सत्य को स्वीकार किए बगैर स्वयं को सत्य समझने वाला संसार का सबसे पतित प्राणी है : आचार्यश्री
रायपुर
रंगमंदिर गांधी मैदान में आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने मंगल देशना में कहा कि संसार की सबसे बड़ी विडंबना है कि जो सत्य को जाने बिना, सत्य को समझे बिना,सत्य को स्वीकार किए बिना अपने आपको सत्य समझ रहा है,वह संसार का सबसे पतित प्राणी है। जिसे सत्य का ज्ञान और विवेक नहीं फिर भी अपने आपको सत्य मानता है,उसे समझना बहुत कठिन है। जिस दिन सत्य के नजदीक व पास पहुंचेगा उस दिन व्यक्ति को बोध होगा कि मैं कितना सत्य में जी रहा था ? जिसे आज तक धर्म मानकर चला है व्यक्ति,विश्वास मानो जिस दिन सत्य का बोध होगा उस दिन वह व्यक्ति अपने पूरे जीवन को अधरमय मान लेगा।
आचार्यश्री ने कहा कि किसी ने क्रिया में धर्म देखा,किसी ने भाव में धर्म देखा, किसी ने संप्रदाय में धर्म देखा, किसी ने अपने कुटुंब की परंपरा में धर्म देखा, किसी ने अपने प्रांत और देश की परंपरा में धर्म देखा और इस धर्म के पीछे में कोई नवीन आदमी आ गया तो फटकार कर भगा दिया। जिस दिन ज्ञान हुआ कि धर्म तो भावों की निर्मलता है,धर्म तो परिणामों की पवित्रता है,धर्म तो प्राणी मात्र के प्रति समभाव है,उस दिन मालूम चला कि हमने कितने लोगों को मंदिर के बाहर भगाया था। हमने कितने लोगों को घर के बाहर निकाला था। धर्म का बोध होगा तो आप समझोगे कि जब घर में उगे पौधे को नहीं उखाड़ सकते हो तो पत्नी के गर्भ में पल रहे शिशु का कैसे नाश कर सकते हो ?
आचार्यश्री ने कहा कि मान के मद में फूलकर, प्रतिष्ठा का भूत चढ़ाकर, ख्याति लाभ में डूबा हुआ,धर्म के मर्म को समझ नहीं सकता। कितनो को मालूम था कि अकौवे के पौधे में महावीर स्वामी विराजमान थे। जिस दीपक की ज्योति को देख रहे हो उसमें भविष्य का तीर्थंकर विराजमान हो सकता है। वर्तमान के भगवान को समझने के लिए वर्तमान की आंखें काफी है,भविष्य के भगवंतों को समझने के लिए कैवल्य ज्ञान की आंख चाहिए। कैवल्य ज्ञान से जानने लग गए तो यदि चींटी भी काट रही हो तो उसे खींचोगे नहीं,क्योंकि चींटी अल्प समय में निर्वाण को प्राप्त करने वाला जीव है। कैवल्य ज्ञान से जिसने जान लिया कि वर्तमान में चींटी की पर्याय वाला जीव भविष्य का भगवान है,यदि आपने किसी जीव को कष्ट पहुंचाया हो तो उससे क्षमा याचना करते रहिए।