अपने आप को योग्य साबित करने के लिए इमरान खान को लड़नी होगी लंबी कानूनी लडा़ई
लाहौर
पाकिस्तान के निर्वाचन आयोग ने खान को प्रधानमंत्री के तौर पर तोशाखाना (सरकारी भंडार गृह) में विदेशी नेताओं से मिले कीमती उपहारों की बिक्री से अर्जित आय छिपाने का दोषी पाया, जिसके बाद उनकी संसद सदस्यता चली गई। साथ ही पांच साल तक उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी गई है।
हालांकि अभी इस बात को लेकर असमंजस है कि पांच साल का प्रतिबंध मौजूदा असेंबली के पांच साल के कार्यकाल तक रहेगा या फिर निर्वाचन आयोग का फैसला आने की तारीख से यह प्रतिबंध शुरू होगा।
नेशनल असेंबली का वर्तमान कार्यकाल अगस्त 2018 में शुरू हुआ था। खान ने अप्रैल में संसद सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया था। इस लिहाज से, असेंबली का कार्यकाल पूरा होने तक उन पर प्रतिबंध लगा रहेगा।
खबर के अनुसार निर्वाचन आयोग का फैसला आने के तुरंत बाद खान (70) ने अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेताओं के साथ एक के बाद एक दो बैठकें कीं। इसके बाद जारी पहले से रिकॉर्ड संदेश में उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज कर दिया और सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने के बजाय कानूनी रूप से अयोग्यता को चुनौती देने की बात कही।
खबर के अनुसार खान ने इस मामले में संवैधानिक रास्ता अपनाने की बात कही, जो काफी पेचीदा है और कानूनी प्रक्रिया पूरी होने में महीनों न सही लेकिन कई हफ्तों का वक्त लग सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री पहले उच्च न्यायालय और फिर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकते हैं।
‘डॉन’ समाचार पत्र में खान की आगे की कानूनी लड़ाई को लेकर खबर प्रकाशित की गई है, जिसमें कहा गया है कि पार्टी ने अयोग्यता को इस्लामाबाद उच्च न्याायालय (आईएचसी) में चुनौती देने की घोषणा की है, लेकिन खान को सत्र न्यायाधीश के समक्ष एक और मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि निर्वाचन आयोग ने उपहारों के खुलासों के बारे में गलत जानकारी देने के लिए खान के खिलाफ एक शिकायत न्यायाधीश को भेजी है।
पार्टी की कानूनी शाखा के एक सदस्य के अनुसार, चूंकि निर्वाचन आयोग की ओर से इस तरह का प्रतिकूल फैसला आने की आशंका थी, इसलिए पार्टी की कानूनी टीम के प्रमुख सीनेटर सैयद अली जफर ने इस संबंध में पहले से ही एक याचिका का मसौदा तैयार कर लिया था।
खबर के अनुसार हालांकि लिखित आदेश नहीं होने के कारण खान समय पर फैसले को चुनौती नहीं दे पाएंगे क्योंकि सभी सदस्यों द्वारा विधिवत रूप से हस्ताक्षर किए गए निर्णय की सत्यापित प्रति प्राप्त होने पर ही उचित अपील दायर की जा सकती है।
हालांकि, पार्टी की मुख्य आपत्ति यह है कि पाकिस्तान निर्वाचन आयोग (ईसीपी) की सुनवाई गैर-न्यायिक थी, जिसका अर्थ है एक ऐसी कानूनी कार्यवाही से है, जो किसी विशेष मंच के दायरे से बाहर होती है।
‘पीटीआई’ की कानूनी टीम के एक वरिष्ठ सदस्य एडवोकेट फैसल हुसैन ने ‘डॉन’ को बताया कि पार्टी ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर करने की योजना बनाई है और वह उच्चतम न्यायालय में फैसले को चुनौती नहीं देगी।
उन्होंने कहा, “आदेश अपने आप में काफी कमजोर है और यह टिक नहीं पाएगा क्योंकि इसमें कई खामियां हैं।”