November 19, 2024

NASA को चकमा दे रहे पंजाब-हरियाणा के किसान, पराली जलाने को लेकर खुली पोल

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चंडीगढ़

वायु प्रदूषण का आलम यह है कि दिल्ली-एनसीआर पर गैस चैंबर बन जाने का खतरा मंडरा रहा है। हालत बिगड़ते देख सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों को बंद करने का आदेश दे दिया है। कक्षाएं ऑनलाइन मोड में चलेंगी। इस बीच पंजाब और हरियाणा से चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। आंकड़ों में इस साल पराली जलाने की संख्या में कमी आई है, लेकिन विसेषज्ञों का एक वर्ग चिंतित है कि उत्तर पश्चिम भारत के किसान पराली जलाने के लिए नासा की सैटेलाइट से बच निकल रहे हैं। उनका मानना है कि किसानों ने नासा को चकमा देने का तरीका ढूंढ लिया है। कोरियाई सैटेलाइट ने इसका सबूत भी पेश किया है।

इस बीच सोमवार को अकेले पंजाब में 1,251 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं। मुक्तसर जिला पराली जलाने की 247 घटनाओं के साथ राज्य में शीर्ष पर रहा, जबकि मोगा में 149 घटनाएं हुईं। फिरोजपुर में पराली जलाने की 130 घटनाएं, बठिंडा में 129, फाजिल्का में 94, फरीदकोट में 88, तरनतारन में 77 और फिरोजपुर में 73 घटनाएं दर्ज की गईं।

नासा को कैसे चकमा दे रहे किसान

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर खेतों में आग लगने की घटनाओं की कम रिपोर्टिंग करने के आरोप लगे हैं। खेतों में आग लगने की घटनाओं पर नज़र रखने वाले वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि कई किसान दोपहर के बाद धान के अवशेषों को आग लगा रहे हैं, ताकि सैटेलाइट से बच सकें। उधर, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दावा किया है कि पिछले वर्षों की तुलना में खेतों में आग लगाने की घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी आई है, लेकिन दोपहर 3 बजे के बाद यह धड़ल्ले से हो रहा है। कोरियाई सैटेलाइट के रेडिएशन डेटा और इमेजनरी से पता चलता है कि नासा सैटेलाइट के ओवरपास होने के बाद पराली जलाई रही है।

क्या कह रहे नासा अधिकारी

नासा गोडार्ड स्पेस फ़्लाइट सेंटर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हिरेन जेठवा ने 25 अक्टूबर को एक्स पर लिखा था, "क्या उत्तर-पश्चिम भारत और पाकिस्तान के किसान पराली जलाने के लिए सैटेलाइट को चकमा दे रहे हैं? GEO-KOMPSAT 2A सैटेलाइट तस्वीरों का बारीकी से निरीक्षण करने पर पता चला है कि दोपहर तीन बजे के बाद इन इलाकों में धुएं के गुबार दिखाई दे रहे हैं। जमीनी स्तर पर इनकी जांच की आवश्यकता है।"

नासा का एक्वा सैटेलाइट और नासा-एनओएए का सुओमी-एनपीपी सैटेलाइट भारत और पाकिस्तान के ऊपर दोपहर 1.30 से 2 बजे के आसपास से गुजरता है। नासा के वैज्ञानिकों को आशंका है इसके बाद पराली जलाने की घटनाएं धड़ल्ले से की जा रही हैं। एक कोरियाई सैटेलाइट ने इसका प्रमाण भी दिया है। यह सैटेलाइट हर 10 मिनट में उसी क्षेत्र से होकर गुजरता है। कोरिया के जियोस्टेशनरी सैटेलाइट GEO-KOMPSAT-2A (GK2A) से शॉर्टवेव इंफ्रारेड रेडिएशन डेटा और इमेजरी दिखाती है कि नासा-एनओएए सैटेलाइट ओवरपास के बाद घंटों धुआं जारी रहा।"

इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी ​​के सीईओ चंद्र भूषण ने कहा, "सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2020 की तुलना में खेतों में आग लगने की घटनाओं में 80-90% की कमी आई है, हालांकि एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (AOD) पिछले छह से सात वर्षों में पंजाब और हरियाणा में अपरिवर्तित रहा है। यह वायुमंडल में कणों की सांद्रता को मापता है। उनका कहना है कि अगर खेतों में आग लगने की घटनाओं में इतनी कमी आई है, तो AOD में कमी क्यों नहीं आई?"

NASA के वैज्ञानिक ने किया विश्लेषण
राजधानी दिल्ली गैस चैंबर बनी हुई है. NCR और आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक सीमा तक पहुंच चुका है. 'सांसों का ये आपातकाल' कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को भी बढ़ा रहा है. इस गंभीर स्थिति के बीच एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है पराली. किसानों द्वारा पराली जलाने को प्रदूषण का बड़ा कारण माना जा रहा है. हालांकि, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस साल पराली जलाने की घटनाएं घटी हैं, लेकिन प्रदूषण का स्तर जस का तस बना हुआ है. विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों ने पराली जलाने के समय में बदलाव किया है ताकि सैटेलाइट के जरिए उनकी एक्टिविटी का पता न लगाया जा सके. TOI में पब्लिश हुई एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. यह दावा नासा वैज्ञानिक हीरेन जेठवा के विश्लेषण पर आधारित है.

सैटेलाइट के मूविंग टाइम को समझ कर अंजाम दे रहे करतूत
नासा के वरिष्ठ वैज्ञानिक हीरेन जेठवा ने सोशल मीडिया पर अपना एनालिसिस शेयर किया है. वह बीते महीनों से इस पर काम कर रहे थे. इसी क्रम में 25 अक्टूबर को उन्होंने X पर लिखा, 'क्या उत्तर-पश्चिम भारत और पाकिस्तान के किसान सैटेलाइट के मूविंग टाइम पर पराली जलाने से बच रहे हैं? GEO-KOMPSAT 2A सैटेलाइट के डेटा से दोपहर बाद के दौरान धुएं के गुबार देखे गए हैं. इस फैक्ट की जमीनी हकीकत की जांच की जानी चाहिए.

किस समय भारत-पाकिस्तान से गुजरती है सैटेलाइट
जेठवा का कहना है कि नासा और NOAA के सैटेलाइट दोपहर 1:30 से 2:00 बजे के बीच भारत और पाकिस्तान के ऊपर से गुजरते हैं. उनका अनुमान है कि किसान संभवतः इस समय के बाद पराली जला रहे हैं, ताकि उनकी ये एक्टिविटी रिकॉर्ड में न आ सकें. उन्होंने साउथ कोरिया के GEO-KOMPSAT-2A सैटेलाइट के डेटा का हवाला देते हुए कहा कि यह सैटेलाइट हर 10 मिनट पर डेटा रिकॉर्ड करता है और उसमें दोपहर बाद के समय में आग जलने की घटनाएं ज्यादा देखी गईं.

क्या कहते हैं सरकार आंकड़े
इस मामले पर सरकारी आंकड़े क्या कह रहे हैं, इस पर भी निगाह डाल लेते हैं. आंकड़ों की मानें तो पंजाब और हरियाणा में इस साल पराली जलाने की घटनाओं में बड़ी गिरावट दर्ज की गई. 15 सितंबर से 17 नवंबर 2024 तक पंजाब में केवल 8,404 पराली जलाने की घटनाएं रिपोर्ट हुईं, जो पिछले साल इसी अवधि में 33,082 थीं. हरियाणा में यह संख्या 2,031 से घटकर 1,082 हो गई.

इसके बावजूद, वायुमंडल में एरोसोल का लेवल (जो प्रदूषण का मुख्य कारण है) पिछले छह-सात वर्षों से स्थिर बना हुआ है. iFOREST के सीईओ चंद्र भूषण ने कहा, "अगर पराली जलाने की घटनाओं में 80-90% की कमी आई है, तो एरोसोल का स्तर क्यों नहीं घटा?" भूषण ने यह भी बताया कि 17 नवंबर को दिल्ली के पीएम 2.5 स्तर में 37.5% योगदान पराली जलाने का था, जो सीजन का सबसे ज्यादा था, जबकि पराली जलाने की घटनाएं इस साल कम बताई जा रही हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि "पराली जलाने की समस्या को मापने का बेहतर तरीका कुल जले हुए क्षेत्र का विश्लेषण करना है."

दूसरे राज्यों में बढ़ रही पराली जलाने की घटनाएं
पंजाब और हरियाणा में भले ही घटनाएं घटी हों, लेकिन उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ रही हैं. इससे स्पष्ट होता है कि समस्या केवल कुछ राज्यों तक सीमित नहीं है और इसका प्रभाव व्यापक है.

स्थानीय अधिकारियों का दावा: डेटा सटीक है
हालांकि विशेषज्ञों के इन दावों को स्थानीय अधिकारियों ने खारिज कर दिया. पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन आदर्शपाल विग ने कहा कि "पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर ISRO और NASA के सैटेलाइट्स का इस्तेमाल कर पराली जलाने की घटनाएं रिकॉर्ड करता है, जिनमें रात में होने वाली घटनाएं भी शामिल हैं. सैटेलाइट से बचने की बात कल्पना मात्र है."

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने भी कहा कि घटनाओं में कमी वास्तविक है और यह किसानों द्वारा पराली प्रबंधन के लिए अपनाई गई नई तकनीकों का परिणाम हो सकता है.

अगर किसान ऐसा कर रहे हैं तो आगे क्या?
यह साफ है कि पराली जलाने की घटनाओं में कमी और प्रदूषण के स्तर के बीच एक बड़ा अंतर है. विशेषज्ञ सटीक आंकड़ों के लिए भारत के भूस्थिर सैटेलाइट्स का इस्तेमाल करने का सुझाव दे रहे हैं. यह समस्या जटिल है और इसके समाधान के लिए पराली प्रबंधन पर ध्यान देना होगा. सरकार और किसानों के बीच बेहतर समन्वय के साथ-साथ सटीक निगरानी और डेटा संग्रह की जरूरत है. यह सुनिश्चित करना होगा कि पराली जलाने की घटनाओं को सही तरीके से रिकॉर्ड किया जाए ताकि पर्यावरण पर इसके प्रभाव को कम किया जा सके.

किसान बोले- प्रशासन खुद कहता है कि शाम 4 बजे के बाद जलाओ पराली
उधर, पंजाब के बंठिडा प्रशासन की लापरवाही के भी दावे सामने आए हैं. बठिंडा के कई इलाकों में अभी धान की फसल खेतों में तैयार खड़ी है उनकी कटाई नहीं हुई इसके साथ ही कई खेतों में पराली के ढेर लगे हुए जिसे जब मर्जी आग लगाई जा सकती है. ऐसे में अब किसान नेता कह रहे हैं पराली जलाने के मुख्य दोषी सरकार और प्रशासन हैं, क्योंकि किसान पराली को आग नहीं लगना चाहता उसे मजबूर किया जाता है. कहा जाता है कि कोई मुकम्मल प्रबंध नहीं है.

ऐसे में अगर किसान पराली को आग नहीं लगाएगा तो क्या करेगा. उनका कहना है कि या तो सरकार 5 हज़ार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से किसानों को मुआवजा राशि दे तो पंजाब में कोई भी किसान पराली को आग नहीं लगाएगा. नहीं तो सरकार को मुकदमे दर्ज करने हैं तो वह जो मर्जी कर ले, लेकिन जब तक कोई पक्का समाधान नहीं किया जाता इस तरह ही पराली जलाते रहेंगे. किसानों ने यहां तक कहा कि प्रशासन खेतों में पहुंचकर कहता है शाम 4 बजे के बाद पराली को आग लगा लिया करो.

प्रशासन ने कहा- आरोप गलत, लगातार हो रही है कार्रवाई 
वहीं प्रशासन ने कहा, लगातार गांवों में पहुंचकर किसानों को समझाया जा रहा है पराली को आग न लगाई जाए. किसानों को जागरूक किया जा रहा है, लेकिन जब कोई जानबूझ कर पराली को जलाता है तो उसके खिलाफ कानूनी कारवाई भी की जा रही है. अब तक करीब 174 केस दर्ज करके जुर्माना लगाते हुए रेड एंट्री भी की जा रही है. पुलिस ने कहा जैसा किसान नेता बोल रहे है ऐसा कुछ नहीं है. पराली को आग लगाने पर पूरी तरह से रोक लगी हुई है. आग लगाने वाले किसानों के खिलाफ लगातार कार्रवाई भी की जा रही है.

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