November 25, 2024

ओडिशा हाई कोर्ट ने बलात्कारी और हत्यारे शेख आसिफ की सजा घटाई

0

भुवनेश्वर
 क्या अमानवीय अपराध का दोषी साबित शख्स पांच वक्त का नमाज पढ़ने लगे तो यह उसके सुधार का सबूत है? क्या पांच वक्त का नमाजी होना, समाज का जिम्मेदार और बेहतरीन इंसान होने की गारंटी है? कम से कम ओडिशा हाई कोर्ट के दो जजों को तो यही लगता है। हाई कोर्ट के दो जजों की पीठ ने सिर्फ छह वर्ष की मासूम से बलात्कार के अमानवीय और हत्या के खौफनाक अपराध में फांसी की सजा पाए 36 वर्षीय दोषी को यही कहते हुए राहत दे दी कि वह पांच वक्त का नमाज पढ़ता है। हाई कोर्ट ने नमाज पढ़ने के आधार पर ही दोषी की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।

हाई कोर्ट जजों की दलील तो देखिए

हाई कोर्ट की खंडपीठ ने अपने फैसले में दोषी की सजा कम करते हुए कहा, 'वह दिन में कई बार अल्लाह से दुआ करता है। वह दंड स्वीकार करने को भी तैयार है क्योंकि उसने अल्लाह के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस अपराध को 'दुर्लभतम' की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए, जिसमें सिर्फ मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है।' हाई कोर्ट की इस टिप्पणी पर वकीलों ने सवाल खड़ा किया है।

जस्टिस एसके साहू और जस्टिस आरके पटनायक की खंडपीठ ने शेख आसिफ अली को बच्ची के बलात्कार और हत्या के लिए आईपीसी की धारा 302/376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी ठहराने के निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। हालांकि, इसने आदेश दिया कि दोषी, जो 2014 में अपराध के समय 26 वर्ष का था, को उसकी मृत्यु तक जेल में रखा जाएगा। इसने राज्य सरकार से पीड़िता के माता-पिता को 10 लाख रुपये देने को कहा।

परिवार और आर्थिक स्थिति का भी दिया हवाला

रोजाना नमाज पढ़ने और सजा के लिए खुदा के सामने समर्पण करने के अलावा बेंच ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए कई अन्य आधार भी गिनाए। बेंच ने कहा, 'वह एक पारिवारिक व्यक्ति है और उसकी 63 साल की बूढ़ी मां और दो अविवाहित बहनें हैं। वह अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था और मुंबई में पेंटर का काम करता था। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है।'

हाई कोर्ट के दोनों जजों ने आगे कहा, 'स्कूल में उसका चरित्र और आचरण अच्छा था और उसने वर्ष 2010 में मैट्रिक पास किया था। परिवार में आर्थिक समस्याओं के कारण वह अपनी उच्च शिक्षा जारी नहीं रख सका। वह अपनी किशोरावस्था के दौरान क्रिकेट और फुटबॉल का अच्छा खिलाड़ी था। यद्यपि वह लगभग दस वर्षों से न्यायिक हिरासत में है, जेल अधीक्षक और मनोचिकित्सक की रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि जेल के अंदर उसका आचरण और व्यवहार सामान्य है, सह-कैदियों के साथ-साथ कर्मचारियों के प्रति उसका व्यवहार सौहार्दपूर्ण है और वह जेल प्रशासन के हर अनुशासन का पालन कर रहा है।'

फैसला लिखने वाले जस्टिस साहू ने कहा, 'न तो पूरी कैद के दौरान उसके खिलाफ कोई प्रतिकूल रिपोर्ट है और न ही उसने जेल में कोई अपराध किया है। वह दिन में कई बार अल्लाह से दुआ मांगता है और वह सजा स्वीकार करने के लिए तैयार है क्योंकि उसने अल्लाह के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है।' हाईकोर्ट ने कहा, 'इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं कि अपीलकर्ता सुधार और पुनर्वास से परे है। सभी तथ्यों और परिस्थितियों, गंभीर परिस्थितियों और कम करने वाली परिस्थितियों को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता के लिए मृत्युदंड ही एकमात्र विकल्प है और आजीवन कारावास का विकल्प पर्याप्त नहीं होगा और यह पूरी तरह से असंगत है।'

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *