April 12, 2025

कथा हुअ न तुमे काहिंकि आसुन ? मृत्यु।। …सुजाता पटनायक “नहर पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनी, गांव वालों ने समझा, गांव में नहर बनी।।”…रवि श्रीवास्तव

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कथा हुअ

“चढ़ जा चढ़ जा मोर भैय्या नौकरी के रेल,
नौकरी के रेल नइ तो जिनगी फेल।”…डॉ. जीवन यदु

प्रलेस का 90 वां सफल आयोजन…

भिलाई- वीरेन्द्र पटनायक

तुमे काहिंकि आसिछो, केबे कथा हुअ…कथा हुअ न तुमे काहिंकि आसुनो ?
मृत्यु।।
किंचित उद्वेलन को सम्प्रेषित यह मर्म भाव स्पर्शी (मृत्यु), जो परेशानी और मानसिक असंतुलन की स्याही से रची आशातीत काव्य पंक्ति को पढ़ा श्रीमति सुजाता पटनायक ने। तालियों की गड़गड़ाहट से सराही गई और आशीर्वाद दिया गया।
अपनी उत्कल संस्कृति, स्थिरता, समृद्धि, सम्प्रभुता, सार्वभौमिक समागम को समर्पित सोनपुरिया/सारंगढ़िया/भिलाई के छाया-रचनाकार/कवि वीरेन्द्र पटनायक ने उत्कल जननि और आज इस संध्या बेला में ओड़िया कविता के जनक फकीर मोहन सेनापति, उत्कल गौरव मधुसूदन दास, कांतकवि राज्य गीत बंदे उत्कल जननी के रचयिता लक्ष्मीकांत महापात्र, जगन्नाथ के प्रबल भक्त मुस्लिम कवि साल बेग जी को याद करते नमन किया, सभासदों को प्रणाम करते ओड़िया काव्य पाठ का अनुवाद किया।
अपने अनुवाद पाठ..मौत, के अंत में वीरेन्द्र पटनायक ने कहा कि, उड़ीसा की भाषा, संस्कृति, विरासत व क्षमताएं अद्भुत हैं। हमें सीखना और सहेजना होगा। साल बेग के विषय में अद्भुत बात बताई कि, अहिन्दू जगन्नाथ भक्त होने के कारण उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला, किंतु आज भी रथ यात्रा के समय भगवान जगन्नाथ ग्रेण्ड रोड पर उनकी मजार के पास कुछ देर रुक कर उन्हें अदृश्य आशीर्वाद सम्मान दर्शन प्रदान करते हैं।
भाषाई एकता और रचनात्मक हितों को बढ़ावा देने के लिए, विभिन्न क्षेत्रों, अंचलों के बहुभाषी कवि अपनी भूमि-भाषा की सुन्दरता का जश्न मनाने के लिए बारी-बारी से काव्य पाठ किया जिसमें, जहां समाज को दिशा-निर्देश था वहीं, प्रकृति का अद्भुत बखान।
मैत्री विद्या निकेतन, रिसाली, भिलाई का सभागार खचाखच भरा था। अध्यक्षता वरिष्ठ जनकवि डॉ. जीवन यदु ने किया। मुख्य आतिथि वरिष्ठ कथाकार लोकबाबू, वरिष्ठ व्यंग्यकार रवि श्रीवास्तव व वरिष्ठ साहित्यकार राजमा सुधाकरण विशिष्ट अतिथि थे।
भाषायी एकता और रचनात्मक अभिरुचि को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से लघु भारत भिलाई में आयोजित इस बहुभाषीय काव्य पाठ का प्रारंभ मां सरस्वती पूजन से हुआ।
मैत्री विद्या निकेतन के सचिव और कवि साजन सुधाकरण ने सफलता और असफलता बिंदु पर काव्य पाठ व उसका अनुवाद स्वयं किया। तेलुगु में वी.अप्पा राव ने मासूम बाला पर दर्दिंदगी हैवानियत का भाव लिए काव्य पाठ किया और अनुवादक थे विजय वर्तमान। सेक्टर 5 गणेश मंदिर के अध्यक्ष तमिलभाषी वेंकट सुब्रमण्यम ने पर्यावरण प्रदूषण पर कहा कि “मिट्टी नहीं बदला मनुष्य बदल गया है, अब पितृपक्ष में कौवे भी दिखाई नहीं पड़ते।” अनुवाद भी स्वयं ही किया। शरद कोकास के मराठी रचना का सुधीजन बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। प्रयोग धर्मी कवि ने अपनी रचना “मोबाइल को क्या मालूम कि सुनने वाला अब चिर निद्रा में सो गया है” पंक्ति-पंक्ति स्वयं पढ़कर अनुवाद भी किया। इसी परम्परा का अनुसरण पाठ किया वरिष्ठतम पंजाबी कवि गुलबीर सिंह भाटिया ने “एक दिन अपने लिए भी जी लूं”।
अपने चिर परिचित अंदाज में सुमधुर स्वर की सरस गीतकारा संतोष झांझी ने भी पंजाबी भाषा में काव्य पाठ और अनुवाद दोनों स्वयं किया। उनकी कविता राष्ट्रीय एकता को इंगित कर रही थी। “चला मनाहो चलिए एको दूऽर, ऐसा लगता सारे जीवें हो गए मगरूऽर।” उड़िया भाषायी कवियत्री श्रीमति स्नेह लता पाणिग्रही (भूतपूर्व प्रचार्य हीराकुद स्कूल सम्बलपुर) ने अपनी पाठ व अनुवाद रचना में हरि नाम के मिठास को उद्धृत किया। इसी अंतराल में सभी कवियों का बारी-बारी से स्वागत व सम्मान भी हो रहा था। छत्तीसगढ़ी गीत पढ़ा बलराम चंद्राकर ने “ए दुनिया गोल हे, जतकी बड़े ढोल ओतकी बड़े पोल हे।” सिंधी भाषी रवि आनन्ददानी ने कहा कि आज रामनवमी है और वनवास काल के बाद इस सफल आयोजन के लिए प्रलेस भिलाई-दुर्ग बधाई का पात्र है। 2011 के बाद अब 2025 मे यह आयोजन हो रहा है।रामनवमी का दिन और रामचरित्रार्थ काव्य पाठ अजीब सुखद संयोग है। “अपने भुलाने वालों को याद आऊं मैं,
