September 25, 2024

राजतंत्र, प्रजातंत्र और कर्मतंत्र से कोसों दूर है आत्म समाधि तंत्र : आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज

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रायपुर
पद्मप्रभ दिगंबर जैन मंदिर लाभांडी रायपुर में 13 मुनिराजों का भव्य दीक्षा दिवस समारोह आयोजित किया गया। धर्मसभा में अपनी मंगल देशना में आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने कहा कि राजतंत्र, प्रजातंत्र, कर्मतंत्र इन सारे तंत्रों से कोसों दूर है आत्म समाधि तंत्र। गुणभद्र स्वामी लिखते हैं कि ऋषभदेव ने षट्कर्म का परिवर्तन किया,24 तीर्थंकरों ने गृहस्थ अवस्था में अनेक प्रकार की नीति आदि की व्याख्या की, साम्राज्य पद का पालन किया,चक्रवर्ती तक के पद को स्वीकार किया, तब भी गुणभद्र स्वामी ने उनको ज्ञानी नहीं कहा।

आचार्यश्री ने कहा कि प्रभुओं ने जब उल्कापात देखा,नीलांजना की मृत्यु देखी,एक श्वेत बाल देखा,मिटते बादलों के महल देखें,गिरता वृक्ष देखा तो गुणभद्र स्वामी कहते हैं प्रभु को ज्ञान हो गया। जब भगवान अज्ञानी हो सकते हैं तो सामान्य जीवों की दशा क्या होगी ? अभी तक प्रभुओं को 3 तंत्रों का ज्ञान था, पर समाधि तंत्र का ज्ञान नहीं था। जैसे भेद विज्ञान हुआ, दीक्षा लेने के लिए खड़े हो गए,लोकांतिक देव आ गए, तब बलभद्र स्वामी ने कहा भगवान को ज्ञान हो गया।

आचार्यश्री ने कहा कि प्रभु को जब राज्य करने का ज्ञान था,तब आत्मा का ज्ञान नहीं था, जब भगवान को आत्मा का ज्ञान हुआ और उन्हें परमात्मा बना दिया, तब उन्हें ज्ञान हुआ। जैसे प्रभु शांतिनाथ को ज्ञान हुआ वैसे ये 13 मुनिराज उस ज्ञान में डुबकी लगा लें। आज जो श्रावक यहां आए हैं वे विशुद्ध सागर को देखने नहीं,सभी मुनिराजों का वैराग्य देखने आए हैं, इसलिए हे मुनिराज गुरु को भी भिन्न स्वीकारों,गुरु का राग भी आपको वैराग्य में बाधक है। जब यह राग छूट जाएगा तो आप मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर हो जाओगे। अखंड जैन समाज के सामने कोई भी पद प्रतिष्ठित नहीं है केवल साधु ही सत्य है।

आचार्यश्री ने कहा कि ज्ञान बहुत गहरा है,जो पानी की धारा है वह ज्ञान की धारा है। पानी मल धोने के काम भी आता है तो प्रभु का गंधोदक बनाने के काम में भी आता है। जिस के लोटे में पानी मल ढोने के लिए जा रहा है उस पानी की क्या दशा होगी, उसे आंखों से देखो और जिस पानी को गंधोदक बनाने ले जाया जा रहा है, उस पानी की क्या दशा होगी उसे भी देखो। ये मनुष्य देह, उत्तम पर्याय और युवा अवस्था पानी की धारा है। विषय कषाय,अंगनाओं में यदि इसे ले गए तो जो मल की दशा है वो दशा युवा अवस्था की भी होगी। यदि उस पानी की तरह गंधोदक बनाकर जिसे प्रभु के मस्तिष्क पर लेकर गए तो आपकी युवा अवस्था की दशा सुगंधित होगी। जो युवा निर्ग्रन्थ दीक्षा की ओर गया है वह लोक का गंधोदक बन गया है। ये 13 मुनिराजों को समाज नहीं देख रही है,इनके तेरा प्रकार के चरित्र को समाज देख रही है।

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