छत्तीसगढ़ में 18 सितंबर, 2022 को प्राइड मार्च (प्राइड मार्च) होने जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में 18 सितंबर, 2022 को प्राइड मार्च (प्राइड मार्च) होने जा रहा है। इसका आयोजन मितवा समिति और क्वीरगढ़ के द्वारा किया जा रहा है, जो LGBTQ+ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर) और तृतीय लिंग समुदायों के उत्थान के लिए काम करते हैं। इस आयोजन को मुंबई के हमसफ़र ट्रस्ट और दिल्ली के केशव सूरी फाउंडेशन का सहयोग प्राप्त है।
इस मार्च में एक हज़ार से अधिक LGBTQ+ समुदाय के व्यक्तिओं के शामिल होने की उम्मीद है। यह मार्च घड़ी चौक से शुरू होकर तेलीबांधा तालाब परिसर में समाप्त होगी। तेलीबांधा परिसर में सामाजिक जागरूकता के लिए एक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी रखा गया है। इसमें समुदाय के विभिन्न कलाकार अपनी कला से समानता और सहिष्णुता के संदेश साझा करेंगे।
ग़ौरतलब है कि दुनिया के सभी प्रमुख शहरों में LGBTQ+ समुदाय अपने अधिकारों की मांग के लिए प्राइड मार्च निकलते जाता हैं। छत्तीसगढ़ के रायपुर में ऐसा पहला मार्च २०१९ में आयोजित किया गया था।
मितवा समिति की अध्यक्ष विद्या राजपूत ने बताया कि पिछले कई वर्षों से छत्तीसगढ़ की सरकार समुदाय को स्नेहमय सहयोग देती आयी है। रवीना बरिहा ने कहा कि इस सहयोग के कारण तृतीया लिंग व्यक्तिओं के लिए गरिमा गृह का निर्माण का निर्माण हुआ, पुलिस विभाग में भी तृतीया लिंग व्यक्तिओं की भर्ती की गयी। हमसफर ट्रस्ट के टिनेश चोपडे ने कहा कि इस समुदाय के उत्थान के लिए निरंतर प्रयास चल रहे हैं। केशव सूरी फाउंडेशन के अक्षय त्यागी ने समुदाय में कौशल विकास की आवश्यकता पर जोर दिया।
क्वीरगढ़ के सिद्धांत बेहरा ने कन्वर्शन थेरेपी करने वालो के खिलाफ सख्त साज़ की मांग की। कन्वर्शन थेरेपी एक तरीके का फ्रॉड है जिसमे किसी की लिंग या लैंगिकता को बदलने का दवा किआ जाता है। श्रद्धा नाथ ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और भविष्य में आने वाले समान नागरिक संहिता के अंतर्गत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने की बात कही। यह समलैंगिक जोड़ों को बीमा/ इन्शुरन्स, शिशु गोद लेने की प्रक्रिया, उत्तराधिकार आदि से संबंधित मामलों में राहत देगा होगा।
क्वीरगढ़ के अंकित दास ने घरों, स्कूलों, कॉलेजों, दफ्तर और सार्वजनिक स्थानों में भेदभाव के खिलाफ कानूनी सुरक्षा की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि शैक्षणिक और चिकित्सा संस्थानों में जागरूकता और संवेदीकरण गतिविधियों को अनिवार्य किया जाना चाहिए। अक्षय मानकर ने कहा कि धारा 377 के संशोधन के बाद समुदाय भारत में सुरक्षति महसूस करता है जबकि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देश अभी भी समलैंगिक होना अपराध है। इसके लिए आजीवन कारावास और मृत्युदंड तक दिया जाता है। जिस तरह भारत पडोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता कानून के तहत संरक्षण देता है, उसी तरह इन देशों के LGBTQ+ व्यक्तियों को भी शरण दी जानी चाहिए।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में मितवा समिति से पपी देबनाथ और क्वीरगढ़ से वेद भी शामिल थे।