उद्धव ठाकरे vs एकनाथ शिंदे: कैसे होगा ‘असली शिवसेना’ का फैसला? EC की प्रक्रिया समझें 5 सवालों में
नई दिल्ली
महाराष्ट्र की सियासी जंग में मंगलवार को बड़ा दिन साबित हुआ। एक ओर जहां सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे कैंप की याचिका को लेकर सुनवाई पर रोक की मांग कर रही उद्धव ठाकरे की याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को 'असली शिवसेना' का फैसला करने के लिए कहा है। अब आयोग पार्टी के 'धनुष-बाण' चुनाव चिह्न पर भी फैसला लेगा।
इधर, गुजरात पहुंचे मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने भी साफ कर दिया है कि मामले में आयोग निष्पक्ष रहेगा। साथ ही उन्होंने कहा कि शिवसेना और चुनाव चिह्न के दावे पर फैसला 'बहुमत' के आधार पर लिया जाएगा। दरअसल, चुनाव चिह्न से जुड़े मामलों का निपटारा करने के लिए आयोग इलेक्शन सिम्बल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर 1968 की मदद लेता है। इसके पैराग्राफ 15 के जरिए आयोग दो गुटों के बीच में पार्टी के नाम और चिह्न के दावे पर फैसला लेता है।
किसी एक गुट को मान्यता देने से पहले किन बातों पर विचार किया जाता है?
पैराग्राफ 15 के तहत चुनाव आयोग ही एकमात्र अथॉरिटी है, जो विवाद या विलय पर फैसला ले सकती है। प्राथमिक रूप से चुनाव आयोग राजनीतिक दल के अंदर संगठन स्तर और विधायी स्तर पर दावेदार को मिलने वाले समर्थन की जांच करता है।
किस गुट के पास बहुमत है, यह कैसे पता लगाया जाता है?
आयोग पार्टी के संविधान और उसके सौंपी गई पदाधिकारियों की सूची की जांच करता है। आयोग संगठन में शीर्ष समिति के बारे में पता लगाता है और जांच करता है कि कितने पदाधिकारी, सदस्य बागी दावेदार का समर्थन कर रहे हैं। वहीं, विधायी मामले में सांसदों और विधायकों की संख्या बड़ी भूमिका निभाती है। खास बात है कि आयोग इन सदस्यों की तरफ से दिए गए हलफनामों पर भी विचार कर सकता है।
अगर किसी गुट को बहुमत नहीं तो क्या होगा?
जब पार्टी में दो गुट बने हुए हों या यह पता लगाना संभव न हो कि किसी गुट के पास बहुमत हैं, तो आयोग पार्टी के चिह्न को फ्रीज कर सकता है। साथ ही वह गुटों को नए नाम के साथ रजिस्टर करने की अनुमति देता है। इसके अलावा गुट पार्टी के नाम में आगे या पीछे कुछ शब्द भी जोड़ सकता है।
अगर भविष्ट में गुट एक हो जाएं, तो क्या होगा?
अगर किसी पार्टी में दो गुट बन गए हैं और भविष्य में वह एकसाथ आ जाते हैं, तो भी उन्हें आयोग का रुख करना होगा। वह आयोग के सामने एकजुट पार्टी के तौर पर मान्यता पाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। दरअसल, EC के पास दो समूहों का विलय कर एक पार्टी बनाने का भी अधिकारी है। साथ ही चुनाव आयोग पार्टी के चिह्न और नाम को दोबारा बहाल कर सकता है।
एक समूह को मान्यता मिली, तो दूसरे गुट का क्या होगा?
जांच के दौरान चुनाव आयोग यह कहते हुए किसी एक गुट को मान्यता दे सकता है कि उन्हें संगठन और विधायक-सांसदों का पर्याप्त समर्थन हासिल है, जिसके चलते गुट को नाम और चिह्न मिलना चाहिए। साथ ही आयोग अन्य गुट को अलग राजनीतिक दल के रूप में रजिस्टर करने की इजाजत दे सकता है।
आयुक्त ने क्या कहा था?
भाषा के अनुसार, कुमार ने मंगलवार को कहा था, 'पहले ही एक स्थापित प्रक्रिया है। वह प्रक्रिया हमें अधिकार देती है और हम 'बहुमत का नियम' लागू करके इसे बेहद पारदर्शी प्रक्रिया के तौर पर परिभाषित करते हैं। जब भी हम इस मामले पर गौर करेंगे तो 'बहुमत का नियम' लागू करेंगे। उच्चतम न्यायालय का फैसला पढ़ने के बाद यह किया जाएगा।'