‘अल्पसंख्यकों ने हरा दिया’, अधीर चौधरी ने सोनिया को बताई अपनी पराजय की वजह
कोलकाता
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की करारी हार के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने इसके लिए तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराया है। दिल्ली में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी से मुलाकात के दौरान अधीर ने यह आरोप लगाया। प्रदेश कांग्रेस के सूत्रों ने बताया है कि उन्होंने सोनिया गांधी को एक लिखित रिपोर्ट दी है जिसमें अल्पसंख्यक वोटो के ध्रुवीकरण का जिक्र है। उन्होंने पूरे राज्य सहित मुर्शिदाबाद की बहरामपुर लोकसभा सीट से भी अपनी हार के लिए भी इसी कारण को जिम्मेदार ठहराया है।
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बंगाल में दो सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार यह संख्या घटकर एक रह गई। अधीर रंजन चौधरी अपनी परंपरागत सीट बहारामपुर से हार गए। अधीर ने सोनिया गांधी से मुलाकात में कहा कि तृणमूल ने उन्हें हराने के लिए एक मुस्लिम उम्मीदवार (तृणमूल के प्रत्याशी युसूफ पठान) को उतारा था, जिससे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ।
अधीर ने कहा, पश्चिम बंगाल में साम्प्रदायिक राजनीति का प्रवेश हो गया है। पहले बंगाल ऐसी राजनीति से दूर था। मुझे हराने के लिए तृणमूल ने हिंसा का सहारा लिया। ममता बनर्जी का मुख्य लक्ष्य मुझे हराना था। मुझे साम्प्रदायिक राजनीति का शिकार बनाया गया।
अधीर की इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि मुर्शिदाबाद में लंबे समय तक काम करने के बावजूद अल्पसंख्यक वोट बैंक ने उनके वजाय अपने मजहब से जुड़े उम्मीदवार को चुनना पसंद किया। चौधरी ने यह भी दावा किया है कि तृणमूल ने प्रचार में एजेंसियों को किराए पर लेकर भाजपा के लिए हिन्दू वोट खींचने की कोशिश की।
उल्लेखनीय है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा विरोधी दलों ने गठबंधन कर मुकाबला किया, जिसमें कांग्रेस, सीपीएम, आप और डीएमके जैसे दल शामिल थे। लेकिन बंगाल में तृणमूल और कांग्रेस के बीच कोई समझौता नहीं हो पाया। ममता ने स्पष्ट किया कि वह बंगाल में अकेले चुनाव लड़ेगी। नतीजतन, तृणमूल ने 29 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा ने 12 सीटें जीतीं और वाम-कांग्रेस गठबंधन को केवल एक सीट पर संतोष करना पड़ा।
क्या कहना है तृणमूल काः तृणमूल प्रवक्ता शांतनु सेन ने कहा, अधीर बाबू को सोनिया गांधी से सच्चाई बतानी चाहिए थी। सच यह है कि उन्होंने कांग्रेस के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए सीपीएम और आईएसएफ के साथ गठबंधन कर तृणमूल का विरोध किया, जिससे भाजपा को मदद मिली। अगर ऐसा नहीं होता, तो भाजपा 12 सीटें नहीं जीत पाती।