बाढ़ से डूबते शहर: नियोजन पर ध्यान नहीं दिया तो समस्या और गंभीर होगी, कुप्रंबधन से शहरी बाढ़ का खतरा बढ़ा
नई दिल्ली
जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों एवं शहरों के नियोजन में कुप्रबंधन के कारण शहरी बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। हाल में बेंगलुरु में आई बाढ़ के रूप में देश ने प्रत्यक्ष रूप से इस खतरे को देखा है। जलवायु विज्ञानियों का कहना है कि यदि शहरों के नियोजन पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह समस्या आने वाले दिनों में और गंभीर हो सकती है।
पूर्व और दक्षिण एशिया में अत्यधिक वर्षा में वृद्धि होगी
जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार, 1.5 डिग्री सेल्सियस से 2 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने से पूरे एशिया में, विशेष रूप से पूर्वी और दक्षिण एशिया में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि होगी। अत्यधिक वर्षा का सर्वाधिक दुष्प्रभाव शहरी बाढ़ के रूप में आ सकता है क्योंकि अनियोजित शहरीकरण भूमि की सोखने की क्षमता को कम करता है। जल प्रवाह को मोड़ता है और वाटरशेड को भी प्रभावित करता है। पहली बार 2005 में मुंबई में आई बाढ़ ने विशेषज्ञों का ध्यान इस तरफ खींचा था।
बेंगलुरु की बाढ़ ताजा उदाहरण
बेंगलुरु की हालिया बाढ़ इसका ताजा उदाहरण है, जहां भारत के आईटी हब ने कथित तौर पर 225 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान दर्ज किया है। शहर में 5 सितंबर को 24 घंटे की अवधि में 132 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई, जो इस क्षेत्र की मौसमी वर्षा का महज 10% है। 26 सितंबर, 2014 के बाद से यह सबसे गर्म दिन था।
झीलों के अनधिकृत विकास से बाढ़ भयावह
बेंगलुरु को झीलों के शहर के रूप में जाना जाता था, जो बाढ़ और सूखे से बचावकर्ता के रूप में काम करती हैं। तीव्र शहरीकरण प्रक्रिया ने आर्द्रभूमियों, बाढ़-मैदानों आदि पर अतिक्रमण कर लिया जिससे बाढ़ का मार्ग बाधित हो गया। बेंगलुरु में प्राकृतिक बाढ़ भंडारण के नुकसान के साथ, झीलों के अनधिकृत विकास से भी बाढ़ भयावह हुई। शहरीकरण से जल निकायों के बीच का नेटवर्क पूरी तरह से टूट गया है, जिससे वे स्वतंत्र संस्थाएं बन गए हैं। नालियों के जाम होने से शहर के रिहायशी इलाके जलमग्न हो गए। यह दर्शाता है कि अनियोजित शहरीकरण से कैसे समस्या भयावह हुई।