पीढ़ियों ने भुगता अब तीसरी में भी दिख रहा मेंटल डिस्टरबेंस
भोपाल
भोपाल गैस त्रासदी के 38 साल के बाद भी इसका असर गैस पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी में देखा जा सकता है। यहां पर पैदा होने वाले बच्चे न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से विकलांग पैदा हो रहे हैं, लेकिन इन पर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया है। उपेक्षा का तो यह आलम है कि इस हादसे की याद में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के पास बना स्मारक की हालत भी खराब होती जा रही है। पत्थर का यह स्मारक ही जर्जर हो चला है। साल में एक बार गैस कांड की बरसी के समय ही इसकी पूछ परख का दिखावा किया जाता है।
ऐसे हुआ था हादसा
2 दिसंबर 1984 की रात 8.30 बजे से भोपाल की हवा जहरीली हो रही थी। रात होते ही और 3 तारीख लगते ही ये हवा जहरीली तो रही, लेकिन साथ ही जानलेवा भी हो गई। कारण था यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का लीक होना था। भोपाल गैस पीड़ित संगठन के मोहम्मद जमील का कहना है कि शर्म की बात है कि आज भी गैस पीड़ितों को पूरा मुआवजा नहीं मिला और न ही सही इलाज। आलम यह है कि बस हम लोग अपनी जिन्दगी को ढो रहे हैं।
तीसरी पीढ़ी भी प्रभावित
पिछले दिनों चिंगारी ट्रस्ट ने यहां गैस पीड़ितों की स्थिति का सर्वे किया था। उसमें यह बात सामने आयी कि इनकी तीसरी पीढ़ी भी मिथेन गैस के कहर से दूर नहीं हो पाई है। उन पर इसका असर होने के कारण शारीरिक के साथ मानसिक विकलांगता नजर आ रही है। इन लोगों ने यहां की स्थिति को बयां करने के लिये एक प्रदर्शनी भी लगाई थी लेकिन अभी तक इनके लिये कुछ नहीं किया गया है। करोड़ों का बजट होने के बाद भी गैस राहत विभाग स्मारक को भी संरक्षित नहीं कर पाया। स्मारक के रूप में एक महिला की प्रतिमा बनी है जो बच्चे को गोद में उठाए हुए हैं। यह प्रतिमा भी कई जगह से टूटने फूटने लगी है। ट्रस्ट की रशीदा बी के अनुसार 1204 बच्चे पंजीकृत हैं जिनमें से 180- 190 बच्चे रोज आते हैं इलाज के लिए।