जब भारतीय जवानों ने चीनी सैनिकों के छुड़ा दिए थे छक्के, बहादुरी की मिसाल वालोंग युद्ध
नई दिल्ली
गलवान घाटी में हुए क्लैश के बाद भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा हुआ है। तमाम वार्ताओं के बाद भी इस तनाव में कमी नहीं दिखाई दे रही है। भारत और चीन के बीच विवाद कोई नया नहीं है। इस महीने वालोंग के शहीदों को भी याद किया गया। 60 साल पहले1962 में भातीय सेना ने वालोंग की लड़ाई में जो चीन के खिलाफ जिस अदम्य साहस का प्रदर्शन किया था, वह आज भी याद किया जाता है और शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाते हैं। कम गोला-बारूद और अन्य संसाधनों के बावजूद यहां भारतीय सेना ने पीएलए को सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।
यहां भारतीय सैनिकों ने चीन के सैनिकों को 27 दिन के लिए रोक दिया था। तवांग से वालोंग की तरफ आ रहे सैनिकों को किनारा पकड़ना पड़ गया था। कम संशाधनों के बावजूद भारतीय सैनिकों ने बहादुरी दिखाई और आखिरी सांस तक वे लड़ते रहे। इतने दिनों में चीनी सैनिकों की हालक पस्त हो गई और बड़ी संख्या में मारे भी गए। वालोंग का यह युद्ध और शहीद लोगों की प्रेरणा बने हुए हैं। इसी युद्ध को याद करते हुए एक महीने का हीरक जयंती समारोह शुरू हुआ था। इसकी शुरुआत 17 अक्टूबर को हुई थी। समारोह के शुरुआत में जीओसी ने स्मारक पर शहीदों कि श्रद्धांजलि दी। यहां उन स्थानीय लोगों को भी सम्मान दिया गया जिन्होंने सेना की मदद की थी। इस मौके पर वहां के रहने वाले लोगों ने भी सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए।
अरुणाचल प्रदेश के गांव में आज भी शहीदों की प्रतिमाएं खड़ी हैं। इनका निर्माण 1962 के शहीदों की याद में किया गया था। बात 21 अक्टूबर 1962 की थी। आधी रात में चीन के सैनिकों ने मात्र 700 मीटर दूर के बंकर से भारतीय चौकियों पर गोलीबारी शुरू कर दी। चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया तो कुमाऊं रेजिमेंट की यूनिट ने जवाबी हमला किया। भारतीय सैनिकों ने यहां जमकर बहादुरी दिखाई और चीनी सेना के छक्के छुड़ा दिए।
तीन हफ्ते तक सैनिकों ने पीएलए को रोके रखा। यह स्थिति देखकर चीन को और ज्यादा सैनिक बुलाने पड़े। इधर भारतीय सेना के पास गोला बारूद की सप्लाई ठीक से नहीं हो पा रही थी। इसके बाद चीन ने ट्राई जंक्शन पर निशाना साधना शुरू कर दिया। इससे वह मार्ग बाधित हो या जिससे भारतीय सेना को उपकरण उपलब्ध करवाए जाते थे। इसके बाद मजबूर होकर भारतीय सैनिकों को वापस बुलाना पड़ा।