जो गिर रहा है उसे और क्या गिराऊं मैं?” समरेंदु विश्वास बंगाली भाषा के कवि ने पढ़ा कि “नदी से पूछोगे कि कितनी चली हो ? तो उत्तर पता नहीं,
मां की भाषा मातृभाषा है, पिता की भाषा का पता नहीं।।”
बाणी चक्रबर्ती के बंगाली पाठ का अनुवाद किया इप्टा भिलाई के अध्यक्ष मणिमय मुखर्जी ने जिसके भाव थे- “इंसान हर मोड़ पर बदलता रहता है पर मोह माया नहीं छोड़ सकता।” किंचित कारणो से अनुपस्थित रही गुजराती कवि पल्लवी त्रिवेदी के कविता का पाठ गुजराती में ही किया प्रलेसं के महासचिव परमेश्वर वैष्णव ने और अनुवाद किया डॉ.यदु की तीसरी पीढ़ी विज्ञान महा.की छात्रा आश्वला यदु ने। शीर्षक था “एक दिन”।
राजहरा से पहुंचे भोजपुरी गीतकार, अभिनेता, फिल्मकार शमशेर शिवानी ने कहा-“का का होता देख ला गांधी आज य तहरा देश में, खबरी नेता घूमत हवें राम लछमन का भेष में।” वर्तमान में 50 देशों की यात्रा कर लौटे प्रसिद्ध शायर मुमताज ने उर्दू अल्फ़ाज़ में कहा-“गुन्चों का ज़िक्र छेड़ बहारों बात कर, जो खो गए हैं ऐसे नजारों की बात कर।
ज़िल्ले इलाही आपकी लफ्फाजियों की ख़ैर,
अब भूख और प्यास के मारों की बात कर।
गर्दिश में सफीने हैं तो होते रहें ‘मुमताज़,
धारों के साथ-साथ किनारों की बात कर ।।
डॉ. नौशाद सिद्दीकी ने पढ़ा “हवा जमाने की तुमको कहीं न बहका दे, कहीं तो घर में सयाना बहुत जरूरी है।”
इनकी “चकाचक कविता” भी वाह-वाही लूटी। राजहरा प्रलेस अध्यक्ष लतीफ ने पढ़ा- “दर्द को होठों की मुस्कान बना देती है, मौत को जीने का उन्मान बना देती है।”
“फूलों पे तबस्सुम है कलियों की जवानी है। ऐसे में चले आओ यह रूत भी सुहानी है।
हम भूख के मारो की यही राम कहानी है।”
मुख्य अतिथि डॉ.जीवन यदु छत्तीसगढ़ी गीतों के चर्चित खैरागढ़ से पधारे ने पढ़ा-“चढ़ जा चढ़ जा मोर भैय्या नौकरी के रेल, नौकरी के रेल नइ तो जिनगी फेल।”
विशिष्ट अतिथि रवि श्रीवास्तव (मूर्धन्य व्यंग्यकार) हिन्दी में अपनी रचना पढ़ने के पूर्व मैत्री विद्या निकेतन के संस्थापक स्व.के.सुधाकरण जी को याद किया। उन्होंने पढ़ा-“दंगों के बाद का असली जश्न मना रहे थे, लाशों में सभी शामिल थे, गिद्धों की धर्मनिरपेक्षता में कोई कमी नहीं आई।” विकास और विज्ञापन पर वह बोले-“गांव में एक नहर बनी, नहर पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनी, फिल्म गांव-गांव में खूब चली, गांव वालों ने खूब देखा, गांव में नहर बनी।।”
विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार राजमा सुधाकरण(मैत्री विद्या निकेतन) ने भारतीयता के जोड़ में इस भाषायी संगम की भूरी-भूरी प्रशंसा की एवं अपना सहयोग सदैव जारी रखने का आश्वासन दिया।
विषय प्रवर्तन व आभार विमल शंकर झा (सचिव प्रलेसं) भिलाई-दुर्ग और आयोजन का संचालन छत्तीसगढ़ प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव परमेश्वर वैष्णव ने किया।
इस प्रतिष्ठित आयोजन में अनेक साहित्यकार, पत्रकार, रंगकर्मी सुधिजन जिनमें डॉ. शर्मा,डॉ.पी.पाणिग्राही,डॉ. कल्याण साहू,राजेश श्रीवास्तव,श्रीमति यज्ञसेनी पटनायक,श्रीमति सानू मोहनन, प्रदीप भट्टाचार्य,विनोद सोनी,अब्दुल स्सलाम कौसर,अमितेष पुरोहित,अशोक पण्डा,राजेन्द्र चाण्डक, सादर सम्मिलित रहे।
कार्यक्रम के अंत में इस मध्य दिवंगत हुए साथी हज़लकार रामबरन कोरी, कवि राधेश्याम सिंदुरिया दोनों ही पोस्ट मास्टर और नारायण चंद्राकर सेवानिवृत्त व्याख्याता बीएसपी को 2 मिनट मौन रखकर श्रद्धांजलि दिया गया।

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