कमलनाथ 15 नवंबर को शिकारपुर में गांधी चौपाल में सुनेगें समस्याएं
सीहोर
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 में प्रदेश की सत्ता में काबिज होने के लिए कांग्रेस (Congress) तेजी से जमीनी स्तर पर काम कर रही है. जनता के बीच पहुंचने के लिए प्रदेश कांग्रेस ने गांधीवादी रास्ता चुना है. इसके लिए कांग्रेस द्वारा गांधी जयंती दो अक्टूबर से गांधी चौपाल की शुरूआत की गई है. सवा महीने के अंतराल में अब तक मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिलों, गांवों में सात हजार से अधिक गांधी चौपालों का आयोजन किया जा चुका है. वहीं गांधी चौपाल में कांग्रेस के बड़े नेता शामिल होकर जनता से रुबरु हो रहे हैं. इसी के साथ 15 नवंबर को छिंदवाड़ा के शिकारपुर में गांधी चौपाल का आयोजन किया जाएगा. इसमें खुद पीसीसी चीफ व पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ (kamal Nath) शामिल होकर लोगों की समस्याओं से अवगत होंगे.
छिंदवाड़ा में एक दिन में 54 गांधी चौपालें
कांग्रेस नेता और गांधी चौपाल के मध्य प्रदेश प्रभारी भूपेंद्र गुप्ता ने बताया कि आगामी 15 नवंबर को छिंदवाड़ा के शिकारपुर में आयोजित गांधी चौपाल में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ शामिल होंगे. छिंदवाड़ा जिले में एक ही दिन में एक साथ अलग-अलग समन्वयकों द्वारा 54 गांधी चौपाल लगाने का रिकार्ड कायम किया है. भूपेन्द्र गुप्ता ने यह भी बताया कि मध्य प्रदेश में ग्वालियर, निवाड़ी, सतना, रीवा, सिंगरौली, इंदौर, सागर, सीधी, टीकमगढ़, भिंड, मुरैना, खंडवा आदि जिलों में सर्वाधिक चौपालें आयोजित हुई हैं.
चौपालों में आंसू बहा रहे ग्रामीण
भूपेन्द्र गुप्ता ने बताया कि गांधी चौपालों में ग्रामीण आपबीती सुना रहे हैं. समस्या बताते-बताते लोगों की आंखों से आंसू आ रहे हैं, कि वे किस तरह बदहाल हालातों में हैं. चौपालों के माध्यम से जो जानकारियां सामने आ रही हैं वे चौंकाने वालीं हैं. कई जिलों में टापुओं पर नागरिक बसाहटें हैं. गांव जाने के लिए नाव से जाना पड़ता है और नाव से उतरने के बाद भी दो-दो किलोमीटर ऊपर पहाड़ चढ़ना पड़ता है. प्रदेश के ज्यादातर सीमावर्ती इलाके पलायन की समस्या से ग्रसित हैं. कई गांव में बुजुर्ग महिलाओं के अलावा कोई भी नहीं मिलता. सारे पुरुष गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और मुंबई काम की तलाश में पलायन कर गए हैं.
सीहोर कांग्रेस को गांधी चौपाल से परहेज
प्रदेश में न तो मनरेगा या अन्य कोई योजना उन्हें संतोषजनक काम देने में अफसल हुई है. कई गांव में बिजली नहीं है, कई में बिजली काट दी गई है. पीने के पानी के लिए मीलों दूर जाना पड़ता है. डॉक्टरों की उपलब्धता ग्रामीण क्षेत्रों में कभी-कभी भगवान के वरदान की तरह मिल पाती है. हैरान करने वाली बात है कि पीने का पानी, बिजली और अधिकृत राशन तो नहीं पहुंचा किंतु नशा गांवों-गांव तक पहुंच गया है. प्रदेश भर में भले ही कांग्रेस पूरी तरह से सक्रिय हो लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले में कांग्रेस की सक्रियता शून्य है. इसका उदाहरण भी नजर आता है कि यहां तीन संसदीय क्षेत्र लगते हैं तीनों ही सांसद बीजेपी से है.
इसी तरह चार विधानसभाओं में बटा सीहोर जिले की चारों ही विधानसभा बीजेपी के कब्जे में है. इतना ही नहीं अभी हाल में हुए लोकल निकाय चुनावों में नौ निकायों वाले सीहोर जिले में महज एक कांग्रेस के खाते में है. जबकि शेष पर बीजेपी काबिज है. इतना होने के बाद भी सीहोर कांग्रेस गांधी चौपालों से परहेज कर रही है.