अजित पवार से रिश्तों पर बोले शरद पवार, अपने घर पर तो हम साथ हैं लेकिन…
मुंबई
विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य शरद पवार ने एक बार फिर अजित पवार पर बड़े प्यार से अपने एक्सपीरियंस वाला तीर फेंक दिया। इशारों-इशारों में उन्होंने जता दिया कि वह चुनाव में इमोशनल कार्ड खेलने से नहीं चूकेंगे। महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के चपलून में मीडियावालों ने पूछ लिया कि चाचा-भतीजे की जोड़ी फिर कब साथ आएगी? इसके जवाब में बड़े पवार ने कहा कि 'घरात तारी एकतरच आहेत' यानी कम से कम घर पर तो हम साथ हैं। हालांकि उन्होंने साफ किया कि अजित पवार अब अलग राजनीतिक दल का नेतृत्व कर रहे हैं। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने सीएम चेहरे के सवाल पर भी अपना इरादा साफ कर दिया।
अजित दूसरी पार्टी के हैं, उनके फैसलों पर टिप्पणी क्यों?
पिछले साल जुलाई में अजित पवार एनसीपी तोड़कर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में उपमुख्यमंत्री के तौर पर शामिल हो गए थे। लोकसभा चुनाव में बारामती में उन्होंने अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को बहन सुप्रिया सुले के खिलाफ उतारा था। चुनाव के बाद अजित पवार ने इस फैसले को गलती बताया था। इस बारे में पूछे जाने पर शरद पवार ने कहा कि अजित पवार एक अलग पार्टी में हैं। हमें किसी दूसरी पार्टी द्वारा लिए गए फैसलों पर टिप्पणी क्यों करनी चाहिए?"
कम्युनिस्ट और पीडब्लयूपी के साथ भी करेंगे समझौता
एनसीपी (एसएचपी) के अध्यक्ष शरद पवार ने विधानसभा चुनाव के लिए महाविकास अघाड़ी की रणनीति पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि हम विकास के मुद्दों को जनता के सामने रखेंगे और जनता की राय लेंगे। ऐसा करते समय हम समान विचारधारा वाले अन्य दलों और संगठनों को भी अपने साथ लेंगे। हम कम्युनिस्ट पार्टी (दोनों गुट), पीजेंट वर्कर्स पार्टी और अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ लोगों के पास जाएंगे और महाराष्ट्र के लिए एक प्रगतिशील विकल्प बनाने का प्रयास करेंगे।
विधानसभा चुनाव के बाद ही तय होगा मुख्यमंत्री
शरद पवार ने कहा कि कुछ लोग मुझसे पूछते हैं कि आपका नेता कौन होगा? आपका मुख्यमंत्री पद का चेहरा कौन होगा? मैं उनसे बस इतना कहना चाहता हूं कि हम जनता के बीच जा रहे हैं। चुनाव के बाद हम मिल-बैठकर फैसला करेंगे और राज्य को एक योग्य नेता देंगे। 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनाव का उदाहरण देते हुए शरद पवार ने कहा कि तब जयप्रकाश नारायण के सुझाव पर समान विचारधारा वाली पार्टियां एक साथ आईं और चुनाव का सामना किया। जनता ने भी उन पार्टियों को ताकत दी और उन्हें चुना। चुनाव जीतने के बाद जनता पार्टी का गठन हुआ और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री चुने गए। जब वोट मांगा गया तब मोरारजी देसाई हमारे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं थे। इसके बाद भी जनता ने हमें सत्ता दी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। हमारा पिछला अनुभव है, हम महाराष्ट्र में भी यही काम करने जा रहे हैं।