दिन कोई भी हो, धनतेरस को हर धातु की खरीदारी की जा सकती है
जबलपुर
पुराणों में वर्णित कथाओं में बताया गया है कि समुद्र मंथन के समय कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वन्तरि जब अपने हाथों में अमृत कलश लेकर समुद्र के अंदर से प्रकट हुए थे। धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंशावतार माना गया है। ऐसी मान्यता है कि विश्व में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए भगवान विष्णु ने ही धन्वतरि का अवतार लिया था। भगवान् धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। धनतेरस पर लोग किसी भी नई वस्तु को खरीदते हैं और उसकी पूजा की जाती है। धनतेरस पर नई वस्तु को खरीदना शुभ माना जाता है।
खरीदारी का पर्व धनतेरस 22 अक्टूबर (शनिवार) को परंपरागत रूप से आस्था व श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। इस दिन प्रदोष काल (सूर्यास्त के समय) में त्रयोदशी मिल रही है। कुछ लोगों की मान्यता है कि शनिवार को लोहा नहीं खरीदा जाता। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार धनतेरस को दिन का महत्व नहीं होता। प्रदोष काल में त्रयोदशी मिलने पर धातुओं की खरीदारी का शास्त्र निर्देश देते हैं। दिन कोई भी हो, धनतेरस को हर धातु की खरीदारी की जा सकती है। शास्त्रों में शनिवार को लोहा खरीदने का निषेध भी नहीं किया गया है। यह मात्र लोक मान्यता है। लेकिन यह मान्यता भी धनतेरस के दिन प्रभावी नहीं होती।
प्रदोष काल में त्रयोदशी मिलने पर धातुओं की खरीदारी की है बहुत पुरानी परंपरा
विद्वानों का कहना है कि शनिवार को सायं 4.33 बजे त्रयोदशी लग रही है जो रविवार को सायं 5.04 बजे तक है। इस दौरान कभी भी खरीदारी की जा सकती है। धनतेरस के दिन कि धनाध्यक्ष कुबेर की पूजा होती है। इस दिन धातु के बर्तनों को खरीदना समृद्धिदायक माना जाता है। यह पर्व घर में सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता है। सांयकाल मुख्य द्वार के दोनों ओर दीपदान करना चाहिए। यह दीपदान इस दिन से आरंभ कर भैयादूज तक किया जाता है। इससे यमराज प्रसन्न रहते हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। 22 अक्टूबर को खरीददारी के विशिष्ट मुहूर्त
सायं 5.39 से 7.10 बजे तक, शुभ बेला।
रात 10.39 से 12 बजे रात तक, चर बेला।
रात 12 बजे से 3.22 बजे तक, लाभ व अमृत बेला।
23 अक्टूबर को खरीददारी के विशिष्ट मुहूर्त
प्रातः 7.41 से 9.01 बजे तक, चर बेला।
9.02 बजे से दिन में 1.20 बजे तक, लाभ एवं अमृत बेला।
दिन में 2.40 से 4.01 बजे तक, शुभ बेला।