November 12, 2024

ताली वेब सीरीज में सुष्मिता सेन करेगी किन्नर गौरी सावंत का रोल

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वेब सीरीज 'आर्या' और 'आर्या 2' से धमाल मचाने के बाद सुष्मिता सेन अब और दमदार वेब सीरीज में नजर आएंगी। सुष्मिता सेन वेब सीरीज 'ताली' में नजर आएंगी। यह एक बायोपिक है, जिसमें किन्नर गौरी सावंत की कहानी दिखाई जाएगी। जब से 'ताली' से सुष्मिता सेन का फर्स्ट लुक रिलीज हुआ है, तब से फैंस गौरी सावंत के बारे में जानने को बेचैन हैं। गौरी सावंत एक सोशल वर्कर हैं जो कई साल से किन्नरों के हितों के लिए काम कर रही हैं। गौरी सावंत 'कौन बनेगा करोड़पति' के एक एपिसोड में भी नजर आई थीं। तब अमिताभ बच्चन ने भी उनकी तारीफ की थी।

Gauri Sawant ने अपनी जिंदगी में बहुत दुख झेले और काफी स्ट्रगल किया। आपको जानकर हैरानी होगी कि गौरी सावंत के पिता ने उनके जिंदा रहते हुए ही अंतिम संस्कार करवा दिया था। यहां हम आपको गौरी सावंत की जिंदगी के उतार-चढ़ाव भरे सफर से लेकर उनके उन कामों के बारे में बता रहे हैं, जो वह किन्नरों के हित के लिए कर रही हैं।

मराठी परिवार में जन्मीं, खूब सुने ताने, नाम था गणेश नंदन
किन्नर गौरी सावंत मुंबई के दादर में एक मराठी परिवार में जन्मी थीं। उनके माता-पिता ने उनका नाम गणेश नंदन रखा था। गौरी सावंत जब सात साल की थीं, तभी उनकी मां की मौत हो गई। उन्हें दादी ने पाल-पोसकर बड़ा किया। गौरी सावंत के पिता एक पुलिस अफसर थे। गौरी सावंत को अपनी सेक्शुएलिटी के बारे में पता था, लेकिन वह चाहकर भी पिता को बताने की हिम्मत नहीं कर पाईं। स्कूल में भी सारे बच्चे गौरी सावंत का मजाक उड़ाते थे और बहुत ही भद्दे कमेंट करते थे। गौरी सावंत धीरे-धीरे लड़कों की तरफ आकर्षित हो रही थीं। उन्हें तब यह पता नहीं था कि गे होने का क्या मतलब। लेकिन गौरी सावंत गुपचुप अपनी दादी की साड़ियां पहनकर सजतीं-संवरतीं।

परिवार ने नहीं स्वीकार की सेक्शुएलिटी, छोड़ दिया घर
स्कूल में तो गौरी सावंत ने जैसे-तैसे स्थिति संभाल ली। लेकिन जब कॉलेज जाने की बारी आई तो मुश्किलें खड़ी हो गईं। गौरी सावंत के परिवार ने कभी भी उनकी सेक्शुएलिटी को स्वीकार नहीं किया। गौरी सावंत भी अपने परिवार और पिता की शर्मिंदगी का कारण नहीं बनना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने घर छोड़ दिया। तब गौरी सावंत की उम्र 14 या 15 साल थी। गौरी सावंत यानी गणेश नंदन ने बाद में वेजिनोप्लास्टी करवा ली और हमेशा के लिए गौरी सावंत बन गईं।

गौरी सावंत ने हमसफर ट्रस्ट की मदद से खुद को बदला और वह गणेश नंदन से गौरी सावंत बन गईं। गौरी के पास न तो सिर पर छत थी और न ही खाने को दाना। लेकिन हिम्मत हारे बिना वह हर मुश्किल से डटकर लड़ती रहीं। साल 2000 में गौरी सावंत ने दो अन्य लोगों की मदद से 'सखी चार चौगी' (Sakhi Char Chowghi Trust) की स्थापना की। तब से गौरी सावंत सभी किन्नरों के हितों के लिए काम कर रही हैं। इस एनजीओ के जरिए गौरी घर से भागे ट्रांसजेंडर लोगों की मदद करती हैं। गौरी सावंत ने ही 2009 में किन्नरों को कानूनी मान्यता दिलाने के लिए कोर्ट में हलफनामा दायर किया था। नाज फाउंडेशन ने गौरी सावंत की अपील को आगे बढ़ाया। इसे नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी ने जनहित याचिका का रूप दिया था। इसी याचिका पर सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर कानून को मान्यता दी।

मासूम को सेक्स के धंधे से बचाया, पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाया
गौरी सावंत ने सिर्फ किन्नरों के हक के लिए ही लड़ाई नहीं लड़ी, बल्कि उन्होंने एक मासूम बच्ची को सेक्स वर्करों के धंधे में धकेले जाने से बचाया था। यही नहीं उन्होंने उस बच्ची को गोद लेकर उसे पाला-पोसा। गौरी सावंत ने साबित कर दिया कि मां शब्द किसी लिंग तक सीमित नहीं है। एक किन्नर भी पसंद है। इस बच्ची का नाम गायत्री था, जो एक सेक्स वर्कर की बेटी थी। काम के दौरान गौरी सावंत की इस सेक्स वर्कर से मुलाकात हुई थी। यह एचआईवी से पीड़ित थी, जिसके कारण उसकी मौत हो गई। मौते के बाद लोग सेक्स वर्कर की बेटी को बेचने की बात करने लगे। तब गौरी सावंत उस बच्ची को गोद लिया और आज वह एक हॉस्टल में पढ़ रही है।

देश की पहली ट्रांसजेंडर इलेक्शन एंबैसडर
गौरी सावंत देश की पहली ट्रांसजेडर इलेक्शन ऐंबैसडर भी हैं। कुछ साल पहले वह विक्स के एक विज्ञापन से चर्चा में आई थीं। इसमें वह एक छोटी सी बच्ची के साथ दिखी थीं। इस विज्ञापन में दिखाया गया कि किस तरह एक बच्चे के मां-बाप मर जाते हैं और फिर गौरी सावंत यानी मम्मी उस बच्चे को गोद लेती हैं। इस विज्ञापन ने गौरी सावंत को चर्चा में ला दिया था।

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