पश्चिमी देशों की परवाह छोड़,रूस और ईरान से तेल की खरीदारी को बढ़ा रहा भारत
नई दिल्ली
अमेरिका के दबाव में ईरान से तेल सप्लाई कम करने वाला भारत अब बिना पश्चिम की परवाह किए रूस और ईरान से तेल की खरीदारी को बढ़ा रहा है. दरअसल, समय के साथ भारत में तेल और गैस की मांग में इजाफा हो रहा है. ऐसे में भारत को जो भी सप्लायर सस्ता तेल दे रहा है, भारत उसकी ओर ही कदम बढ़ा रहा है, चाहे वह अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में ही आते हों.
मौजूदा समय में इसका उदाहरण ईरान के साथ-साथ रूस भी है, जो यूक्रेन से जंग की वजह से पश्चिमी देशों का कड़ा आर्थिक प्रतिबंध झेल रहा है. वहीं ईरान पर भी अमेरिका ने कई तरह के प्रतिबंध लगाए हुए हैं. इसके बावजूद भारत लगातार दोनों देशों से तेल सप्लाई कर रहा है.
हालांकि, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान अमेरिकी प्रतिबंधों के डर से भारत ने ईरान से तेल खरीदना कम कर दिया था. लेकिन भारत ने एक बार फिर ईरान से तेल आयात शुरू कर दिया है.
हाल ही में भारत में ईरानी राजदूत इराज ईलाही ने कहा था कि ईरान भारत को कच्चा तेल सप्लाई करना चाहता है. ईलाही ने कहा था कि ईरान हमेशा भारत के साथ आर्थिक संबंधों को बढ़ाने की बात करता आया है. अब यह भारत के ऊपर है, हम तेल सप्लाई के लिए तैयार हैं. बता दें कि साल 2019 तक ईरान भारत का मुख्य तेल सप्लायर था लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद तेल सप्लाई में कटौती हो गई.
अक्टूबर में भारत ने ऐलान करते हुए कहा था कि तेल को अलग-अलग सप्लायरों से आयात किया जाएगा, जिससे ओपेक प्लस की किसी भी कटौती का देश की आपूर्ति पर असर न पड़े. केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा था कि तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक प्लस की कटौती का असर भारत जैसे बड़े आयातक देशों पर होगा, जिसने साल 2021 में ही करीब 120 अरब डॉलर के पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का आयात किया है.
मालूम हो कि सऊदी अरब के दबदबे वाले ओपेक प्लस संगठन ने अक्टूबर में प्रतिदिन 20 लाख बैरल तेल का उत्पादन घटाकर अमेरिका समेत काफी देशों को चौंका दिया था. अमेरिका ने तो भी इस बात पर कड़ी आपत्ति भी जताई थी. हालांकि, सऊदी अरब ने कहा था कि तेल बाजार में अस्थिरता से बचने के लिए कटौती का यह फैसला किया गया है.
वहीं रिफाइनरों को यह भी चिंता है कि आने वाले समय में रूस पर पश्चिमी देश अपने प्रतिबंधों को और ज्यादा कड़े कर सकते हैं, जिसकी वजह से भारत को होने वाली तेल सप्लाई में बाधा उत्पन्न हो सकती है. इसी वजह से इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन, दोनों अमेरिका जैसे बड़े निर्यातकों के साथ भी नए करार करने की कोशिशों में लगे हुए हैं.
सरकारी तेल कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि जिस तरह से यूक्रेन और रूस की जंग की वजह से दुनिया में अनिश्चितता बनी हुई है, हमें जरूरत है कि हर तरह के विकल्पों पर नजर रखी जाए.
वहीं अन्य तेल कंपनी के एक सूत्र ने बताया कि रूस और यूक्रेन के विवाद की वजह से बाजार में तेल की सप्लाई प्रभावित होने की आशंका है, जिस वजह से तेल सप्लाई का फ्लो भी बदल सकता है और खाड़ी देशों से काफी तेल यूरोपियन देशों भी सप्लाई किया जा सकता है. ऐसे में भारत को पहले ही तेल सप्लाई के मामले में विविधता लाने की जरूरत है.
भारतीय तेल कंपनियां पहले ही पूरे विश्व में यह साफ कर रही हैं कि तेल खरीदारी के लिए उन्हीं देशों की ओर रुख किया जाएगा, जो देश उन्हें सस्ता तेल देगा. अब चाहे अमेरिका और यूरोप इसे लेकर नाराजगी ही क्यों ना जाहिर करें.
अक्टूबर में रूस से खरीदा भारत ने सबसे ज्यादा तेल
एनर्जी एनालिटिक्स फर्म वोर्टेक्सा के अनुसार, अक्टूबर में भारत ने रूस से सबसे ज्यादा तेल खरीदा है. यूक्रेन विवाद शुरू होने से पहले भारत थोड़ी मात्रा में ही रूस से तेल खरीदता था. यूक्रेन से जंग के बाद रूस पर यूरोपिय यूनियन और अमेरिका के कई कड़े प्रतिबंध लग गए, जिसके बाद से ही भारत और रूस के बीच तेल का कारोबार बढ़ता चला गया. इसका एक कारण यह भी था कि प्रतिबंधों के लगने के बाद रूस ने सस्ते दाम पर तेल बेचना शुरू किया. भारत ने अपना फायदा देखा और दूसरे निर्यातकों को थोड़ा कम करते हुए रूस से ज्यादा मात्रा में तेल खरीदना शुरू कर दिया.