September 23, 2024

दक्षिण बस्तर में दिपावली नहीं दिवाड़ मनाने की है आदिम संस्कृति की यह परंपरा

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दंतेवाड़ा
दक्षिण बस्तर की प्राकृतिक सुंदरता एवं आदिम संस्कृति बस्तर की पहचान हैं। इन सबके अलावा यहां की परंपराएं और आदिम मान्यताएं वैश्विक स्तर पर एक अबूझ पहेली है। जिनमें से एक है बस्तर क्षेत्र में अदृश्य शक्तियों को मानने और उस पर आस्था रखने की मान्यता। दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा जिला में स्थित मां दंतेश्वरी का समृद्ध प्राचीन इतिहास है। आदिवासियों की आराध्या माता दंतेश्वरी मंदिर प्राचीन काल से ही आस्था का केंद्र रहा है, लेकिन यहां के रहने वाले बस्तर के निवासी भिन्न-भिन्न लोक आस्थाओं को मानने के बावजूद अदृश्य शक्तियों पर विश्वास रखते हैं। भारत में प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है, लेकिन बस्तर के दंतेवाड़ा जिले के एक छोटे से ग्राम बिंजाम में ऐसा नहीं है। यहां के लोगों के लिए स्थानीय स्तर पर लगने वाला हूंगा वेला मेला ही असली दिपावली है, जो कि अदृश्य शक्तियों को मानने का अनूठा पर्व है। अदृश्य शक्तियों को मानने और पूजने का दिवाड़ त्यौहार हूंगा वेला मेला आज ग्राम बिंजाम में संपन्न हुआ।

कौन है हुंगा वेला?
बस्तर के लगभग सभी क्षेत्रों में आंगा देव पूजनीय है इसी आधार पर इस क्षेत्र के प्रमुख देव उसेन डोकरा हैं। जो अपनी पत्नी कोयले डोकरी के साथ घोटपाल में रहते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि, उसेंन देव की दो शादियां हुई थी पहली पत्नी थूल डोकरी के साथ संबंध विच्छेद होने के बाद वह वर्तमान में अपनी दूसरी पत्नी के साथ घोटपाल में निवास करते हैं। इन दोनों से दो संतान हुई जो हूंगा और वेला के रूप में प्रसिद्ध हुए। इन्हें कोला के रूप में भी पहचान प्राप्त है।

क्यों लगता है हूंगा वेला मेला?
दरसल दिवाड़ के नाम से प्रचलित इसी त्यौहार को दीपावली कहते हैं। हर साल यह नवम्बर के महीने में मनाया जाता है। इस त्यौहार को दंतेवाड़ा जिले के ग्राम बिंजाम और गदापाल में मनाया जाता है, जिसमें आस-पास के गांव से सभी आंगा देव शामिल होते हैं। इस मेले में हूंगा वेला देव प्रमुख होते हैं क्योंकि सभी देव इनके घर आते हैं, पंडेवार, फरसपाल, मसेनार, गोंडपाल आस-पास के सभी गांवों से यहां देवों का जमावड़ा होता है। इस मेले में देवों के सभी रिश्तेदार भी शामिल होते हैं। जिनमें गढ़ बोमड़ा, बोमड़ा देव, जात वोमड़ा, कड़े लिंगा ये सभी मौजूद होते हैं।

हूंगा वेला मेले की शुरूआत
हूंगा और वेला देव उत्सव में शामिल होने आए सभी देवों का स्वागत करते हैं, दूसरे देवों को जगाते हैं, जिसके बाद सभी देव गुड़ी के सामने बैठ कर पूजा अर्चना करते हैं। इसमें विशेष वोदा का फल, गोटफल और देसी मुर्गी का अंडा चढ़ाया जाता है, फिर देव एक दूसरे से गले मिलते हैं। चूंकि ये सालों बाद मिलते हैं इसीलिए मोहरी बजाकर उत्सव मनाया जाता है। बस्तर में मोहरी बाजा का खास स्थान है, दरअसल बस्तर में मोहरी के बिना कोई भी काम पूरा नहीं होता है। मेले का आकर्षण मोहरी बाजा की धुन पर सभी देव थिरकते हैं और गुड़ी के आस पास सभी नियमों को करते हुए चावल चढ़ाते हैं। इसके बाद सभी देव नदियों की ओर प्रस्थान करते हैं और एक साथ नदी में छलांग लगाते हैं।

चूंकि बस्तर के लोग प्राकृतिक पूजक होते हैं, इसलिए इनके देव भी इसी में बने होते हैं। कोई बांस, महुआ, शीशम या सागौन के बने होते हैं। ये सभी नदी में डूबकर स्नान करते हैं। स्नान के बाद जब ये वापस लौटते हैं तो इस मेले में आए हुए बस्तरवासी आंगा से निकलते हुए पानी को पत्ते से बने हुए दोनी में जमा करते है। ऐसा माना जाता है कि आंगा के स्नान के बाद का पानी के पीकर लोगों की शारीरिक व्याधियां दूर हो जाती है। जैसे- जिन्हें कम सुनाई देता है उनके कान पर यह पानी डालने से वे ठीक हो जाते हैं। मान्यता के अनुसार पानी को आशीर्वाद के रूप में सभी आंगा देव के शरीर से निकलने के बाद जमा किया जाता है और उपयोग में लाया जाता है।

स्नान के बाद सभी आंगा देव एक खुले मैदान में एकत्रित होते हैं जहां इस मेले का सबसे विशेष और खास दृश्य देखने को मिलता है। यहां दूर दूर से जमा हुए लोग एक गोलाकार आकृति में जमा होते हैं और बीच में शादीशुदा जोड़े देवों के आशीर्वाद के लिए जमीन पर लेटकर उनकी प्रतीक्षा करते हैं। मान्यता है हुंगा वेला से बच्चे की कामना पूरी करने दूर-दूर से विवाहित जोड़े आते हैं।

 

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