November 29, 2024

मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार के गंदगी की सफाई कर देती है सत्संग : मैथिलीशरण भाई जी

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रायपुर

जिस दिन व्यक्ति यह मान ले कि माता -पिता, सखा, स्वामी नहीं बल्कि मेरे सब कुछ राम है इससे ज्यादा कुछ नहीं उस दिन उसकी मति पवित्र हो जायेगी। जितनी गंदगी है उतनी सफाई भी जरूरी है यह सत्य है। अंडरग्राउंड से कचरे की गंदगी ढक जाती है,सफाई नहीं होती है। उसको निकालने सफाई करने वाले की जरूरत पड़ेगी जो साफ कर उसे उसकी जगह पहुंचा दे। कृपासिंधु भगवान हैं कि हमारे मन की गंदगी को बार-बार साफ करने तैयार हैं और हम है कि उसे अंडरग्रांउड कर रखे हैं। मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार की जो गंदगी जम जाती है,सत्संग उसकी सफाई कर देती है।

मैक कालेज आडिटोरियम में श्रीराम कथा प्रसंग में मैथिलीशरण भाई जी ने बताया कि व्यक्ति का कार्य उसे कथा में आने से रोकता है,भगवान की जिस पर बहुत कृपा होती है वही समय निकाल कर कथा सत्संग में पहुंचता है। सत्संग की किसी एक वाक्य को पकड़ ले और साधक उसे ह्दय में ग्रहण कर लेता है तो कभी अविद्या उसके जीवन में प्रवेश नहीं करेगा। सत्संग से भक्ति का पोषण होता है,भक्ति सुरक्षित रहती है। मन बुद्धि चित्त अहंकार की जो गंदगी जम जाती है, सत्संग उसकी सफाई कर देती है। भगवान तो खड़े हुए हैं आप धारण तो करें। जो भगवान को मानेगा उसके अंदर काम क्रोध लोभ मोह कहां से आयेगी?

भाई जी ने आगे बताया कि पढऩे से ज्ञान सीमित मिलता है लेकिन अनुभव से असीमित ज्ञान की प्राप्ति होती है। यहां तक की अज्ञानी से भी ज्ञान मिल जाता है यह अनुभव बताता है। मौलिकता के नाम पर आज लोग माया का प्रचार कर रहे हैं,कई तो ऐसे हैं जो राम की जगह रावण का इसलिए प्रचार कर रहे हैं क्योकि सभी तो राम का ही करते हैं। ग्रंथ तो पढ़ लिया लेकिन ग्रंथ का जो सार है उसका ज्ञान ही नहीं हैं। ऐसे ही लोग कुतर्क करते हैं कि श्रीराम बड़े हैं कि विष्णु। इसके लिए अत्यंत जरूरी है ग्रंथ के सार को जानना। शिव को मानते हैं और उसके प्रति श्रद्धा है तो आपकी श्रद्धा खंडित नहीं होनी चाहिए। फिर कथित रूप से शिव को लेकर प्रचारित करने वाले को कैसे मान रहे हैं। शिव के प्रति आपकी श्रद्धा अखंड होनी चाहिए। सत्संग करने के बाद आपको अपने स्वरूप का ज्ञान हो जायेगा। सत्संग में दूसरे की बात सुननी पड़ती है और सुनने के बाद विश्वास भी करना पड़ता है। जो विश्वास की पटरी पर बिठा लेता है तब तो ठीक नहीं तो लोग गोस्वामी जी की भी गलती बता बैठते हैं। जिसका ह्दय संत होगा वही मानेगा अन्यथा व सिद्ध करने पर अड़ जायेगा।

उन्होने बताया कि प्रेम के स्वरूप का प्रतिपादन करने वाला दुनिया में न कोई हुआ है न होगा। इसीलिए ईश्वर को अखंड कह के पुकारा जाता है। आपके जीवन में जो कार्य माता पिता का है उसका स्थान कोई नहीं ले सकता। वे सर्वोच्च होते हैं और हमेशा रहते हैं। प्रतिपादन में भेद भले ही होता है पर लक्ष्य एक ही होता है। व्यक्ति के मति में जब पर्दा पड़ जाता है तो नुकसान उसी का ही होता है। भगवान तो अपने भक्त की रक्षा करने के लिए कभी भी चले आते हैं।

सद है तो असद भी रहेगा ही,अब उसका उपयोग कैसे करना है यह आप को तय करना है। घर में गैस है, बिजली है और भी मारक पदार्थ रखे बैठे हैं। लेकिन उसका उपयोग भी आवश्यक हैं समझदार व्यक्ति सदुपयोग करता है,जितनी उपयोगिता है,जो सुरक्षा है सभी को ध्यान में रखते हुए उपयोग करता है। सात दिन, सात काल, सात आवरण, सात स्वर सबकी अपनी जगह उपयोगिता है। ठीक वैसे ही माया का जितना उपयोग करना है करके छोड़ देने पर ही समझदारी है।

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