत्या के मामले में दोषी ठहराया था और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी तथा 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। इस फैसले को बंबई उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था। शीर्ष अदालत ने महिला के ‘मृत्यु-पूर्व’ बयान को वैध सबूत के रूप में स्वीकार करते हुए कहा कि सबूतों पर गौर करने के बाद इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि अपीलकर्ता अपराध करने का दोषी है। इसने कहा कि अपीलकर्ता को अपनी सजा पूरी करने के लिए दो सप्ताह के भीतर निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है।

 

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