नेपाल के हाथी नहीं छोड़ रहे इंडिया, कारण अजीब है, बॉर्डर से लगे यूपी के तीन जिले परेशान
लखीमपुर
यूपी के लखीमपुर में वह गन्ना जो किसान की प्रमुख फसल है। जिससे खीरी जिले की पहचान है। अब वही उनकी मुसीबत भी बन रही है। भारत में नेपाली हाथियों के डेरा डाल लेने को लेकर वन विभाग ने वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया से महेशपुर व दक्षिण खीरी के अन्य इलाकों का सर्वेक्षण कराया। वाइल्डलाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया ने वन विभाग को सौंपी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है। बताया जा रहा है कि लखीमपुर, पीलीभीत और शाहजहांपुर में हाथी फसलें बर्बाद कर रहे हैं। यहां तक कि तीन की जान ले चुके हैं।
अधिकारियों की मानें तो गन्ने की खास प्रजाति हाथियों को खूब भा रही है। डब्ल्यूटीआई की रिपोर्ट, खेत में गन्ने की प्रजाति रहने तक नेपाल नहीं लौटेगा हाथियों का दल। वे इसके चक्कर में भारतीय क्षेत्र छोड़ने को तैयार नहीं हैं। खीरी जिले में बफर जोन, दक्षिण खीरी से सटे 45 गांवों में हाथियों की दहशत है। नेपाल से आए ये हाथी सात माह से ज्यादा समय से डेरा डाले हैं। इससे पहले ये बफर जोन के इलाके में फसलें रौंद रहे थे। अब इन्होंने महेशपुर में डेरा जमा लिया है। हाथियों ने यहां एक की जान भी ले ली। हाथियों का रास्ता बदलने के वन विभाग के सभी प्रयास विफल हो चुके हैं। अब आगे की रणनीति के लिए वन विभाग ने डब्ल्यूटीआई को जिम्मा दिया है। विशेषज्ञों ने हाथी प्रभावित इलाकों में जाकर सर्वेक्षण किया।
सर्वे से सामने आया कि हाथियों की यहां मौजूदगी के कई कारण हैं। नदियों का किनारा, छोटा जंगल और जंगल से सटे हुए खेत-खलिहान। डीएफओ संजय विश्वाल का कहना है कि रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि हाथियों की मौजूदगी की एक बड़ी वजह गन्ने की खेती है। बीते दो सालों में गन्ना प्रजाति 0238 के स्थान पर 13235 की प्रजाति बोई जा रही है। गन्ने की यह प्रजाति ज्यादा मुलायम और रसभरा है, इस वजह से जमे हैं नेपाली हाथी। इलाके में बोया गया गन्ना 13235 हाथियों को भा रहा है। यह गन्ना रसदार है। इसलिए हाथी सबसे ज्यादा इसी प्रजाति के गन्ने को खा रहे हैं और रौंद रहे हैं। बता दें कि नेपाल नहीं, सिर्फ भारत में दो साल से उगाया जाता है यह गन्ना, हाथियों का यह पसंदीदा भोजन है।