मीडिया रिपोर्टिंग में लैंगिक दृष्टिकोण और संवेदनशीलता जरूरी
अमिताभ पाण्डेय
आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति उपेक्षा और भेदभाव को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सका है ।भारत की सामाजिक व्यवस्था में सभी महिलाओं को अब तक बराबरी का दर्जा नहीं मिल पाया। देश के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली पिछड़े – कमजोर वर्ग – आदिवासी समुदाय की महिलाएं उपेक्षा – अपमान – भेदभाव – अत्याचार के बीच जीवन बिताने पर मजबूर हैं।
इसके साथ ही महानगरों में रहने वाली उच्च वर्ग की महिलाओं को भी घरेलू हिंसा , भेदभाव का शिकार होना पड़ता है ।महिला और पुरुष के बीच लैंगिक आधार पर होने वाले इस भेदभाव को समाप्त किए जाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इसके बाद भी स्त्री-पुरुष के बीच हमारे दृष्टिकोण में लैंगिक समानता नहीं बन पाई है।
हमारी सामाजिक – राजनीतिक – आर्थिक व्यवस्था में महिलाएं लैंगिक आधार पर विभाजित कर दी गई हैं ।लैंगिक समानता नहीं होने का असर सामाजिक – आर्थिक व्यवस्था पर भी साफ-साफ नजर आता है । एक ही काम का वेतन पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग – अलग होता है। अब भी समाज में अनेक क्षेत्र ऐसे हैं जहां महिलाओं को काम करने नहीं दिया जाता।अनेक धार्मिक स्थलों पर भी महिलाओं को प्रवेश नहीं मिलता है। इसी प्रकार खाने – पीने में भी महिलाओं को प्राथमिकता नहीं मिल पाती है।
ग्रामीण इलाकों में तो रात का बचा हुआ ठंडा , बासी खाना ज्यादातर महिलाओं के हिस्से में ही आता है। वे घरेलू हिंसा का भी शिकार होती हैं और इसको अपनी किस्मत मानकर चुपचाप बर्दाश्त करती रहती हैं। महिलाओं के हक अधिकार की बातें नियम कानून बनकर किताबों में ही कैद हैं। ऐसे नियम कानून का लाभ सभी महिलाओं को नहीं मिल पाता है।
महिलाओं से भेदभाव के अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। अब समय आ गया है कि लैंगिक आधार पर होने वाले भेदभाव को पूरी तरह समाप्त करने के लिए एकजुट होकर प्रयास किए जाएं। इस प्रयास में समुदाय ,समाज, सरकार सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो। हमारे लैंगिक दृष्टिकोण में समानता हो , यह हमारे कार्य व्यवहार में दिखाई देना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि मीडिया में भी लैंगिक समानता का नजरिया बढ़ाने की बहुत अधिक आवश्यकता है ।मीडिया कर्मी अपनी रिपोर्टिंग में लैंगिक दृष्टिकोण का ध्यान रखें। समाचार आलेख लिखते समय लैंगिक संवेदनशीलता को भी अपने लेखन में शामिल करें। लैंगिक समानता के मुद्दे पर मीडिया की समझ बढ़े।
इन सभी विषयों को ध्यान में रखते हुए सामाजिक संस्था पापुलेशन फर्स्ट , यू एन एफ पी ए , और मध्य प्रदेश शासन के महिला बाल विकास विभाग ने चयनित पत्रकारों के लिए मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया है। इसका आयोजन 12 और 13 नवंबर को भोपाल के नजदीक सीहोर के क्रिसेंट रिसोर्ट में होगा। इस कार्यशाला के बारे जानकारी लाडली मीडिया और पापुलेशन फर्स्ट की प्रोग्राम मैनेजर रितु मोतीलाल ने दी ।
उन्होंने बताया कि मीडिया कार्यशाला को यू एन एफ पी ए के स्टेट हेड सुनील थामस जैकब , अनुजा गुलाटी अनुराग सोनवलकर , पापुलेशन फर्स्ट की डायरेक्टर डा. ए एल शारदा , मध्यप्रदेश माध्यम के प्रमुख संपादक प्रोफेसर पुष्पेंद्र पाल सिंह , महिला बाल विकास विभाग मध्यप्रदेश शासन के संयुक्त संचालक सुरेश तोमर के साथ ही अनेक सामाजिक कार्यकर्ता भी संबोधित करेंगे। इस कार्यशाला में पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्र बड़ी संख्या में शामिल होंगे ।
कार्यशाला के दौरान वरिष्ठ पत्रकार संतोषी गुलाब कली मिश्रा की फिल्म मुंबई 400008 का प्रदर्शन भी किया जाएगा।
प्रदर्शन के उपरांत फिल्म के बारे में विषय विशेषज्ञ विचारों का आदान प्रदान करेंगे। इस फिल्म में मुंबई के कमाठीपुरा इलाके की महिलाओं की पीड़ा को दिखाया गया है। यह फिल्म लेंगिक भेदभाव , शोषण , अन्याय को बताती है ।