डेंगू और मलेरिया का प्रकोप, फॉगिंग के नाम पर खानापूर्ति
भोपाल
राजधानी में डेंगू और मलेरिया का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है, लेकिन मच्छर मारने की चिंता नगर निगम को नहीं है। वह तो सिर्फ धुआं उड़ा कर खानापूर्ति करने में लगा हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि नगर निगम की फागिंग मशीनों में पायरथ्रान मिलाया जाता है, जबकि स्वास्थ्य विभाग में 2019 में फागिंग के लिए डीजल में मिलाने से इसे मना कर दिया था। इसकी जगह साइफ्लोथ्रान नामक केमिकल को पानी के साथ मिलाकर धुंआ करने के निर्देश दिए थे, लेकिन आज भी कुछ जगहों पर बिना दवाई मिलाए धुंआ कर मच्छर भगाने की कोशिश हो रही है। यह देखकर कहना गलत नहीं होगा कि फॉगिंग के नाम पर शहर में खानापूर्ति की जा रही है। इधर नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि मशीनों में नियमानुसार दवाई मिलाकर ही धुंआ किया जा रहा है, लेकिन कुछ स्वास्थ्य अधिकारियों बताते हैं कि दवा बिना मिले ही फागिंग कराई जा रही है।
महज 31 फागिंग मशीनें
8 साल पहले नगर निगम ने 11 लाख खर्च कर तीन आधुनिक मशीनें खरीदी थी, लेकिन अब इनका उपयोग नहीं हो रहा है। एक मशीन का तो पता ही नहीं चल रहा कि आखिर कहां गई। एक आॅटोमेटिक मशीन वर्कशॉप में धूल खा रही है । यह मशीन अत्याधुनिक है और लिक्विड फॉर्म में भी दवाओं का छिड़काव करने में सक्षम है। निगम के पास 19 जोन में हैंड फागिंग मशीन, 10 आॅटो पर रखकर फागिंग करने वाली मशीन और 2 आॅटोमेटिक फागिंग मशीन है। इस तरह 31 मशीनों के भरोसे भोपाल की लगभग 25 लाख जनता है।
नगर निगम के कॉल सेंटर में रोज पहुंच रही शिकायतें
नगर निगम के कॉल सेंटर में फॉगिंग करवाने के लिए 15 से 20 शिकायतें पहुंचती है। चूंकि जिस दिन बारिश होती है, उस दिन फॉगिंग नहीं कराई जाती। इस कारण फॉगिंग की शिकायतों का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ मच्छरों का प्रकोप इतना बढ़ गया है कि शहर में 100 से अधिक मामले डेंगू,चिकनगुनिया के सामने आ चुके हैं। डेंगू के 73 मरीज मिले चुके हैं।