November 23, 2024

सुनील गावस्कर ने साझा किया डॉन ब्रैडमैन के वर्ल्ड रिकॉर्ड की बराबरी का 39 साल पुराना दिलचस्प किस्सा

0

 नई दिल्ली 

अपने करियर में 13,000 से अधिक अंतरराष्ट्रीय रन बनाने वाले महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने कहा कि उन्होंने बल्लेबाजी करते समय कभी स्कोर बोर्ड नहीं देखा और क्रीज पर कभी भी लक्ष्य निर्धारित नहीं किया। भारत के पूर्व कप्तान ने यह भी कहा कि टेस्ट मैच में उनका उद्देश्य हमेशा सत्र दर सत्र बल्लेबाजी करना था, खेल की शुरुआत से लेकर स्टंप तक। गावस्कर ने एबीपी ग्रुप द्वारा आयोजित एक आईटी कार्यक्रम इंफोकॉम 2022 के दौरान 'स्पॉटलाइट सत्र' में कहा, ''जब मैं बल्लेबाजी कर रहा होता था तो मैं कभी स्कोरबोर्ड नहीं देखता था क्योंकि प्रत्येक बल्लेबाज का लक्ष्य निर्धारित करने का अपना तरीका होता है। छोटे लक्ष्य वो होते हैं जो कोच आपको सबसे पहले बताते हैं। 10, 20 और 30 रन तक पहुंचना, जो एक अच्छा तरीका है।'' 

उन्होंने कहा,''जिस तरह से मैं देख रहा था कि अगर मेरा लक्ष्य 30 तक पहुंचना था तो जब मैं 24-25 के आसपास कहीं भी पहुंच जाता तो मैं बहुत चिंतित होता और 30 रन तक पहुंचने की कोशिश करता। फिर मैं स्टंप से बाहर की गेंद को खेलना, बाउंड्री मारने की कोशिश करता, 26 रन के आसपास आउट हो जाता, उस बाउंड्री को हिट करने की कोशिश में जो मुझे 30 रन पर पहुंचा देती।''
 

गावस्कर ने कहा कि विशेष लक्ष्य को हासिल करने के दबाव को कम करने के लिए प्रत्येक गेंद को उसकी मेरिट के आधार पर खेलना चाहिए। एक दिलचस्प किस्सा साझा करते हुए गावस्कर ने कहा कि उन्हें पता ही नहीं चला कि उन्होंने कब सर डॉन ब्रैडमैन के 29वें टेस्ट शतक की बराबरी कर ली क्योंकि उन्हें स्कोर बोर्ड देखने की आदत नहीं थी। उन्होंने कहा, ''जब तक (दिलीप) वेंगसरकर ने आकर मुझे इस उपलब्धि के बारे में नहीं बताया तब तक मुझे कुछ पता नहीं था।'' गावस्कर ने नई दिल्ली में वेस्टइंडीज के खिलाफ 1983 में ब्रैडमैन के 29 टेस्ट शतकों के रिकॉर्ड की बराबरी की। गावस्कर ने कहा कि उनका उद्देश्य हर बार बल्लेबाजी करते हुए शतक बनाना था।

उन्होंने कहा, ''मैंने अपने विकेट पर जो इनाम रखा वह हमेशा 100 रन था। मैं हमेशा शतक बनाता चाहता था, मैं कम से कम इतना ही हासिल करना चाहता था… जाहिर तौर पर यह असंभव था, यहां तक ​​कि सर डॉन ब्रैडमैन भी हर पारी में ऐसा नहीं कर सकते थे। तो मेरा पूरा ध्यान सत्र में बल्लेबाजी करना था। पहले सत्र से लंच तक, फिर चाय तक और फिर खेल के अंत तक।''
 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *