राग और द्वेष से भरे हुए शुद्ध आत्मा का अनुभव नहीं कर पाते : आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज
रायपुर
रंगमंदिर गांधी मैदान में जारी चातुर्मासिक प्रवचनमाला में आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने शनिवार को कहा कि शुद्ध सामायिक का स्वाद चाहिए तो राग की चिकनाई न हो, द्वेष की मिर्च न हो,अन्य कोई मसाले न हो। काम क्रोध,मान,माया के बगैर वही शुद्ध आत्मा है जो सामायिक में लीन होता है, योगी वही है जो परमानंद को प्राप्त होता है। यही सामायिक है, यही ध्यान है। राग और द्वेष से भरे लोग शुद्ध आत्मा का अनुभव नहीं कर पाते हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि मशीन ध्वनि दे सकती है,मशीन शब्द दे सकती है, लेकिन मशीन संवेदना नहीं दे सकती, इसलिए मशीन मत लगाना,मन में दया के भाव हों तो मुख से णमोकार सुना देना लेकिन मशीन लगाकर कभी मत सुनाना। मशीन की आवाज तो सभी ने सुनी ही होगी, जो मंदिरों में नगाड़े बजते हैं आजकल वे इलेक्ट्रिक वाले होते हैं,इनकी ध्वनि सुनना और जो सामान्य नगाड़े की ध्वनि सुनना और विचार करना कि मिठास किसमें ज्यादा आती है। मीठी आवाज लोहे की मशीन के नगाड़े में नहीं बल्कि सामान्य नगाड़े में ही आती है। ऐसे ज्ञानियों मशीनों में संवेदना की अनुभूति नहीं है,णमोकार सुनाने वाला संवेदना से भरा होगा तो उसकी आवाज में भी भाव होंगे।
आचार्यश्री ने कहा कि चित्त की चंचलता को रोककर स्थिर होना सामायिक ध्यान है। ऐसा जीव अभ्यास आज से ही प्रारंभ करें। ये गहरे प्रवचन इसलिए सुनने आना चाहिए हमें कि इससे सामायिक का बोध हो। यहां से सुनकर जाने के बाद एकांत में बैठकर सामायिक में बैठ जाओ,ऐसा विचार आपके मन में आना चाहिए। मात्र एक स्थान में नियम लेकर बैठे रहने का नाम सामायिक नहीं है,वह तो आसन है। सामायिकी के सामने न पेपर, न स्पीकर,कुछ नहीं होता है, उसे केवल आत्म ध्वनि में लीन रहना चाहिए।
सूरीमंत्र से अभिमंत्रित हुआ भगवान महावीर कीर्ति स्तंभ
आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ शनिवार सुबह कोतवाली चौक स्थित नवनिर्मित भगवान महावीर कीर्ति स्तंभ के समक्ष पधारे। उन्होंने वहां स्तंभ को मंत्रोच्चारण पूर्वक सूरीमंत्र से अभिमंत्रित किया एवं पुष्प क्षेपण कर विधि-विधान पूर्वक कीर्ति स्तंभ की प्रतिष्ठा की। महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य मुनिश्री सुब्रत सागर जी महाराज ने गुरु के मार्गदर्शन में स्तंभ पर सारी क्रियाएं पूर्ण की।