September 29, 2024

Jammu Kashmir Voting Orders में बड़ा बदलाव, दूसरे राज्यों के लोगों को मतदान का अधिकार नहीं मिलेगा

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जम्मू-कश्मीर
Jammu Kashmir Voting Orders पर बड़ा बदलाव हुआ है। जम्मू के अधिकारी ने 1 वर्ष से अधिक समय से जम्मू-कश्मीर में रह रहे दूसरे राज्य के निवासियों को मतदाता बनने की अनुमति देने वाला आदेश वापस ले लिया है। आदेश जारी होने के ठीक एक दिन बाद, जम्मू के उपायुक्त ने अपने पहले के आदेश को वापस ले लिया। पहले के आदेश में जिले में एक वर्ष से अधिक समय से रह रहे लोगों को मतदाता के रूप में पंजीकृत करने की अनुमति दी गई थी।

जम्मू के उपायुक्त ने पहले जो आदेश जारी किया था उसके तहत उन सभी निवासियों को मतदाता के रूप में पंजीकरण करने की अनुमति दी थी जो एक वर्ष से अधिक समय से जम्मू में रह रहे हैं। जम्मू के उपायुक्त, अवनी लवासा ने तहसीलदारों (राजस्व अधिकारियों) को एक वर्ष से अधिक समय से जिले में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को निवास का प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत करने वाले अपने पहले के आदेश को वापस ले लिया। रोचक तथ्य है कि आदेश जारी होने के ठीक एक दिन बाद ऑर्डर वापस ले लिए गए। लवासा जिला चुनाव अधिकारी भी हैं।

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पहले के आदेश के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो जम्मू जिले में एक वर्ष से अधिक समय से रह रहा है, अगर उसके पास आधार कार्ड, पानी/बिजली/गैस कनेक्शन, बैंक पासबुक, पासपोर्ट, पंजीकृत भूमि विलेख आदि जैसे दस्तावेज हैं, तो इनका उपयोग करके मतदाता के रूप में पंजीकरण कराया जा सकता है। बता दें कि जम्मू कश्मीर वोटिंग आदेश का वहां के क्षेत्रीय दलों ने तत्काल विरोध किया था। जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (जेकेएनसी) ने कहा कि उन्होंने सरकार के इस कदम का विरोध किया था।

दिलचस्प है कि गैर-स्थानीय लोगों को मतदाता के रूप में पंजीकरण करने की अनुमति देने का मुद्दा अगस्त से चल रहा है। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्य चुनाव अधिकारी (सीईओ) हिरदेश कुमार ने घोषणा की थी कि गैर-स्थानीय लोग, जिनमें कर्मचारी, छात्र, मजदूर या बाहर का कोई भी व्यक्ति शामिल है, जो आमतौर पर जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं, तो ऐसे लोग वोटिंग लिस्ट में अपना नाम दर्ज करा सकते हैं। चुनाव आयोग ने कहा था, जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में दूसरे राज्यों से जम्मू-कश्मीर में आकर रह रहे लोग भी मतदान कर सकेंगे।

चुनाव आयोग के फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर की डेमोग्राफी से छेड़छाड़ के आरोप लगे। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के राजनीतिक नेताओं ने आयोग के इस फैसले का तुरंत विरोध किया था। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि भाजपा जम्मू-कश्मीर के वास्तविक मतदाताओं से समर्थन नहीं मिलने को लेकर असुरक्षित महसूस कर रही है। ऐसे में सीटें जीतने के लिए बीजेपी को अस्थायी मतदाताओं को आयात करने की जरूरत पड़ रही है।

2022 में विधानसभा चुनाव नहीं
दिलचस्प है कि अगस्त, 2019 में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद पहली बार चुनावी संशोधन किया जा रहा है। अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन को लेकर विवादों के बीच, जम्मू कश्मीर में गत तीन साल से अधिक समय से विधानसभा चुनाव नहीं हुआ है। आयोग ने चुनाव का ऐलान नहीं किया है, ऐसे में नवंबर 2018 से जम्मू कश्मीर में विधानसभा भंग होने के कारण निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं हैं। अब इस साल भी चुनाव होने की संभावनाएं खत्म हो गई हैं।

जम्मू कश्मीर में क्या बदलाव हुए
पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने भाजपा के अलग होने के बाद सरकार बनाने का दावा पेश किया था, लेकिन तत्कालीन राज्यपाल सत्य पाल मलिक ने राजनीतिक अस्थिरता और संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए विधानसभा भंग करने का ऐलान किया था। भाजपा ने मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार से हटने की घोषणा की थी। इसके बाद जून 2018 में जम्मू कश्मीर में पहले राज्यपाल शासन लगाया गया, इसके बाद अगस्त 2019 में संसद में पारित कानून के तहत इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया।

 

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