November 12, 2024

समुद्र मंथन से निकले 14 बहुमूल्य रत्नों में से 5 रत्नों को घर में रखने से दूर रहेंगे रोग-कंगाली

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विष्णु पुराण के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप से स्वर्ग में धन, ऐश्वर्य और वैभव खत्म हो गया. इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवी-देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे. तब विष्णु जी ने देवों और असुरों के बीच समुद्र मंथन कराने का उपाय बताया. इसके बाद समुद्र मंथन से 14 बहुमूल्य रत्न निकले. ऐसा कहा जाता है कि इन रत्नों के स्वरूपों को अगर घर लाकर रख लिया जाए तो स्वर्ग की तरह घर में भी धन, ऐश्वर्य और वैभव की कमी नहीं रहती है. आइए आपको ऐसे 5 रत्नों के बारे में बताते हैं, जिन्हें आप घर में रख सकते हैं.

ऐरावत हाथी- हाथियों में श्रेष्ठ एरावत हाथी समुद्र मंथन से निकला था. एरावत हाथी सफेद रंग का था, जिसमें उड़ान भरने की शक्ति थी. इंद्र देव ने इस हाथी को अपना वाहन बना लिया था. वास्तु के अनुसार, घर में क्रिस्टल या सफेद पत्थर का हाथी रखने से सुख, समृद्धि का वास होता है.

पांचजन्य शंख– समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक पांचजन्य शंख भी है. ये बहुमूल्य शंख भगवान विष्णु ने अपने पास रख लिया था. आपको उनकी हर तस्वीर में ये शंख आसानी से दिख जाएगा. इस शंख को घर के मंदिर में रखना बहुत शुभ माना जाता है.

उच्चै:श्रवा घोड़ा– आकाश में उड़ान भरने वाला सफेद रंग का उच्चै:श्रवा घोड़ा भी समुद्र मंथन से निकला था. यह घोड़ा असुरों के राजा बलि को मिला था. ऐसा कहते हैं कि घर में सफेद घोड़े की प्रतिमा या तस्वीर लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता है.

पारिजात के फूल- हिंदू धर्म में पारिजात के वृक्ष का विशेष महत्व बताया गया है. क्या आप जानते हैं कि पारिजात का वृक्ष भी समुद्र मंथन से ही बाहर निकला था. घर के मंदिर में भगवान के समक्ष पारिजात के फूल चढ़ाना बहुत शुभ होता है. घर में बिखरी पारिजात की खुशबू उन्नति और संपन्नता के द्वार खोलती है.

अमृत कलश– समुद्र मंथन में सबसे आखिर में अमृत कलश बाहर आया था. ये कलश भगवान धन्वंतरि लेकर समुद्र से निकले थे. देवताओं और असुरों के बीच इस अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए विवाद हुआ. कहते हैं कि तभी से प्रत्येक शुभ और मांगलिक कार्यों में अमृत कलश को स्थापित करने की परंपरा चली आ रही है. जिस घर में अमृत कलश होता है, वहां दुख-मुसीबत कभी घेरा नहीं डालते हैं. इससे अरोग्य का भी वरदान प्राप्त होता है.

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