November 24, 2024

भारतीय सेना में गोरखा जवानों की हर हाल में जरूरत, नेपाल नहीं माना तो ऐसे होगी भरपाई

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नई दिल्ली
 
सेना में नेपाली गोरखाओं की भर्ती को लेकर उत्पन्न संकट खत्म नहीं हो रहा है। नेपाल अभी तक इसके लिए तैयार नहीं है। इस बीच सेना में भारतीय गोरखाओं की भर्ती बढ़ाने के विकल्पों पर भी विमर्श शुरू हो गया है। सेना का मानना है कि उसे गोरखा जवानों की हर हाल में जरूरत है। यदि नेपाल इसके लिए तैयार नहीं होता है तो यह जरूरत भारतीय गोरखाओं से पूरी की जाएगी। नेपाल ने अभी सेना को गोरखाओं की भर्ती के लिए मंजूरी नहीं दी है। अगस्त में दो केंद्रों पर इसकी तैयारी शुरू की गई थी, लेकिन नेपाल सरकार की अनुमति नहीं मिलने पर उसे रद्द करना पड़ा।

नेपाल की आपत्ति नेपाल का कहना है कि अग्निपथ योजना भारत, नेपाल और ब्रिटेन के बीच 1947 में हुए त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन है, जिसके तहत नेपाली गोरखाओं को भारत और ब्रिटेन की सेनाओं में भर्ती की मंजूरी प्रदान की गई है। नेपाल की चार साल की सेवा को लेकर आपत्ति है, जिसके बाद जवान बेरोजगार हो जाएंगे।

इसलिए गोरखा जरूरी
सेना की सात गोरखा रेजिमेंट हैं, जिनमें से छह आजादी से पहले की हैं। इन रजिमेंट में 39 बटालियन हैं। इनमें 32 हजार नेपाली गोरखा जवान तैनात हैं। युद्ध में गोरखाओं की बहादुरी और दुर्गम भौगौलिक परिस्थितियों में लड़ने की क्षमता के कारण वे सेना की रीढ़ माने जाते हैं। विकल्प क्या भारत, नेपाल को आश्वासन देने की कोशिश कर रहा है कि चार वर्ष के बाद भी गोरखा बेरोजगार नहीं होंगे। हो सकता है, भारत चार वर्ष बाद सेवानिवृत्त होने वाले गोरखाओं को रोजगार का कोई ठोस आश्वासन दे। हालांकि, यह आसान नहीं होगा, क्योंकि ऐसा आश्वासन भारतीय भी चाहेंगे।

ज्यादा नहीं आबादी
2011 की जनगणना के अनुसार करीब 29 लाख लोग नेपाली बोलते हैं। इनमें भारतीय और नेपाल से आकर बसे नेपाली गोरखा भी शामिल हैं। इस आबादी में हर साल 20-25 हजार गोरखा जवानों की भर्ती कर पाना आसान नहीं है। पश्चिम बंगाल, सिक्किम, उत्तराखंड, असम समेत पूर्वोत्तर के कई राज्यों में गोरखा आबादी है।

सुरक्षा एजेंसी में मांग
सेना के सूत्रों के अनुसार, नेपाली गोरखाओं की हाल के वर्षों में निजी सुरक्षा एजेंसियों में तेजी से मांग बढ़ रही है। सिंगापुर समेत कुछ देशों की पुलिस में भी उन्हें जगह दी जा रही है। निजी सुरक्षा एजेंसियां उन्हें ज्यादा वेतन प्रदान कर रही हैं। इसलिए खुद भी गोरखा सेना में आने के लिए ज्यादा आतुर नहीं रहते हैं।

 

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