November 22, 2024

इजरायल: दोस्त बेंजामिन नेतन्याहू फिर बन सकते है PM!

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जेरूसलम
इजरायल में पांच साल में चौथी बार चुनाव होने जा रहे हैं. कल एक नवंबर को इजरायल में फिर वोटिंग होगी. एक बार फिर बेंजामिन नेतन्याहू के प्रधानमंत्री बनने की प्रबल संभावना मानी जा रही है. उनकी लिकुड पार्टी को स्पष्ट बहुमत तो मिलता नहीं दिख रहा, लेकिन सहयोगी दलों के सहारे वे सरकार बनाने में कामयाब हो सकते हैं. नेतन्याहू के प्रतिद्वंदी यैर लैपिड भी उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं, उनकी Yesh Atid party दूसरे पायदान पर रह सकती है. वहीं इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री नैफताली बेन्नेट ने इस बार खुद को चुनाव से दूर कर लिया है, वे नहीं लड़ने वाले हैं. उनके इस फैसले ने चुनावी मुकाबले को नेतन्याहू बनाम लैपिड बना दिया है.

क्या कहते हैं चुनावी सर्वे?

अब वोटिंग से पहले कुछ ओपिनियन पोल भी किए गए थे जिनके नतीजे बताते हैं कि नेतन्याहू और लैपिड के बीच में टक्कर तो कड़ी रहने वाली है, लेकिन लिकुड पार्टी दूसरे सहयोगी दलों के साथ बहुमत साबित करने में कामयाब हो सकती है. न्यूज आउटलेट Israel Hayom के फाइनल सर्वे के मुताबिक नेतन्याहू की पार्टी इस चुनाव में 30 सीटें जीत सकती है. लेकिन उनका दक्षिणपंथी और धार्मिक सहयोगियों का जो गुट है उसके खाते भी अच्छी सीटें आती दिख रही हैं. सहयोगी दलों के साथ लिकुड पार्टी को 61 सीटें मिलती दिख रही हैं. ऐसे में कुल आंकड़ा बहुमत साबित करने के लिए काफी रह सकता है. वहीं यैर लैपिड की Yesh Atid party को इस सर्वे में 25 सीटें दी जा रही हैं. वहीं उनके नेतन्याहू विरोधी गुट को भी इसमें शामिल कर लिया जाए तो उनका आंकड़ा 59 पहुंच जाता है, यानी कि बहुमत दो सीटें कम.

अब इस ओपिनियन पोल में जरूर नेतन्याहू मामूली बढ़त लेते दिख रहे हैं, लेकिन कुछ दूसरे चैनलों के सर्वे भी सामने आए हैं जहां पर ये चुनावी लड़ाई उम्मीद से ज्यादा टाइट बताई जा रही है. इजरायली डेली Maariv के मुताबिक दोनों नेतन्याहू और लैपिड की पार्टी को इस चुनाव में 60-60 सीटें मिल सकती हैं. तीन और सर्वे जो किए गए हैं, उनमें भी दोनों पार्टियों को 60-60 सीटों पर दिखाया जा रहा है. ऐसे में बहुमत से दोनों ही नेता दूर चल रहे हैं. लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि नेतन्याहू के सहयोगी दल ज्यादा एकजुट हैं, ऐसे में कम सीटों के बावजूद भी सरकार बनाने के प्रबल दावेरादर वे रहने वाले हैं.

इजरायल की चुनावी व्यवस्था क्या है?

इसे ऐसे समझ सकते हैं कि 120 सीटों वाले इजरायल चुनाव में जिस भी पार्टी के पक्ष में वोटर टर्नआउट ज्यादा रहता है, उसकी जीतने की उम्मीद ज्यादा बन जाती है. असल में इजरायल में जनता कभी भी किसी उम्मीदवार के लिए वोट नहीं करती है, उनकी तरफ से पार्टी को वोट दिया जाता है. अगर संसद में किसी को भी सीट चाहिए होती है तो नेशनल वोट का कम से कम 3.25% चाहिए ही होता है. यानी कि इजरायल में प्रोपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन वाली चुनावी व्यवस्था चलती है जहां पर जिस पार्टी को जितना वोट मिलेगा, उसी के हिसाब से उसे सीटें भी मिलेंगी.

वर्तमान में कहा जा रहा है कि नेतन्याहू और उनकी चार सहयोगी पार्टियां आराम से 3.25% वोट प्रतिशत हासिल कर लेंगी. इस स्थिति में नेतन्याहू सरकार बनाने के बेहद करीब रहेंगे. वहीं बात अगर लैपिड की करें तो उनके समर्थन करने वाले सभी 3.25% वोट वाली रेखा को पार कर पाएंगे, ऐसा मुश्किल लगता है, और अगर कोई भी दल ऐसा करने में फेल हो जाता है, उस स्थिति में नेतन्याहू की राह और ज्यादा आसान हो जाएगी.

इजरायल में अस्थिरता वाला दौर

अब बात करते हैं इजरायल की राजनीतिक अस्थिरता की जिस वजह से अब तक पांच साल में चार बार चुनाव हो चुके हैं और पांचवीं बार होने वाले हैं. इसकी शुरुआत साल 2018 में हो गई थी जब बहुमत से एक सीट कम होने की वजह से मध्यावधि चुनाव करवाया गया था. उस चुनाव में नेतन्याहू को तो बहुमत नहीं मिलता, लेकिन वे दूसरे दूलों के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश करते रहे. जब वो गठबंधन नहीं बन पाया, तब नेतन्याहू ने बड़ा फैसला लेते हुए फिर चुनाव करवाने का ऐलान कर दिया. इजरायली सेना के पूर्व प्रमुख बेनी गैंट्स को सरकार बनाने का मौका दिया जा सकता था, लेकिन उसकी जगह फिर आम चुनाव का ऐलान कर दिया गया.

उसके बाद 17 सितंबर 2019 को इजरायल में फिर चुनाव होते हैं, टक्कर बराबर की रहती है और हमेशा की तरह किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलता. सरकार क्योंकि कोई भी दल बनाने की स्थिति में नहीं आ पाता, इसलिए तीसरी बार चुनाव का ऐलान कर दिया जाता है. अब आखिरी बार 23 मार्च, 2021 को इजरायल में चुनाव हुए थे. तब भी मुकाबला तो बराबर का ही रहा, लेकिन अंत में सरकार बनाने में यैर लैपिड सफल हो गए. उनके नेतन्याहू के खिलाफ वाले दलों का जो गुट तैयार था, वो सभी साथ आए और सरकार बनाई गई. लेकिन गठबंधन पूरे एक साल भी नहीं चल सका और अब फिर देश को चुनाव में झोंक दिया गया है. इस चुनाव में भी कई मुद्दे हैं लेकिन चर्चा का केंद्र सिर्फ बेंजामिन नेतन्याहू बने हुए हैं. ये चुनाव उन्हीं के इर्द-गिर्द चल रहा है, उनके जीतने की संभावना भी जताई जा रही है. वे खुद तो बहुमत हासिल नहीं कर रहे हैं, लेकिन सहयोगी दलों के सहारे उनका फिर पीएम बनने का सपना पूरा हो सकता है.

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