सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब-समलैंगिक शादी को मिले मान्यता?
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल मैरिज ऐक्ट,1954 के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली दो याचिकाओं पर शुक्रवार को केंद्र और अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने केंद्र सरकार के अलावा भारत के अटॉर्नी जनरल को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए दो समलैंगिक जोड़ों ने उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं दायर की हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह मुद्दा नवतेज सिंह जौहर और पुट्टास्वामी केस के फैसलों (समलैंगिकता का अपराधीकरण समाप्त तथा निजता का मौलिक अधिकार क्रमश:) की अगली कड़ी है। यह एक जीवित मुद्दा है, संपत्ति का मुद्दा नहीं है। इसका प्रभाव स्वास्थ्य, उत्तराधिकार पर है। हम यहां केवल विशेष विवाह अधिनियम के बारे में बात कर रहे हैं।
दस वर्षों से साथ लेकिन मान्यता नहीं
पहली जनहित याचिका सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग ने दायर की है। वे दस वर्षों से एक साथ रह रहे हैं। कोविड-19 के दौरान दोनों नजदीक आ गए थे। दूसरी लहर के दौरान वे दोनों पॉजिटिव हुए। जब वे ठीक हुए, तो उन्होंने अपने सभी प्रियजनों के साथ अपने रिश्ते का जश्न मनाने के लिए अपनी सालगिरह पर शादी-सह-प्रतिबद्धता समारोह आयोजित करने का फैसला किया। उनका दिसंबर 2021 में एक प्रतिबद्धता समारोह था। जहां उनके रिश्ते को उनके माता-पिता, परिवार और दोस्तों ने आशीर्वाद दिया। अब, वे चाहते हैं कि उनकी शादी को विशेष विवाह अधिनियम के तहत मान्यता दी जाए। उन्होंने मांग की कि विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 को जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए। इसमें पुरुष और महिला के विवाह को ही विवाह योग्य बताया गया है।
बच्चों से कानूनी संबंध नहीं रख सकते
दूसरी जनहित याचिका पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदयराज आनंद ने दायर की है जो पिछले 17 सालों से एक-दूसरे के साथ संबंधों में हैं। उनका दावा है कि वे वर्तमान में दो बच्चों की परवरिश कर रहे हैं, लेकिन वे कानूनी रूप से अपनी शादी संपन्न नहीं कर सकते हैं। ऐसी स्थिति पैदा हो गई है, जहां दोनों याचिकाकर्ता अपने दोनों बच्चों के साथ माता-पिता और बच्चे का कानूनी संबंध नहीं रख सकते हैं।
उच्च न्यायालयों में भी याचिकाएं लंबित
गौरतलब है विशेष विवाह अधिनियम, विदेशी विवाह अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय और केरल उच्च न्यायालय के समक्ष नौ याचिकाएं लंबित हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एनके कौल ने पीठ को केरल उच्च न्यायालय के समक्ष केंद्र के बयान के बारे में बताया कि वह सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने के लिए कदम उठा रहा है। याचिकाकर्ताओं की ओर से मेनका गुरुस्वामी और एडवोकेट सौरभ कृपाल भी पेश हुए।