BMC चुनाव देगा और टेंशन- उद्धव ठाकरे को अस्तित्व के संकट की ओर धकेल रही भाजपा
नई दिल्ली
शिवसेना अब आधिकारिक तौर पर दो खेमों में बंट गई है। चुनाव आयोग की ओर से एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे गुट को अलग-अलग नाम और सिंबल दे दिए गए हैं। एकनाथ और उद्धव ठाकरे में से कौन इस जंग में विजेता रहा है, यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन भाजपा जरूर विजय की ओर बढ़ सकती है। इसकी शुरुआत बीएमसी चुनाव से ही हो सकती है, जहां मराठी वोटों में बड़ा बंटवारा होने की संभावना है। इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा और वह बड़े बजट वाली बीएमसी में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर सकती है।
मुंबई के सामाजिक समीकरण अब पहले जैसे नहीं रहे। इसके अलावा उद्धव ठाकरे की ताकत बंट चुकी है। जो बची भी है, उसके जरिए वह मराठी मानुस का कार्ड चलने में सक्षम नहीं दिख रहे हैं। फिलहाल शिवसैनिकों को यह पता ही नहीं है कि उन्हें किस राह पर जाना चाहिए। एक दौर में बालासाहेब ठाकरे के आह्वान पर शिवसैनिक हिंदुत्व और मराठी मानुस के नाम पर सड़कों पर होते थे, लेकिन अब उद्धव नए हिंदुत्व को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह नया हिंदुत्व कितना शिवसैनिकों और आम लोगों के गले उतरता है, यह बीएमसी चुनाव से साबित हो जाएगा। माना जाता है कि उद्धव ठाकरे अपने पिता की तरह स्ट्रीट फाइट की बजाय उदारवादी हिंदुत्व की विचारधारा पेश करना चाहते हैं।
कहा जा रहा है कि भले ही विधायक और सांसदों की बड़ी संख्या एकनाथ शिंदे के पास है, लेकिन शिवसेना का काडर उद्धव ठाकरे के समर्थन में है। हालांकि इसके बाद भी कड़े मुकाबले में विभाजन होने पर भाजपा के ही विजयी होने की संभावना है। इस तरह मराठी मानुस का बंटा वोट हिंदुत्व के नाम पर उतर रही भाजपा को फायदा देगा। महाराष्ट्र की राजनीति को समझने वालों का कहना है कि आने वाले दिनों में मराठी मानुस की राजनीति भी हिंदुत्व के अजेंडे में ही समाहित हो सकती है। यही भाजपा की कोशिश भी है, जिसके जरिए वह मराठियों के अलावा प्रवासी नागरिकों को भी साधती रही है।