November 30, 2024

कैप्टन अंशुमान की पेंशन, पीएफ, बीमा में किसको क्या; सेना ने बताया

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नई दिल्ली

शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के परिजनों को मरणोपरांत मिलने वाले तमाम तरह के आर्थिक लाभों पर भारतीय सेना का बड़ा बयान सामने आया है। सेना ने अपने में बताया है कि शहीद कैप्टन को मिलने वाले इन लाभों में पत्नी को क्या-क्या और माता-पिता को क्या-क्या लाभ मिलेगा।

भारतीय सेना के अधिकारियों का कहना है कि वसीयत को लेकर सेना के नियम के अनुसार, बीमा, पीएफ और अन्य लाभों को पत्नी और माता-पिता के बीच बांटा जाता है, जबकि पेंशन पत्नी को दी जाती है। ड्यूटी के दौरान मारे गए शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता ने आरोप लगाया था कि बहू ने उन्हें उस  कीर्ति चक्र को छूने तक का मौका नहीं दिया जो उसके उनके बेटे के बलिदान के बदले मिला था। साथ ही उन्होंने भारतीय सेना में शहीदों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता के मानदंडों में भी बदलाव की मांग की थी।

शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता द्वारा अपनी बहू स्मृति सिंह के खिलाफ लगाए गए आरोपों के बीच, भारतीय सेना के सूत्रों ने स्पष्ट किया कि एक करोड़ का आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस फंड (एजीआईएफ) उनकी पत्नी और माता-पिता के बीच बांटा गया, जबकि पेंशन सीधे उनके पत्नी के पास जाएगी।

द हिंदू में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों ने बताया कि शहीद सैन्य अधिकारी की पत्नी को ज्यादा लाभ मिल रहे हैं, क्योंकि उन्हें वसीयत में नामित किया गया था। साथ ही यह भी बताया कि कैप्टन सिंह के पिता सेना में एक सेवानिवृत्त जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) हैं और खुद एक पेंशनभोगी हैं। साथ ही एक पूर्व सैनिक के रूप में अन्य लाभ भी उठाते हैं। सेना के एक सूत्र ने बताया कि नीति के अनुसार, एक बार जब एक अधिकारी की शादी हो जाती है, तो उसकी पत्नी पेंशन के लिए नामांकित होती है।

कैप्टन अंशुमान सिंह को मार्च 2020 में आर्मी मेडिकल कोर में नियुक्त किया गया था। वह सियाचिन ग्लेशियर पर चंदन कॉम्प्लेक्स के लिए चिकित्सा अधिकारी के रूप में 26 पंजाब रेजिमेंट में शामिल हुए। 19 जुलाई, 2023 को चंदन ड्रॉपिंग जोन में आग लग गई। शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह ने इस दौरान आग में फंसे चार से पांच व्यक्तियों को बचाया, लेकिन खुद की जान गंवा दी। उनके इस वीरतापूर्ण कार्य के लिए उन्हें मरणोपरांत देश के दूसरे सबसे बड़े शांतिकालीन वीरता पुरस्कार कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 जुलाई को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक रक्षा अलंकरण समारोह में उनकी पत्नी और मां मंजू सिंह को प्रदान किया था।

कैप्टन अंशुमान और स्मृति सिंह की शादी को केवल पांचच महीने ही हुए थे। हालांकि, वे उससे पहले आठ वर्षों तक रिश्ते में थे। पुरस्कार समारोह के कुछ दिनों बाद कैप्टन के माता-पिता रवि प्रताप सिंह और मंजू सिंह ने आरोप लगाया कि उन्हें कीर्ति चक्र को छूने का भी मौका नहीं मिला। उन्होंने वित्तीय सहायता के लिए भारतीय सेना के नेक्स्ट ऑफ किन (एनओके) मानदंडों में बदलाव की मांग की।

सेना के कई सेवारत अधिकारियों ने सोशल मीडिया पर स्मृति सिंह के खिलाफ इस्तेमाल की गई उनके सास-ससुर की कड़ी भाषा पर आश्चर्य व्यक्त किया। उनका कहना है कि किसी अधिकारी के नोमिनी के रूप में नामांकन पूरी तरह से अधिकारी की पसंद है। इसमें जीवनसाथी की कोई भूमिका नहीं है। वह एक दुखी पत्नी के रूप में हकदार हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ऐसे मुद्दे पुरुषों के साथ सामने आते हैं, खासकर जब आश्रित माता-पिता वगैरह हों। ऐसे मुद्दों को अक्सर यूनिट द्वारा हल किया जाता है, लेकिन इस मामले में यह विशेष रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि अधिकारी के पिता खुद एक पूर्व सैनिक हैं।

सेना में वसीयत का निष्पादन
सेना में वसीयत प्रक्रिया को समझाते हुए, अधिकारियों ने कहा कि जब एक अधिकारी सेना में नियुक्त होता है तो वह आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस फंड (एजीआईएफ), प्रोविडेंट फंड और बीमा के लिए NoK को नामांकित करता है। इन सभी के लिए कई नामांकित व्यक्ति हो सकते हैं, लेकिन पेंशन के लिए ऐसा कोई विकल्प नहीं दिया गया है। चूंकि कमीशन के समय अधिकारी ज्यादातर अविवाहित होते हैं, इसलिए माता-पिता को नामांकित किया जाता है और शादी के बाद अधिकारियों को इसे अपडेट करने के लिए कहा जाता है।

एक अधिकारी ने बता कि अगर अंशुमान की पत्नी को ज्यादा लाभ मिल रहा है तो इसका कारण यह है कि उसने अपनी वसीयत में उसे नामित किया है। उदाहरण के लिए कैप्टन सिंह के मामले में एजीआईएफ का  50 प्रतिशत उनकी पत्नी और माता-पिता के बीच और पीएफ के लिए यह उनकी पत्नी के लिए 100 प्रतिशत था।

 

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