पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव को मिली BJP राष्ट्रीय कार्यसमिति में जगह, जानिए इसके सियासी मायने
लखनऊ
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने शुक्रवार को अपनी उत्तर प्रदेश इकाई के पूर्व प्रमुख स्वतंत्र देव सिंह को अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य नियुक्त किया। सिंह राज्य के जल शक्ति मंत्री भी हैं। इस कदम को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) पर पार्टी की पकड़ मजबूत करने के कदम के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि स्वतंत्रदेव सिंह जुलाई में उस समय परेशानियों में घिर गए थे जब उनके मातहत काम करने वाले राज्य मंत्री ने गंभीर आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था। तब स्वतंत्रदेव सिंह का मंत्री पद जाने का खतरा भी मंडरा रहा था। लेकिन राष्ट्रीय कार्यसमिति में जगह मिलने के बाद अब फिर उनकी वापसी होती दिख रही है।
स्वतंत्रदेव सिंह ने पहले राज्य महासचिव, राज्य उपाध्यक्ष, पार्टी के सदस्यता अभियान के प्रभारी के रूप में कार्य किया है और भाजपा के विभिन्न अभियानों का नेतृत्व किया है। उनके पास संगठन में एक लंबा अनुभव है और संगठनात्मक कौशल के लिए जाना जाता है। संगठन को मजबूत करने और ओबीसी के बीच जनाधार फैलाने के लिए भाजपा ने 2019 में उन्हें राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया था। 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा की सत्ता में वापसी हुई।
स्वतंत्रदेव सिंह ओबीसी चेहरे के तौर पर बीजेपी में काबिज स्वतंत्रदेव सिंह को योगी 2.0 सरकार में कैबिनेट में जगह देकर पुरस्कृत किया गया था। योगी 1.0 सरकार में उन्होंने परिवहन मंत्री के रूप में कार्य किया। सिंह को यूपी में एक ओबीसी चेहरे की तौर पर आगे लाया गया था लेकिन उनके विभाग में लगे भ्रष्टाचार के आरोप ने उनकी इमेज को काफी नुकसान पहुंचाया था। हालांकि इस चयन के बाद सिंह ने एक ट्वीट में पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, "संगठन द्वारा दी गई इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए मैं पूरी तरह से कृतसंकल्प और समर्पित रहूंगा।"
विभाग में भ्रष्टाचार को लेकर विवादों में आ गए थे दरअसल जुलाई में ही प्रदेश के जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह के नीचे काम करने वाले जलशक्ति राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने विभाग में बड़े भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। इसके बाद से ही संघ सक्रिय हो गया था। खटीक ने अपने पत्र में जो आरोप लगाए थे उससे बीजेपी पर दलित विरोधी होने का आरोप लग रहा था। दबाव इस कदर बढ़ा कि स्वतंत्रदेव सिंह को योगी के दरबार में जाकर सफाई देनी पड़ी थी। हालांकि संघ के दबाव में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का पद तो छोड़ना पड़ा लेकिन योगी ने बतौर कैबिनेट मंत्री उनको अभयदान दे दिया था।