धार राजघराने की महारानी मृणालिनी देवी की जमीन अब सरकारी हो जाएगी
इंदौर
धार राजघराने की महारानी मृणालिनी देवी की जमीन अब सरकारी हो जाएगी। महारानी मृणालिनी देवी का कोई संतान नहीं था। उनका निधन आठ साल पहले हो गया है। वह वडोदरा राजघराने की बेटी थी। इंदौर संभाग के अलग-अलग हिस्सों में उनके 2000 बीघा जमीन हैं लेकिन कोई वारिस नहीं होने की वजह से उनकी जमीन सरकारी हो जाएगी। इस दिशा में आगे की कार्रवाई करने के लिए इंदौर संभाग के कमिश्नर ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। महारानी के निधन के आठ साल बाद चार हेक्टेयर भूमि पर दावेदारी पेश की थी। उनकी चार याचिकाएं खारिज हो गई हैं।
कौन थीं महारानी मृणालिनी देवी
दरअसल, धार के महाराज आनंदराव पवार की वह पत्नी थी। महाराज से मृणालिनी देवी की शादी 1949 में हुई थी। मृणालिनी देवी वडोदरा की राजकुमारी थी। शादी के बाद धार आईं। उनका जन्म 25 जून 1931 को हुआ था। शादी के एक साल बाद ही महारानी मृणालिनी देवी वड़ोदरा चली गईं। 1980 में महाराज आनंदराव पवार का निधन हो गया। इसके बाद महारानी नियमित रूप से धार आने लगी थीं। 1988 में मृणालिनी देवी महाराज सयाजीराव विश्विविद्यालय की कुलाधिपति बन गईं। उस समय किसी यूनिवर्सिटी की कुलाधिपति बनने वाली वह पहली महिला थीं।
2015 में हो गया निधन
वहीं, 02 जनवरी 2015 को महारानी मृणालिनी देवी का निधन हो गया। उनके निधन के आठ साल हो गए हैं। संतान नहीं होने की वजह से कोई वारिस नहीं है। ऐसे में अरबों रुपए की संपत्ति का उत्तराधिकारी कौन होगा, इसे लेकर साफ नहीं है। न ही इतने दिनों तक उनकी जमीन पर कोई हक जताने आया।
आठ साल बाद आए चार लोग
दरअसल, इंदौर संभाग के कई जिलों में महारानी की जमीन है। 2022-23 में चार राज्यों के चार परिवारों ने धार जिले की चार हेक्टेयर जमीन पर दावेदारी पेश की है। साथ ही नामांतरण के लिए आवेदन दिया। इसे तहसीलदार ने खारिज कर दिया। ऐसे कर इन लोगों ने कुल चार जगहों पर याचिका लगाई। इंदौर कमिश्नर के यहां से भी इनकी याचिका खारिज हो गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार संभाग में महारानी के नाम पर कुल 2000 बीघा जमीन है लेकिन एक छोटे टुकड़े पर दावेदारी सामने आई है।
संभागायुक्त ने दिए निर्देश
वहीं, नामांतरण की याचिका खारिज होने के बाद संभागायुक्त ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। संभागायुक्त दीपक सिंह ने इंदौर और धार कलेक्टर को तुरंत इन जमीनों पर कब्जा लेने के निर्देश दिए हैं। साथ ही एक-एक साल के लिए तीन साल तक पट्टा दें। इतना करने के बावजूद अगर वारिस नहीं मिलते हैं तो इसे लवारिस घोषित कर शासन के पक्ष में करने की कार्रवाई करें।
आठ साल बाद इन लोगों ने की थी अपील
गौरतलब है कि महारानी मृणालिनी देवी के निधन के आठ साल बाद अलोकिका राजे, कार्तिक घोरपड़े, शिवप्रियाराजे भोगले और गायत्रीदेवी चौगुले हैं। इनलोगों का कहना था कि महारानी ने एक वारिसनामा बनाया था, जिसमें सात लोग थे। उनमें तीन का निधन हो गया है और हम चार बचे हैं। वहीं, इनके अपील में कई खामियां और सही दस्तावेज नहीं होने की वजह संभागायुक्त ने इसे खारिज कर दिया।