जीवन में महानता चाहिए तो विपत्ति के समय किंचित मात्र भी डरना और घबराना नहीं : आचार्यश्री
रायपुर
सन्मति नगर फाफाडीह में ससंघ विराजित आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने शुक्रवार को धर्मसभा में उपदेश दिया कि संकट की बेला में चित्त अस्थिर नहीं होना चाहिए। आपका मन विचलित न हो, उपसर्गकर्ता के प्रति भी उपसर्ग करने के परिणाम न हो,उनका नाम भगवान महावीर है। अवंती उज्जैन की क्षिप्रा नदी के तट के मुक्तक श्मशान में भगवान महावीर स्वामी पर बहुत उपसर्ग हुए,लेकिन भगवान क्षण मात्र भी हिले नहीं। अंत में परिणाम यह निकला कि उपसर्ग करने वाले को सिर टेकना पड़ा कि आप तो महावीर हो। इसलिए जीवन में महानता हासिल करना चाहते हो तो किंचित मात्र भी,स्वप्न में भी भयभीत मत होना और घबराना नहीं।
आचार्यश्री ने कहा कि आप सोचिए आपने यहां कितना ऊंचा मंडप बनाया है, बारिश के मौसम में कितना तेज पानी गिरा,बादल भी बहुत गरजे और बिजलियां भी बहुत कड़की,लेकिन आप सब मुस्कुराते रहे क्योंकि मंडप बहुत मजबूत था। बरसते बादलों में भी आप यहां उपदेश सुनते रहे, ऐसे ही ज्ञानियों जिन जीवों का पुण्य व धैर्य मजबूत होता है वे संकट की घडियों में भी आनंद का जीवन जीते हैं। जब-जब संकट व विपत्ति के दिन आए तो कभी नहीं सोचना चाहिए कि मेरा अशुभ हो रहा है,यह सोचना चाहिए कि मेरा विकास हो रहा है। सत्य का बोध तो संकट में ही होता है, जितने लोग अपने हैं इसका ज्ञान तभी होता है जब विपत्ति सामने आती है।
आचार्यश्री ने कहा कि जीवन में महानता हासिल करना चाहते हो तो बाहर की छतों को तो आपने देख लिया,अब भीतर की छत देखने की ओर चलो। यदि पानी न गिरे तो क्या मालूम पड़ेगा कि छत्ते में छेद है कि नहीं ? मूसलाधार पानी गिरने पर यदि छत्ता आपके ऊपर है और पानी अंदर न टपके,तब ही कहना छत्ता मजबूत है। ऐसे ही यदि आपने बहुत सुंदर मंदिर व भवन बनाया,लेकिन जब तक बारिश न हो तब तक आप अपने भवन व मंदिर की प्रशंसा मत करना। मूसलाधार बारिश के बाद भी छत यदि नहीं टपके तब प्रशंसा कर लेना।
आचार्यश्री ने कहा कि जिनको धर्म के फल की आकांक्षा है लेकिन वह धर्म के मार्ग पर नहीं चलना चाह रहा है। यदि आपको धर्म का भेद चाहिए तो धर्म के मार्ग में भी आपको ही चलना पड़ेगा। जगत में जो दिखाई दे रहा है,यहां प्राणी पुण्य के फल की आकांक्षा तो करता है, लेकिन पुण्य नहीं करना चाहता है। ऐसे-ऐसे लोग भी हैं,जो कहते हैं गुरुजी देश,राष्ट्र व समाज में परेशानी हैं आप मंगल आशीष दीजिए तो सारे दुख दूर हो जाएं,लेकिन कोई भी व्यक्ति भगवान का नाम नहीं लेना चाहता,पूजन पाठ नहीं करना चाहता लेकिन मेरा दुख दूर हो जाए यह चाहता है। ज्ञानियों परमात्मा आपका दुख दूर करने नहीं आएंगे,असाता को साता में परिवर्तित करने की शक्ति आपके पास है,प्रभु की भक्ति में इतनी क्षमता है,इसलिए जीवन में महान वही बनते हैं जो उपसर्ग सहन करना जानते हैं।