कुंडली में यह स्थिति होने पर मिलती है खुद के घर की खुशी
दिशाओं के ज्ञान का नियम कहता है कि शनिवार को अपने घर की यात्रा को छोड़कर अन्य किसी भी स्थान की यात्रा की में सफलता संदिग्ध रहती है। रविवार को पूर्व में जाना अच्छा माना गया है।
ज्ञान का पिटारा
वास्तु के नियम कहते हैं कि गृह में दक्षिण-पूर्व के हिस्से को मंथन का क्षेत्र कहा जाता है। यह मंथन शारीरिक भी हो सकता और मानसिक भी। चिंतन-मनन का यही स्थान माना जाता है। प्राचीन काल में मक्खन और घी निकालने के लिए गृह के इसी हिस्से का इस्तेमाल किया जाता था।
बात पते की
कुंडली के षष्ठ भाव में यदि राहु हों, तो व्यक्ति जीवन में अपार धनार्जन करते हैं। आर्थिक कष्ट इनके निकट आकर चुपचाप सरक जाता है। स्वास्थ्य उत्तम रहता है। इन्हें रोग का डर नहीं होता। इनको आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है। पराक्रम और शक्ति प्रचुर होती है। ये हृदय से उदार, धैर्यवान एवं बुद्धिमान लोगों में शुमार होते हैं। यह राहु शत्रुओं को पराभूत करने के लिए जाना जाता है। ऐसे लोग विरोधियों पर सहजता से विजय हासिल कर लेते हैं। कालांतर में बहुत ख्याति प्राप्त करते हैं। शुभ राहु सरकार की कृपा देते हैं और उत्तम वस्तुओं का उपभोग कराते हैं। वस्त्र, वाहन और आभूषणों का भी श्रेष्ठ सुख मिलता है। जीवनसाथी का उत्तम सुख प्राप्त होता है। राहु के दुष्प्रभाव से नकारात्मक अथवा खराब लोगों के साथ संगति हो सकती है। करियर में अस्थिरता और अनिश्चितता भी व्याप्त हो सकती है। यह राहु ऊपरी बाधाओं और रहस्यमयी विकारों का भी कारक है। मामा, मौसी या चाचा से तनाव मिल सकता है।
प्रश्न: कौन सा ग्रह योग अपना ख़ुद का घर देता है? -रूबी अग्रवाल
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि यदि केंद्र या त्रिकोण में शुभ ग्रह विराजमान हों, अथवा सुख भाव में चर राशि यथा मेष, कर्क, तुला, मकर हो अथवा चतुर्थ भाव के स्वामी चर राशियों में आसीन हों, साथ ही शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हों, या भाग्येश चौथे में व चतुर्थेश भाग्य भाव में बैठे हों, तो स्वयं के घर का आनंद मिलेगा। सप्तम भाव के मालिक चौथे भाव में उच्च का होकर विराजे हों, तो जीवनसाथी की मदद से अपना आवास मिलेगा। अगर सुख भाव का स्वामी अपने ही घर या मित्र राशि में हों, तो पैतृक निवास का सुख मिलता है। यदि तृतीय घर का मालिक चतुर्थ भाव में हो, तो भाई-बहन की मदद से स्वगृह प्राप्त होता है। चतुर्थेश उच्च का होकर कहीं भी आसीन हो और जिस भाव में उच्च का हो व उसका मालिक भी उच्च का हो, तो भव्य भवन, श्रेष्ठ बंगले या महल का आनंद मिलता है। चौथे भाव का स्वामी यदि तीसरे घर में हो, तो व्यक्ति अपने पराक्रम या सामर्थ्य से छोटा घर निर्मित कर पाता है।
प्रश्न: मिथुन राशि के चिह्न दो सिर के व्यक्ति का क्या मतलब है? इनका नक्षत्र और तत्व कौन सा है? -कुणाल राय
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि इनके चिह्न दो सिर का अर्थ उनके अपार बौद्धिक और मानसिक क्षमता से है। एक प्रकार से ये अलौकिक शक्ति और ऊर्जा से सराबोर होते हैं। मिथुन राशि वायु तत्व की राशि है, जिसमें मृगशीर्ष के दो चरण, आर्द्रा के चारों चरण और पुनर्वसु के तीन चरण शामिल हैं। ऐसे लोग वाकपटु, जोखिम उठाने वाले, जिज्ञासु, प्रेमी, साहसी, अधीर और दयालु होते हैं। नई बातें ये बहुत जल्द सीख लेते हैं। इनकी पसंद-नापसंद बदलती रहती है। ये जीवन के कुछ काल खंड में बहुत अधिक भ्रमण करते हैं। ये धनी, संपन्न और प्रभावशाली लोगों में शुमार होते हैं। इनका व्यक्तित्व बहिर्मुखी नहीं होता, फिर भी ये विशिष्ट समूह में ख्याति अर्जित करते हैं। दूसरों के कारण या ग़लत फ़ैसले से बड़ी आर्थिक क्षति होती है। इन्हें साहित्य, कला और संगीत में गहरा लगाव होता है।
प्रश्न: सपिंड गोत्र और बंधु गोत्र में क्या भेद है? गोत्र जाति से अलग है या जाति का हिस्सा है? -अविनाश पाटील
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि गोत्र परंपरा में सामान्यत: ऋषियों को मूल व्यक्ति माना गया है। यानी गोत्र से अर्थ कुल या वंश से है, जो उसके किसी मूल व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। हिंदू विधि के मिताक्षरा तथा दायभाग नामक दो प्रसिद्ध सिद्धांत हैं। मिताक्षरा सिद्धांत के अनुसार रक्त संबंधियों को दो प्रवर्गों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम- सपिंड गोत्रज अथवा गोत्रिय, द्वितीय- बंधु या अन्य गोत्रिय। गोत्रीय से आशय पितृ पक्ष यानि पिता से संबंधित, अन्य गोत्रिय का अर्थ मातृपक्ष से संबंधित शृंखला है।
प्रश्न: क्या दिशाओं का संबंध ग्रहों से भी है? -अमेय गावडे
उत्तर: हां। वास्तु के नियमों के अनुसार पूर्व दिशा का संबंध सूर्य से है। वहीं आग्नेय का शुक्र, दक्षिण का मंगल, नैऋत्य का केतु, पश्चिम का शनि, वायव्य का चंद्र, उत्तर का बुध और ईशान्य का संबंध गुरु से है। गृह का द्वार अगर दक्षिण के मध्य में हो, तो इसका स्वामी मंगल होने से देह में खून की समस्या व खून के आपसी रिश्तों में तनाव होता है। इसे यम की दिशा भी कहा गया है। अन्य वास्तु दोष होने पर यह दिशा कष्ट बढ़ाती है। हालांकि, शेष वास्तु ठीक है, तो यह दिशा राजनैतिक लाभ का कारण बनती है।