तमिलनाडु में हिंदी के खिलाफ माहौल बनाने की तैयारी में स्टालिन, विधानसभा में पेश करेंगे प्रस्ताव
चेन्नई।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन आज विधानसभा में केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाते हुए इसके खिलाफ एक प्रस्ताव पारित कर सकते हैं। सूत्रों के हवाले से कहा है कि प्रस्ताव में केंद्र सरकार से सभी भाषाओं के साथ समान व्यवहार करने का अनुरोध किया जाएगा। आपको बता दें कि केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की संसदीय समिति की सिफारिश के बाद स्टालिन के द्वारा यह कदम उठाया गया है। इससे पहले 13 अक्टूबर को सत्तारूढ़ डीएमके की युवा और छात्र शाखा ने केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाते हुए तमिलनाडु में राज्यव्यापी विरोध की घोषणा की थी। इसके अलावा, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने हिंदी भाषा को कथित रूप से थोपने के खिलाफ केंद्र की निंदा की थी।
स्टालिन ने अपने बयान में "हिंदी थोपने" के खिलाफ इतिहास में किए गए बलिदानों का जिक्र किया। 10 अक्टूबर को स्टालिन ने ट्वीट किया, "केंद्रीय भाजपा सरकार द्वारा हिंदी थोपने के लिए जोर दिया जा रहा है। यह भारत की विविधता को भंग करने की एक खतरनाक कोशिश है। संसदीय राजभाषा समिति की रिपोर्ट के 11वें खंड में किए गए प्रस्ताव भारत की आत्मा पर सीधा हमला है।" उन्होंने कहा, "यदि लागू किया जाता है तो विशाल गैर-हिंदी भाषी आबादी को अपनी ही भूमि में द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना दिया जाएगा। हिंदी को थोपना भारत की अखंडता के खिलाफ है। भाजपा सरकार को अतीत में हुए हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक सीखने की जरूरत है।''
अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) के नेता ओ पन्नीरसेल्वम (ओपीएस) ने सोमवार को शुरू हुए विधानसभा सत्र में शामिल नहीं होने के लिए प्रतिद्वंद्वी गुट के नेता एडप्पादी पललनिस्वई (ईपीएस) पर जमकर निशाना साधा। पूर्व मुख्यमंत्री ओपीएस को अन्नाद्रमुक के डिप्टी फ्लोर नेता के लिए कुर्सी पर बैठे सदन की कार्यवाही में भाग लेते देखा गया। ईपीएस विधानसभा सत्र में अनुपस्थित रहे। सूत्रों ने बताया कि उन्होंने विधानसभा सत्र का बहिष्कार किया क्योंकि प्रतिद्वंद्वी गुट के नेता ओपीएस को विधानसभा उप-नेता अध्यक्ष के रूप में बैठाया गया था। सत्र के बाद मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए ओपीएस ने कहा, "हम आज विधानसभा सत्र में अन्नाद्रमुक विधायक के रूप में भाग ले रहे हैं। आपको ईपीएस गुट से पूछना चाहिए कि वे विधानसभा सत्र में शामिल क्यों नहीं हुए।"