September 26, 2024

प्रदेश की सत्ता की चाबी मालवा निमाड़ से मिलेगी, भाजपा कोई कसर नहीं चाहती

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भोपाल

2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे राजनीतिक दल वोटरों को साधने के अलग अलग हथकंडे अपना रहें है। एक तरह भाजपा का प्रदेश संगठन है तो दूसरी तरफ आलाकमान, लेकिन दोनों का टारगेट अब मालवा-निमाड़ बनता दिख रहा है। 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उज्जैन के दौरे पर पहुंच रहे हैं तो उससे पहले भाजपा ने तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर मांडू में लगा रखा है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि भाजपा का ध्यान इस बार मालवा-निमाड़ की तरफ ज्यादा है।

दरअसल, प्रदेश की सत्ता के लिए मालवा-निमाड़ भी अहम माना जाता है। ऐसे में भाजपा ने यहां खास प्लान बना रखा है क्योंकि ये वो इलाका है, जहां से राजधानी भोपाल का रास्ता तय होता है। मालवा-निमाड़ को प्रदेश की सत्ता की चाबी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद से मालवा-निमाड़ मध्य प्रदेश का एक तरह से किंगमेकर बनकर उभरा है। आंकलन करें तो पिछले 5 विधानसभा चुनावों के नतीजे ये कहते है कि इस जोन में जिस पार्टी को यहां कामयाबी मिलती है, प्रदेश की सत्ता उसे ही मिलती है।

मालवा-निमाड़ में विधानसभा की 66 सीटें हैं औ 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह मालवा-निमाड़ ही रहा था। 66 सीटों में 35 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी तो भाजपा को केवल 28 सीटें मिली थी। जिससे कांग्रेस 15 साल बाद प्रदेश की सत्ता वापसी में सफल रही थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मालवा-निमाड़ में 57 सीटों पर अपना कब्जा किया था, जबकि कांग्रेस को केवल 9 सीटें मिली थी।

2013 और 2018 के नतीजों के आधार पर सीटों का यही बड़ा अंतर भाजपा और कांग्रेस की सरकारें बनवाने में अहम साबित हुआ था। लिहाजा भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए मालवा-निमाड़ सबसे महत्वपूर्ण साबित होता रहा है। और दोनों ही दलों ने अपनी-अपनी ताकत इस हिस्से में झोंकते हैं। मालवा निमाड ना केवल विधानसभा के लिहाज से अहम है बल्कि लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें भी इसी रीजन में आती हैं। कुल 230 सीटों वाली प्रदेश विधानसभा में मालवा-निमाड़ अंचल की 66 सीटें शामिल हैं। मालवा निमाड़ में इंदौर, धार, खरगौन, खंडवा, बुरहानपुर, बड़वानी, झाबुआ, अलीराजपुर, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, शाजापुर, देवास, नीमच और आगर मालवा शामिल हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां चूक गई थी, ऐसे में वह पुरानी गलती दोबारा नहीं करना चाहती और अभी से इस खास जोन पर अपनी पकड़ फिर मजबूत करना चाहती है। मालवा निमाड़ पश्चिमी मध्य प्रदेश के इंदौर और उज्जैन संभागों में फैला है और इस अंचल में आदिवासी और किसान तबके के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है।

जानकारों की माने तो मालवा-निमाड़ संघ की नर्सरी माना जाता है। संघ का सबसे ज्यादा फोकस यही रहता है। वहीं मध्य प्रदेश बीजेपी के ज्यादातर बडे़ नेता इसी अंचल से निकले हैं। मालवा-निमाड़ से आने भाजपा नेता सत्यनारायण जटिया को भी भाजपा की संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है। जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भी भाजपा में आने से मालवा निमाड़ में पार्टी की ताकत बड़ी है। ऐसे में पार्टी एससी/एसटी के साथ अब ओबीसी वर्ग को भी साधने की पूरी तैयारी में नजर आ रहीं है।

प्रदेश की 47 विधानसभा सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, जिनमें सबसे ज्यादा मालवा-निमाड़ में आती हैं। इसीलिए मध्य प्रदेश में तेजी से उभरा जयस नामक आदिवासी संगठन मालवा-निमाड़ में ही अपनी सबसे ज्यादा पकड़ रखता है। पिछले साल जयस  कांग्रेस का समर्थन किया था। लेकिन इस फिर अपने हिसाब से चुनाव लड़ने की घोषणा की है। उस दौरान भाजपा को काफी नुकसान हुआ था और सत्ता भी गवानी पढ़ गई थी। ऐसे में आदिवासी वर्ग का साथ छूटने की कमी को भाजपा फिर से भरने की तैयारी में हैं।

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