एनजीओ के सहारे ST सीटों पर आदिवासियों को साधेगी कांग्रेस
भोपाल
प्रदेश की आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 विधानसभा सीटों पर जीत को लेकर कांग्रेस और भाजपा अपने-अपने तरीके से रणनीति बना रही है। इस कड़ी में कांग्रेस अब आदिवासियों को रिझाने के लिए गैर सरकारी संगठन (एनजीओ ) का सहारा लेने जा रही है। इन एनजीओ के जरिए वह आदिवासी वोटर्स में अपनी पैठ को मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है। इस रणनीति पर कैसे काम करना है यह दिसंबर में होने वाले एक सम्मेलन में साफ हो जाएगा।
प्रदेश कांग्रेस अब ऐसे एनजीओ और उनके कर्ताधार्ताओं को अपने साथ जोड़ने का काम कर रही है, जो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में काम करते हैं। ऐसे कई एनजीओ से कांग्रेस संपर्क कर रही है। इनके साथ ही ऐसे सामाजिक कार्यकर्ताओं तक भी वह पहुंच रही है जो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं और एनजीओ के जरिए कांग्रेस आदिवासियों तक मजबूती के साथ पहुंचना चाहती है। इसके लिए ऐसे एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ताओं का सम्मेलन दिसंबर में बुलाने का तय हुआ है। हालांकि इस सम्मेलन में प्रदेश भर के एनजीओ को सामाजिक कार्यकर्ताओं को बुलाया जाएगा, लेकिन कांग्रेस का मुख्य फोकस आदिवासी के बीच काम करने वालों पर ही होगा।
मध्य प्रदेश की आदिवासी सीट 47
प्रदेश में चितरंगी, धौहनी, ब्यौहारी, जयसिंह नगर, जैतपुर, अनूपपुर, पुष्पराजगढ़, बांधवगढ़, मानपुर, बडवारा, सिहोरा, शाहपुरा, डिंडौरी, बिछिया, निवास, मंडला, बैहर, बरघाट, लखनादौन, जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, पांढुर्णा, घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही, टिमरनी, बागली, हरसूद, पंधाना, नेपानगर, भीकनगांव, भगवानपुरा, सेंधवा, राजपुर, पानसेमल, बडवानी, अलीराजपुर, जोबट, झाबुआ, थांदला, पेटलावद, सरदारपुर, गंधवानी, कुक्षी, मनावर, धरमपुरी, रतलाम ग्रामीण, सैलाना ये आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं।
कांग्रेस अभी है इन सीटों पर मजबूत
प्रदेश की 47 आदिवासी वर्ग के आरक्षित सीटों पर वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस की स्थिति भाजपा से मजबूत है। कांग्रेस के पास फिलहाल इनमें से 27 सीटें हैं, जबकि बाकी की भाजपा के पास हैं। यानि इन सीटों में भाजपा अभी कांग्रेस से पीछे है। सत्ता के शिखर तक पहुंचने के लिए इनमें से ज्यादा से ज्यादा सीटे जितना जरुरी माना जाता है।